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धूल हुई कम, सता रहा बरसात न होने का गम

पर्यावरणविद् डा. अब्बास अली का कहना है कि मौसम में आ रहे बदलाव और हवा का दबाव कम होने की वजह से वायु मंडल में पीएम-10 ठहर गए थे। ये धूल के भारी कण हैं। गर्मियों में जब भी धूल की परत जमती है तो वह बारिश से ही दूर होती है। तेज हवाओं से राहत मिल जाती है, लेकिन उसमें भी धूल की मात्रा अधिक होती है

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Jun 2018 07:48 PM (IST)Updated: Sat, 16 Jun 2018 07:48 PM (IST)
धूल हुई कम, सता रहा बरसात न होने का गम
धूल हुई कम, सता रहा बरसात न होने का गम

जागरण संवाददाता, हापुड़ : पिछले चार दिनों तक शहरवासियों को कुदरत को दोहरा कहर झेलना पड़ा । एक तरफ वातावरण में धूल की परत छाई रही तो दूसरी तरफ उमस और गर्मी से बेचैनी बढ़ती रही। नवंबर 2017 की दमघोंटू धुंध के बाद एक बार फिर  से जिला धूल की परत की चपेट में आ गया था। शुक्रवार की अपेक्षा शनिवार को धूल काफी हद तक कम हो गई, जिसके चलते लोगों को राहत मिली। अब लोगों को बरसात के होने की आस लगी हुई है।

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विशेषज्ञों के अनुसार वायु प्रदूषण की स्थिति किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को बीमार करने के लिहाज से फिलहाल ज्यादा खतरनाक नही है। चार दिनों से वातावरण में छाई धूल की परत लोगों के लिए ¨चता का सबब बनी हुई थी। शनिवार को दोपहर में धूल छंटने के बाद हल्की धूप निकली, जिससे मौसम में गर्माहट भी कम नजर आई और बिज्युविलटी साफ रहने से लोगों को काफी हद तक राहत मिली।

पर्यावरणविद् डा. अब्बास अली का कहना है कि मौसम में आ रहे बदलाव और हवा का दबाव कम होने की वजह से वायु मंडल में पीएम-10 ठहर गए थे। ये धूल के भारी कण हैं। गर्मियों में जब भी धूल की परत जमती है तो वह बारिश से ही दूर होती है। तेज हवाओं से राहत मिल जाती है, लेकिन उसमें भी धूल की मात्रा अधिक होती है। एक्यूआई का स्तर 200 से अधिक होने पर सेहत के लिए हानिकारक माना जाता है।  चार दिन तक जो वातावरण रहा, वह सामान्य व्यक्ति को भी बीमार बना सकता था। जिसकी वजह से आंखों में जलन, सांस की बीमारी से लेकर हाइपरटेंशन, उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएं हो सकती थी। अस्थमा के मरीज को ज्यादा धूप में नहीं घूमना चाहिए, और लगातार दवा खाएं। सांस का अटैक होने पर भर्ती होने की जरूरत पड़ जाती है। शनिवार को धूल के कण छंट गए हैं, जिससे फेफड़े व दिल के रोगियों को राहत मिलेगी।-डा. राकेश अनुरागी, डिप्टी सीएमओ, हापुड़


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