जरदोजी के अड्डों पर परिवारों को मिला रोजगार
मल्लावां हुनरमंद हाथों को रोजगार का इंतजार नहीं करना पड़ता है।
मल्लावां: हुनरमंद हाथों को रोजगार का इंतजार नहीं करना पड़ता है। मल्लावां कस्बा और क्षेत्र में सैकड़ों परिवारों का जरदोजी ही सहारा बनी हुई है। छिपीटोला निवासी मोहम्मद वाहिद शेख तो अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। न केवल वह खुद आगे बढ़े बल्कि बहुतों का सहारा बने। वह क्षेत्र ही नहीं जिले के कई कस्बों और उन्नाव के दर्जनों परिवारों को रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं।
वाहिद शेख को जरदोजी का काम विरासत में मिला है। उन्होंने पिता स्वर्गीय शब्बीर शेख से 1996 में जरदोजी व्यवसाय से सीखने को मिला और उसे ही अपना लिया। वाहिद शेख का कहना है कि 1996 में वह दूसरों के काम बनाते थे, समय और मेहनत से अपना माल बनाने लगे और फिर भाई चंदन शेख को भी इसी से जोड़ा। भाई के साथ से उन्होंने व्यवसाय को बढ़ाया और मल्लावां के साथ बिलग्राम, हरदोई, बावन, कन्नौज, आसीवन, मियागंज, गौसगंज सहित कई जगहों पर काम कराने लगे। वह कहते हैं कुछ समय पहले करीब सौ अड्डों पर 3-4 सौ कारीगर काम करते थे। तैयार माल लखनऊ के साथ दिल्ली, हैदराबाद, बंगलौर तक ले जाकर बेचते थे। मंदी और फिर लॉकडाउन में तैयार माल बाहर न जा पाने से माल और रुपया दोनों फंस गया। वर्तमान में करीब 15 से 20 अड्डे रह गए और 50 से अधिक कारीगर काम कर रहे हैं। जिससे जरदोजी का काम और कारीगरों का रोजगार दोनों पिछड़े हैं।
आर्डर पर शादी का जोड़ा होता है तैयार : मोहम्मद वाहिद शेख कहते हैं कि अपने काम के साथ आर्डर पर शादी के लिए लहंगा-चुन्नी, सूट, साड़ी, ब्लाउज, दुपट्टा आदि भी बनाए जा रहे हैं। मल्लावां चौराहे पर शो-रूम भी खोल रखा है। जरदोजी के चलते ही वह आज लोगों की मदद कर पा रहे हैं और उनके पास घर, गाड़ी सब कुछ है। कहते हैं कि काम मंदा हुआ है पर अधिक दिनों तक नहीं रहेगा, उम्मीद है जल्द ही काम तेजी पकड़ेगा और लोगों को व्यवसाय से जोड़ सकेंगे। कारीगरों को आधुनिक प्रशिक्षण जरूरी : मोहम्मद वाहिद शेख का कहना है कि कारीगरों को आधुनिक तकनीकी और प्रशिक्षण जरूरी है। इसके लिए सरकार को पहल करनी चाहिए। ताकि कारीगर और अच्छा काम कर सकें।