अधिकतर सांसदों की दरकती रही दलीय निष्ठा
उमाकांत दीक्षित, हरदोई
सत्ता की भूख से अपने को बहुत कम सांसद बचा पाए हैं। जिले के प्रभावी सांसदों में गिने जाने वाले भाई परमाई लाल और किंदर लाल भी अपनी दलीय निष्ठा बचा नहीं सके। परमाई लाल की पुत्र वधू ऊषा वर्मा अब भी लोक सभा सदस्य की हैसियत से संसद में मौजूद हैं।
परमाई लाल ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जनसंघ से की थी। वे पहली बार सन् 1962 में गोपामऊ विधान सभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। इसके बाद मोरार जी देसाई के नेतृत्व वाले संगठन कांग्रेस में भी रहे। सन् 1977 में पहली बार जनता पार्टी की टिकट पर सांसद चुने गए। वह मुलायम सिंह के मंत्रिमंडल में लघु सिंचाई राज्य मंत्री बनाए गए। अब उनकी पुत्र वधू ऊषा वर्मा समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव जीत कर संसद सदस्य हैं। एक अन्य पुत्र वधू राजेश्वरी देवी इस समय विधान सभा की सदस्य हैं।
इसी प्रकार कांग्रेस के प्रभावी नेता किंदर लाल सन् 1952 में विधान सभा सदस्य चुने गए। बाद में सन् 1962 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार सांसद बने। वह कांग्रेस के टिकट पर 4 बार सांसद रहे। इसके बावजूद सत्ता मोह की भूख के चलते वह कांग्रेस से खिन्न होकर दलित मजदूर किसान पार्टी में शामिल हो गए। यह अलग बात है कि वे चुनाव हार गए। इस समय उनके पुत्र दिलीप कुमार मुन्ना पुन: कांग्रेस में हैं। लगातार सत्ता में बने रहने की चाहत से शायद ही कोई सांसद बच पाया हो। यहां तक कि भाजपा के टिकट से सन् 1991 और 1996 में सांसद रह चुके जय प्रकाश 1999 में लोकतांत्रिक कांग्रेस के हो गए। इस समय वह समाजवादी पार्टी के साथ हैं।
राजनीति की चकाचौंध में अपनी धुन के पक्के बहुत कम ढूंढ़े मिलते हैं। सन् 1957 के कांग्रेसी सांसद छेदा लाल गुप्त ने 1962 का चुनाव बेमन से लड़ा था। कारण यह कि राजनीति में मतदाताओं की खरीद-फरोख्त का दौर शुरू हो चुका था। इस समय उनके पुत्र राम प्रकाश अग्रवाल कांग्रेस में हैं। इसी प्रकार धर्मगज सिंह आजीवन कांग्रेसी और गंगाभक्त सिंह जनसंघ से जुड़े रहे। 1998 में शाहाबाद से सांसद रह चुके राघवेंद्र सिंह अब भी भाजपा में हैं। इसी प्रकार पूर्व सांसद मन्नी लाल कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं। इसी तर्ज पर बसपा के टिकट पर राज्य सभा पहुंचे नरेश अग्रवाल अब समाजवादी पार्टी का दामन थाम कर इसी पार्टी के टिकट पर राज्य सभा की शोभा बढ़ा रहे हैं।
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फिल्म रामा धोबिन के प्रदर्शन का किया था विरोध
हरदोई : जिले के प्रथम सांसद बाबू बुलाकी राम वर्मा ने फिल्म रामा धोबिन को समाज के स्वाभिमान के खिलाफ माना। फिल्म के प्रदर्शन को रोकने के लिए उन्होंने दिल्ली में प्रदर्शन किया था। नतीजा यह हुआ कि फिल्म का प्रदर्शन रोक दिया गया।
उनके परिवारी सूत्रों के अनुसार यह घटना सन् 1955 की है। तब मुंबई में राम धोबिन फिल्म प्रदर्शित की जा चुकी थी। इसके बाद बुलाकी राम वर्मा ने फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए आंदोलन शुरू किया। जिले से शुरू हुआ आंदोलन बाद में विभिन्न राज्यों से होता हुआ दिल्ली की सड़कों तक जा पहुंचा। संसद में भी विरोध हुआ। बाद में देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद फिल्म रामा धोबिन के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
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