नारी सशक्तीकरण : हुनर प्रदान कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही दीपाली
नगर निवासी दीपाली ने नारी सशक्तिकरण में अपनी अलग पहचान बनाई है। वह न केवल युवतियों और महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं बल्कि उन्हें रोजगार देकर आत्मनिर्भर भी बना रही हैं।
गौरव भारद्वाज, हापुड़:
नगर निवासी दीपाली ने नारी सशक्तीकरण में अपनी अलग पहचान बनाई है। वह न केवल युवतियों और महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही है, बल्कि उन्हें रोजगार देकर आत्मनिर्भर भी बना रही है। पहले वह युवतियों को साज-सज्जा की वस्तुओं की प्रति जागरूक करती है और बाद में प्रशिक्षण देकर रोजगार प्रदान करती है। पिछले कुछ समय में वह अपने इस कार्य से महिलाओं और युवतियों के दिलों में बस गई है। वर्तमान में 20 से अधिक युवतियां उनसे प्रशिक्षण ले रही हैं।
स्नातक की पढ़ाई करने के बाद श्रीनगर निवासी दीपाली सिघल ने टेक्सटाइल डिजाइनिग का कोर्स किया। उनके पति बिजनेसमैन हैं और वह गृहणी है। वर्ष 2012 में वह संगिनी क्लब से जुड़ गई। यहां से उन्हें युवतियों और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की प्रेरणा मिली। उन्होंने घर के एक कमरे में ही हैंडीक्राफ्ट का काम शुरू कर दिया। सबसे पहले उन्होंने बेरोजगार और पढ़ाई करने वाली युवतियों को साज-सज्जा की वस्तुओं के बारे में बताया। उन्होंने युवतियों को घर बुलाकर कच्चे माल से साज-सज्जा की वस्तुएं को बनाने का प्रशिक्षण दिया। दीपाली बताती है कि वह गिफ्ट पैकिग, पर्स, पूजा की थाली, विभिन्न तरह की माला समेत अन्य वस्तुएं तैयार कराती है। इन वस्तुओं की वह विभिन्न शहरों में लगने वाले शॉपिग मेलों में स्टॉल लगाकर बिक्री कराती है। दीपाली ने बताया कि शुरुआत में उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा। धीरे-धीरे परिवार के लोग भी उनके द्वारा किए जा रहे कार्य के महत्व को समझ गए। उनका उद्देश्य युवतियों को योग्य बनाने के साथ रोजगार देना है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
दीपाली का मानना है कि उनके यहां कार्य करने वाली युवतियां दो से पांच हजार रुपये प्रति माह तक आय प्राप्त कर लेती हैं। वह उनके द्वारा बनाए गए एक उत्पाद को उपहार स्वरूप भी उन्हें भेंट करती हैं। साज सज्जा के उत्पादों को बनाने के लिए वह मुंबई, कोलकाता और गुजरात के विभिन्न शहरों से कच्चा माल मंगवाती हैं। उनके द्वारा तैयार की गई वस्तुएं चीन निर्मित उत्पादों को टक्कर देती हैं। खास बात यह है कि उनके यहां तैयार किए गए उत्पाद की कीमत चीन निर्मित उत्पादों की कीमत के लगभग बराबर ही होती है। उन्होंने बताया कि कुछ युवतियां उनके यहां काम कर अपनी पढ़ाई का खर्च स्वयं वहन कर रही हैं। अब तक वह 200 से अधिक युवती-महिलाओं को इस कला में प्रवीण कर चुकी है।