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महाभारत के इतिहास की याद दिलाता है कार्तिक पूर्णिमा मेला

संवाद सहयोगी गढ़मुक्तेश्वर खादर क्षेत्र में पतित पावनी मां गंगे के किनारे पर गंगा मेला आयोजित

By JagranEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2020 07:41 PM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2020 07:41 PM (IST)
महाभारत के इतिहास की याद दिलाता है कार्तिक पूर्णिमा मेला
महाभारत के इतिहास की याद दिलाता है कार्तिक पूर्णिमा मेला

संवाद सहयोगी, गढ़मुक्तेश्वर:

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खादर क्षेत्र में पतित पावनी मां गंगे के किनारे पर गंगा मेला आयोजित होने और कार्तिक पूर्णिमा के मुख्य स्नान की पूर्व संध्या पर होने वाले दीपदान की परंपरा कब से चली। इसकी सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। तमाम बुजुर्ग व अन्य लोग यह परपंरा सदियों पुरानी और इन्हें महाभारत काल से जुड़ा भी बताते हैं।

बता दिया जाए कि कार्तिक माह की पूर्णिमा पर गढ़ खादर स्थित रेतीली भूमि पर गंगा के दोनों तटों यानी हापुड़ और अमरोहा जनपद के तिगरीधाम में लगने वाले इन मेलों को उत्तर भारत का ऐतिहासिक मेला भी कहा जाता है। गढ़ गंगा मंदिर के पुरोहित संतोष कौशिक ने बताया कि जब छोटे थे तो उनके पिता व दादा गंगा मेला महा भारत कालीन के दौर से लगना बताते थे। उन्होंने बताया कि महाभारत काल में कौरवों की सेना अपने कुटुंब संबंधी पांडवों के हाथों ढेर होने पर भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी मुक्ति को पांडवों से यहां दीपदान कराया था। उसके बाद से यहां कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर दीपदान की परपंरा चली आ रही है। यह पहला मौका है, जब कोरोना संक्रमण की वजह से मेला आयोजन व दीपदान पर रोक लगाई गई है। उस समय गंगा प्राचीन गंगा मंदिर से सटकर बहा करती थीं।

---------- हर साल 25-30 लाख से अधिक जुटती है भीड़

गंगा की सुनसान रेतीले मैदान पर कार्तिक पूर्णिमा स्नान और चतुर्दर्शी पर होने वाले दीपदान की तैयारियों यहां पर एक माह पहले से शुरू हो जाती हैं। जिला पंचायत द्वारा उक्त मेले को पूरा कराया जाता है। दस किलोमीटर की परिधि के दायरे में लगने वाले इस विशाल पौराणिक मेले में 25-30 लाख की भीड़ जुटती है। देवोत्थान एकादशी से दो दिन पूर्व से श्रद्धालु पहुंचना चालू हो जाते थे। चूंकि इस बार मेला स्थगित है, इसलिए मेले जाने वाले मार्ग और गंगा तट सूने पड़े हैं, जहां श्रद्धालुओं के टेंट लगते थे, मेला कोतवाली व अन्य अधिकारियों के शिविर कार्यालय बनते थे, वहां अब फसल उग रही हैं।


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