यूपी में मीरा की मजार है सद्भाव की मिसाल, विवाह व संतान प्राप्ति पर लगती है जात
नफरत के दौर में भी मीरा बाबा की मजार को सांप्रदायिकता की आग छू तक नहीं पाई है। सदियों से मीरा बाबा की मजार लोगों में अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है। जहां प्रत्येक बृहस्पतिवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा की मजार पर माथा टेकने आते हैं।
हापुड़/गढ़मुक्तेश्वर [प्रिंस शर्मा]। महाभारतकालीन गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में ऐसे प्राचीन धर्मस्थलों की संख्या काफी अधिक है जो अलग-अलग संप्रदाय के लोगों की अटूट आस्था से जुड़े हैं। इन धर्मस्थलों में नगर के उत्तरी छोर पर स्थित मीरा बाबा की मजार एक महत्व पूर्ण स्थान रखती है। जब क्षेत्र में हिंदुओं के परिवार में लड़के की शादी होती है या फिर पुत्र प्राप्ति के बाद मीरा बाबा की मजार प्रसाद चढ़ाया जाता हैं। विशेषकर कार्तिक पूर्णिमा मेले में हर संप्रदाय के लोग भेली और चादर चढ़ाने आते हैं। इस दौरान हजारों बच्चों का मुंडन भी होता है।
नफरत के दौर में भी गढ़ में मीरा बाबा की मजार को सांप्रदायिकता की आग छू तक नहीं पाई है। सदियों से मीरा बाबा की मजार लोगों में अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है। जहां प्रत्येक बृहस्पतिवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा की मजार पर माथा टेकने आते हैं। मजार पर हाजरी देने वालों में सभी धर्म के लोग शामिल रहते हैं। कार्तिक माह में गढ़ गंगा पर विशाल मेला भरने के दौरान थोड़ी दूरी पर विश्व का सब से बड़ा कहलाए जाने वाला अश्वीय प्रजाति का मेला भी भरता है। अश्वीय मेले में जाने वाले व्यापारी और किसान एक रात का पड़ाव मजार पर डालकर अगले दिन मेले को रवानगी करते हैं।
विवाह व संतान प्राप्ति पर लगती है जात
पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि हरियाणा और राजस्थान के नवदंपती विवाह के बाद मीरा बाबा की मजार पर आकर संतान प्राप्ति के लिए जात (अरदास) लगाते हैं। वे अपनी मनोकामना पूरी होने पर पुत्र प्राप्ति के बाद यहां आकर चादर चढ़ाने के साथ ही नारियल बताशे मोतीचूर के लड्डू का प्रसाद चढ़ाते हैं। बकरे और मुर्गो की भेंट देने की भी परंपरा रही है, लेकिन समय के साथ उस पर काफी हद तक रोक लग गई है।
हांडी में बनाते हैं चावल
मीरा बाबा की मजार पर परंपरागत चढ़ावे के तहत श्रद्धालु मिट्टी से बनी हांडी में गुड़ और चावल डालकर उसे मजार के पास ही कच्चे चूल्हे पर उपलों की आंच पर पकाने के बाद खुद प्रसाद लेने के बाद उसे गरीब व निराश्रितों में वितरित करते हैं।
मुस्लिम परिवार को मिलता है चढ़ावा
मीरा बाबा की मजार की देखरेख प्रारंभ से ही यामीन शेख के बेटे यूनुस, मुस्तफा और यूसुफ द्वारा की जा रही है। उनसे पहले उनके पूर्वज यह कार्य कर रहे थे जो मजार पर आने वाले चढ़ावे के अकेले मालिक रहते हैं।