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जी हुजूरी के झंझट से बचने को बंटाईदारों ने केंद्र से बनाई दूरी

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By JagranEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 10:44 PM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 10:44 PM (IST)
जी हुजूरी के झंझट से बचने को बंटाईदारों ने केंद्र से बनाई दूरी
जी हुजूरी के झंझट से बचने को बंटाईदारों ने केंद्र से बनाई दूरी

हरदोई : बंटाईदार और ठेके पर खेती करने वाले किसानों को उपज का समर्थन मूल्य दिलाने की योजना धराशाई हो गई।। व्यवस्था में बंटाईदारों को कृषक की सहमति से केंद्र पर धान बेचने का मौका दिया गया, लेकिन सरकारी खरीद के झंझट से बचने को बंटाईदार और ठेके पर खेती करने वाले किसानों ने केंद्रों से दूरी बना ली। आंकड़ों में 20,164 किसानों के अलावा 319 बंटाईदारों ने सरकारी केंद्र पर धान बेचने को पंजीकरण कराया है। वहीं विभाग के पास बंटाईदारों द्वारा केंद्र पर धान बेचने का कोई आंकड़ा तक नहीं है।

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भूमिहीन या कम खेती वाले किसान बंटाई, ठेके पर खेती करते हैं। कृषि विभाग के आंकड़ों में 6 लाख 8 हजार किसानों में 1.98 लाख बंटाईदार है। शासन ने धान खरीद नीति में बंटाईदारों को शामिल किया, जिससे यह किसान सीधे केंद्रों पर अपनी उपज बेच सके। इन किसानों को तहसील के माध्यम से उपज का सत्यापन कराना जरूरी था। यहीं व्यवस्था बंटाईदारों के लिए झंझट बन गई। इसके अलावा जिन बंटाईदारों ने पंजीयन कराया, उनमें आधे से अधिक बंटाईदार केंद्र प्रभारियों की मनमानी का शिकार हो गए। इसके चलते बंटाईदार केंद्र तक नहीं पहुंचे और रजिस्ट्रेशन कराने में रुचि नहीं दिखाई। लिखित सहमति पत्र लेना बंटाईदारों के लिए बना मुसीबत : बंटाईदार को कृषक से लिखित सहमति पत्र लेना होता है। इसके लिए अधिकांश किसान सहमत नहीं हुए। किसानों की सहमति न मिलने से बंटाईदार औने-पौने दामों पर आढ़तों पर धान बेचने को मजबूर हुए।

11,958 किसानों से खरीदा 1.5 लाख एमटी धान : खाद्य विभाग को शासन से 1.7 लाख एमटी धान खरीद का लक्ष्य मिला था। विभागीय आंकड़ों के अनुसार 62 सरकारी खरीद केंद्रों पर लक्ष्य के सापेक्ष 1.5 लाख एमटी धान खरीद की गई हैं। आंकड़ों में 11,958 किसानों से धान खरीद का दावा किया गया है। आंकड़े एक नजर में

किसान ने कराया पंजीयन - 20,164

बटाईदार व कांट्रेक्टर - 319

किसानों ने केंद्र पर बेचा धान - 11,958 अधिकारी बोले ..

जिला खाद्य विपणन अधिकारी अनुराग पांडेय ने बताया कि इस बार बटाईदार व ठेके पर खेती करने वाले किसानों ने पंजीकरण कराने में रुचि नहीं दिखाई। अधिकांश बंटाईदारों के सामने राष्ट्रीयकृत बैंकों में खाते नहीं थे, इसके अलावा किसानों ने सहमति पत्र देने में एतराज किया। इससे उनका सत्यापन नहीं हो सका।


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