डॉल्फिन के लिए सुरक्षित स्थान बनीं बिजनौर से ब्रजघाट तक गंगा
मानव मित्र कहे जाने वाली डॉल्फिन(सूंस) को बिजनौर से लेकर ब्रजघाट तक गंगा की कोख रास आने लगी है। सरकार के प्रयास और जन जागरूक कार्यक्रमों से कहीं न कहीं गंगा प्रदूषण में कमी आई है। इसके चलते अच्छी खबर ये है कि गंगा की कोख में विचरण करने वाली डॉल्फिन सहित अन्य जलीय जीव-जंतु बिजनौर से लेकर ब्रजघाट तक का क्षेत्र काफी पसंद आ रहा है।
संवाद सहयोगी, ब्रजघाट : मानव मित्र कही जाने वाली डॉल्फिन (सूंस) को बिजनौर से लेकर ब्रजघाट तक गंगा की सुरक्षित स्थान महसूस होने लगा है। सरकार के प्रयास और जन जागरूक कार्यक्रमों से कहीं न कहीं गंगा प्रदूषण में कमी आई है। इसके चलते गंगा में विचरण करने वाली डॉल्फिन सहित अन्य जलीय जीव-जंतुओं को बिजनौर से ब्रजघाट तक का क्षेत्र काफी पसंद आ रहा है। गंगा में मौजूद डॉल्फिन की संख्या जानने के लिए एक बार फिर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की टीम ने गणना शुरू कर दी है। शनिवार दोपहर टीम ब्रजघाट पहुंची। इस दौरान उन्हें 18 डॉल्फिन और उसका एक बच्चा मिला है। बिजनौर से नरौरा तक के क्षेत्र को डॉल्फिन का रिजर्व क्षेत्र माना गया है। गढ़ से नरौरा तक के बीच भी डॉल्फिन का एक बड़ा कुनबा विचरण करता है, लेकिन गंगा में बढ़ते प्रदूषण और रिजर्व क्षेत्र में आमजन का बढ़ता दखल डॉल्फिन का दुश्मन बना हुआ था। गंगा में डॉल्फिन का कुनबा पिछले बार बढ़ गया था। पिछले वर्ष बिजनौर बैराज से नरौरा तक 225 किलोमीटर की दूरी में अभियान चलाया गया था। इस दौरान टीम को बिजनौर से लेकर ब्रजघाट तक टीम को 17 डॉल्फिन मिली थीं। जिनमें दो शावक भी शामिल थे। जबकि ब्रजघाट से बिजनौर तक डॉल्फिन की संख्या पंद्रह थी। केंद्र सरकार ने वर्ष 2009 में डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। वर्ल्ड वाइल्ड फंड और उत्तर प्रदेश वन विभाग की ओर से हर साल गंगा में डॉल्फिन की संख्या जानने के लिए अभियान चलाया जाता है। 225 किलोमीटर लंबी गंगा की धारा में वर्ष 2017 में 30 डॉल्फिन दिखी थीं। अभी तक बिजनौर क्षेत्र में 11, परीक्षितगढ़ क्षेत्र में तीन और परीक्षितगढ़ से गढ़ तक भी तीन डॉल्फिन ही देखी गई हैं। मेरी गंगा, मेरी सूंस'अभियान के तहत खोज अभियान की शुरुआत पिछले वर्ष की गई थी। इस वर्ष भी यह अभियान बुधवार की सुबह से शुरू हो गया है। शनिवार दोपहर टीम ब्रजघाट पहुंची। अब तक 19 डॉल्फिन मिल चुकी हैं। बिजनौर से शुरु हुआ यह गणना अभियान बुलंदशहर के नरौरा में जाकर खोज अभियान को समाप्त करेगी। उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार गंगा में डॉल्फिन की संख्या और बढ़ेगी। इस उम्मीद से खोज अभियान चलाने वाले अधिकारियों के चेहरे खिल गए हैं।
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अंधी होने के कारण तरंगों से पकड़ती हैं शिकार
गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन को गंगेटिक रिवर डॉल्फिन कहते हैं। यह समुद्र में मिलने वाली डॉल्फिन से अलग होती हैं। गंगेटिक रिवर डॉल्फिन अंधी होती हैं। ये गंगा में मछलियां खाती हैं और शरीर से निकलने वाली तरंगों से शिकार को पकड़ती हैं। मादा डॉल्फिन की लंबाई पौने दो मीटर तक होती है। नर डॉल्फिन मादा से छोटा होता है। गंगेटिक रिवर डॉल्फिन सामाजिक प्राणी होती हैं। यह कभी-कभी नाव या पानी में तैरने वाले मनुष्यों के पास आकर उनके साथ तैरने लगती हैं। यह आक्रामक प्रवृत्ति की नहीं होती हैं और मनुष्य पर हमला भी नहीं करती हैं। विगम तीन वर्ष में मिली डॉल्फिन की संख्या
- वर्ष 2015 में बिजनौर से ब्रजघाट तक 11, ब्रजघाट से नरौरा तक 11
- वर्ष 2016 में बिजनौर से ब्रजघाट तक 13, ब्रजघाट से नरौरा तक 17
- वर्ष 2017 में बिजनौर से ब्रजघाट तक 17 ब्रजघाट से नरौरा तक 15
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--क्या कहते हैं अधिकारी
गंगा में मानव मित्र डॉल्फिन की गणना को लेकर बिजनौर से नरौरा जाने वाली टीम का अभियान बुधवार से शुरू हो गया है। जल्द ही टीम ब्रजघाट पहुंचेगी।
-संजीव यादव, परियोजना अधिकारी, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ