पुराने चेहरे पर दांव लगाकर भाजपा ने गठबंधन को दी पटखनी
हरदोई हरदोई संसदीय सीट पर अनुभवी चेहरे को मैदान में उतारना भाजपा की जीत में मजबूत कारण रहा।
हरदोई: हरदोई संसदीय सीट पर अनुभवी चेहरे को मैदान में उतारना भाजपा की जीत का मजबूत कारण रहा। नए प्रत्याशी को टिकट देकर भाजपा ने पांच साल में सांसद की बनी विरोधी हवा को तो खत्म ही कर दिया। भाजपा में भितरघात का फायदा उठाने में लगा गठबंधन बसपा के वोटबैंक को मोड़ नहीं सका।
2014 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर अंशुल वर्मा सांसद बने। पांच साल में विकास भी हुआ, लेकिन सामान्य रूप से कटियारी, पछोहा क्षेत्र में उनका विरोध भी बढ़ा। दो बार सांसद रहे जय प्रकाश रावत भाजपा में आए और उनके कुछ दिनों बाद ही उनके बेहद करीबी पूर्व सांसद नरेश अग्रवाल सपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। टिकट वितरण में भाजपा ने पूर्व सांसद के करीबी जय प्रकाश रावत को हरदोई से मैदान में उतार कर न केवल नरेश अग्रवाल को चुनावी कमान सौंप दी बल्कि सांसद अंशुल वर्मा के विरोध में पार्टी को होने वाले नुकसान को भी समाप्त कर दिया। अंशुल वर्मा सपा में शामिल होकर गठबंधन के चुनाव प्रचार में जुट गए। पूर्व सांसद नरेश अग्रवाल के विरोधी खेमा को गठबंधन ने पूरी तरह साधने की कोशिश की, लेकिन इस बीच हरदोई संसदीय सीट पर निर्णायक पासी वोटबैंक पर पकड़ नहीं बना पाई। हालांकि हरदोई से तीनों प्रत्याशी भाजपा के जय प्रकाश, सपा की ऊषा वर्मा और कांग्रेस के वीरेंद्र वर्मा पासी समाज के ही हैं लेकिन पूर्व सांसद नरेश अग्रवाल का कार्यक्षेत्र रहे हरदोई और सांडी विधान सभा क्षेत्र में समाज का वोट जय प्रकाश के पक्ष में ज्यादा रहा। गठबंधन को सपा-बसपा के वोटबैंक पर भरोसा था और 2014 के लोक सभा व 2017 के विधान सभा चुनाव में मिले मतों को जोड़कर जीत भी मानी जा रही थी, लेकिन राजनीतिक जानकारों के अनुसार वोटबैंक एकजुट नहीं हो सका। सपा का वोट तो हाथी को चला गया, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जो मतदाता केवल हाथी को ही वोट देते आए वह ईवीएम में हाथी न देखकर चकरा भी गए। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में कम मतदान होना भी भाजपा के लिए लाभकारी रहा।
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