अपनों के इंतजार में पथरा गईं आंखें, मदद को आगे आए गैर
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हरदोई: अपनों ने ठुकरा दिया, लेकिन गैर सहारा बने हैं। कंपकंपाते हाथ और भर्राती आवाज। उनका मुर्झाया चेहरा लाल से मिला मलाल बयां कर रहा। दुनिया में सब कुछ होने के बाद भी वह अकेले हैं। जिनके लिए उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, उन संतानों ने ही उनसे किनारा कर लिया। पर जिनसे कोई वास्ता नहीं था, वही अब अपने बन गए हैँ। समाज कल्याण से अनुदानित अल्लीपुर में संचालित सार्वजनिक शिक्षोन्नयन संस्थान की तरफ से संचालित वृद्धाश्रम में बुजुर्ग एक दूसरे को बदनसीबी की कहानी सुनाकर बस इतनी ही दुआ करते हैं कि ईश्वर ऐसे कपूत किसी को न दे।
निर्मल प्रकाश का तो पुत्र सरकारी सेवा में है। बताते हैं कि बेटा बहू को लेकर शहर जाना चाहता था। हमसे ठिकाना खोजने को कहा, तो हम यहां चले आए। उजागरदास और उनकी पत्नी रामवती दोनों को उनकी संतानों ने घर से निकाल दिया। परिवार पूछते ही उनकी आंखे बहने लगीं। बोले तीन पुत्र हैं। तीनों अलग अलग रहने लगे। एक दिन उन्हें घर से भगा दिया तो आश्रम चले आए। अब यही उनकी दुनिया और यहां के लोग उनका परिवार हैं। आश्रम में रह रहे कुल 109 बुजुर्गों में 42 महिलाएं हैं। किसी को घर में खाना नहीं मिलता था, तो किसी के बेटे उन्हें ऐसे ही छोड़कर चले गए। उनके बेटे तो छोड़कर चले गए लेकिन समाज में ऐसे लोग मदद को आगे आए जिनसे कोई मतलब नहीं था। कोई उनके बीच जन्म दिन मनाकर खुशियां बांटता है तो कोई मदद को हाथ आगे बढ़ा रहा है। अपनों से ठुकराए बुजुर्ग भी उन्हें दिल खोलकर दुआएं दे रहे हैं। खेत लेकर घर से भगाया
जगदेश्वर प्रसाद के बेटे ने खेत अपने पुत्र के नाम बैनामा करा लिया। पहले कहा कि हमे नहीं अपने पौत्र को ही दे दो। दो साल पहले उन्होंने खेत बैनामा कर दिया। उसके बाद से ही उनका बुरा वक्त आ गया। और तो और उनके साथ मारपीट तक होने लगी, परेशान होकर वह चले आए। उनके पास 20 बीघा खेत था। अब कुछ नहीं है। -आश्रम में बुजुर्गों का पूरा ख्याल रखा जाता है। नाश्ता-खाना कपड़ा के साथ ही उनके पूजन पाठ का भी इंतजाम रहता है। समाज कल्याण से पेंशन भी दिलाई जाती है। समय समय पर स्वास्थ्य परीक्षण भी कराया जाता है। बुजुर्गों को उनके अपनों ने छोड़ दिया लेकिन आश्रम में उन्हें अपनापन मिलता है।
सुगम जायसवाल, व्यवस्थापक