जब गांधी जी बोले थे, हरदोई से मिला सर्वाधिक सहयोग
द्दड्डठ्ठस्त्रद्धद्ब द्भड्ड4ड्डठ्ठह्लद्ब द्दड्डठ्ठस्त्रद्धद्ब द्भड्ड4ड्डठ्ठह्लद्ब द्दड्डठ्ठस्त्रद्धद्ब द्भड्ड4ड्डठ्ठह्लद्ब
हरदोई: यहां की पावन भूमि 11 अक्टूबर 1929 को उस समय धन्य हो गई थी, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कदम पड़े थे। जो आज गांधी भवन मैदान है उसी में आयोजित हुई जनसभा में पांच हजार से पुरुष महिलाओं ने भाग लिया था। महात्मा गांधी जी के भाषण का इतना असर पड़ा था, कि आजादी की लड़ाई के लिए महिलाओं ने अपने जेवर तक उतार दिए थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती को लेकर पूरा भारत उनकी स्मृतियों को सहेजने और याद करने में जुटा है। हरदोई को भी 11 अक्टूबर 1929 का दिन याद कर अपने ऊपर गर्व होता है। सत्य और अहिसा से आजादी की लड़ाई का मंत्र देने आए महात्मा गांधी जी को सुनने के लिए पांच हजार से अधिक लोग आए थे। गांधी जी के त्याग और तपस्या को देखकर भाषण सुनने के बाद महिलाओं ने अपने जेवर उतारकर स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में दान कर दिए थे। काफी गहने एकत्रित हुए थे, बेरुआ स्टेट के रजवाड़ों की रानियां जैसे विद्या देवी, रानी लक्ष्मी देवी, विद्या देवी की पुत्री तारा देवी ने विदेशी वस्त्रों , साड़ियों का बहिष्कार कर सदा सर्वदा के लिए खादी वस्त्र पहनने की घोषणा कर विदेशी वस्त्रों को जला दिया था। गांधी ने खुद कहा था कि हरदोई से जितना सहयोग मिला उतना कहीं से नहीं मिला। गांधी जी के भाषण का इतना असर हुआ कि खादी वस्त्रों की बिक्री शुरू कर दी गई। जिले की बहुत सी महिलाओं ने इसका अनुकरण किया। मल्लावां में देश प्रसिद्ध खादी आश्रम बना, हरदोई में गांधी भवन बनाया गया। पूरे जिले में चरखा चलने लगा। मल्लावां के आसपास 10 लाख चरखा चलने लगे थे। गांधी टोपी हजारों स्वयंसेवक लगाए घूमते रहते। गांधी जी के आगमन पर ग्रामीण क्षेत्रों में भी जोश बढ़ा।