उम्मीदों के चिराग से अंधेरी ¨जदगी में रोशनी की कोशिश
19 एचआरडी 11 - जेल में बंदी ने लिखी उदास हूं मै किताब - ¨जदगी के उतार चढ़ाव से लेकर हर रिश्ते पर कविता जागरण संवाददाता, हरदोई: किताबें न केवल सच्ची दोस्त होती हैं, बल्कि अंधेरी ¨जदगी में उम्मीदों की किरण भी जलाती हैं। जब कोई अपना न हो तो किताबें हर रिश्ता भी निभाती हैं। जिला कारागार के बंदी विवेक तिवारी ने साहित्य के ज्ञान और किताबों से अपनी अंधेरी ¨जदगी में उम्मीदों की किरण जला रखी है। किताबें पढ़ने के शौकीन विवेक तिवारी ने जेल में ही किताब लिख डाली। उदास हूं मै.. किताब में ¨जदगी से लेकर हर रिश्ते पर लिखी किताब खूब सराही जा रही है और किताब में मिलने वाली राशि को जेल में बंद बच्चों की शिक्षा पर खर्च किया जाएगा।
हरदोई: किताबें न केवल सच्ची दोस्त होती हैं, बल्कि अंधेरी ¨जदगी में उम्मीदों की किरण भी जलाती हैं। जब कोई अपना न हो तो किताबें हर रिश्ता भी निभाती हैं। जिला कारागार के बंदी विवेक तिवारी ने साहित्य के ज्ञान और किताबों से अपनी अंधेरी ¨जदगी में उम्मीदों की किरण जला रखी है। किताबें पढ़ने के शौकीन विवेक तिवारी ने जेल में ही किताब लिख डाली। उदास हूं मैं.. किताब में ¨जदगी से लेकर हर रिश्ते पर लिखी किताब खूब सराही जा रही है और किताब में मिलने वाली राशि को जेल में बंद बच्चों की शिक्षा पर खर्च किया जाएगा।
मूल रूप से लखनऊ के बख्शी का तालाब सीएचसी के पीछे निवासी विवेक तिवारी उन्नाव जिले में लघु ¨सचाई विभाग में बो¨रग टेक्नीशियन के पद पर कार्यरत थे। सुरसा थाना क्षेत्र में 10 जुलाई 2017 को एक कार में युवक का जला हुआ शव मिला था। युवक उन्नाव जिले का रहने वाला था। उसकी हत्या कर शव को फेंका गया था, कई लोग जेल गए। विवेक तिवारी पर भी उसी की हत्या का आरोप है और 18 जुलाई 2017 से वह जिला कारागार में बंद हैं। जेल प्रशासन के अनुसार विवेक को किताबें पढ़ने का शौक रहा। वह किताबें पढ़ता रहता, जेल में उसने किताब लिखने का प्रस्ताव रखा। नियमानुसार जो इंतजाम हो सकता था उसकी मदद की गई और विवेक तिवारी ने उदास हूं मैं शीर्षक के साथ जेल में रहते हुए किताब लिखी। ¨जदगी के उतार चढ़ाव, हर रिश्ते पर उसने 59 कविताओं की किताब तैयार की। राष्ट्रीय युवा शक्ति उत्तर प्रदेश (जेल सुधारों की अग्रणी संस्था ) अरुणानगर एटा ने किताब प्रकाशित कराई। विवेक के परिवार में पत्नी निशा तिवारी के साथ ही तीन बच्चे भोले, नवी और बनी हैं। एक दिन रिहाई का इंतजार कर रहा विवेक किताबों से अपनी अंधेरी ¨जदगी में उम्मीदों का चिराग जला रहा है। विवेक की किताब उदास हूं मैं, में मिलने वाली धनराशि जेल में बंद बच्चों की शिक्षा पर खर्च की जाएगी। जेल अधीक्षक ब्रजेंद्र कुमर ¨सह बताते हैं कि जेल में जो मुलाकाती आते हैं, उन्हें खरीदने के लिए किताब काउंटर पर रहती है। परिवारजनों ने जेल के बाहर एक किताबें छपवाई हैं। किताब छपवाई में आए खर्च को निकाल कर पूरी धनराशि बच्चों की शिक्षा के लिए जमा की जाएगी।