बेटी मांगे इंसाफ : खाकी की फाइलों में दबकर रह गई मासूम की चीख
केशव त्यागी हापुड़ बदमाशों से मुठभेड़ हो या शस्त्र फैक्ट्री का पर्दाफाश भले ही इन सबके
केशव त्यागी, हापुड़ :
बदमाशों से मुठभेड़ हो या शस्त्र फैक्ट्री का पर्दाफाश भले ही इन सबके नाम पर पुलिस अपने मुंह मियां मिट्ठू बनी रही हो, लेकिन चार वर्ष पहले दुष्कर्म के बाद 10 वर्षीय बच्ची की हत्या के मामले में पुलिस के हाथ शैतानों के गिरेबान को आज तक नहीं छू सके हैं। आरोपितों की गिरफ्तारी न होने पर पुलिस ने न्यायालय में फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर पल्ला झाड़ लिया। जांच के नाम पर खोखले दावे और झूठा आश्वासन देने के अलावा इस मामले में पुलिस कुछ नहीं कर सकी। पिछले चार सालों में यह मामला पुलिस की फाइलों में दम तोड़ रहा है।
बता दें, कि थाना बहादुरगढ़ क्षेत्र के एक गांव निवासी 10 वर्षीय मासूम बच्ची 22 अक्टूबर 2016 की शाम बकरी चराने जंगल में गई थी। अगले दिन उसकी लाश लहूलुहान हालत में एक खेत में पड़ी मिली थी। पुलिस ने तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दुष्कर्म और गला दबाकर हत्या की पुष्टि हुई थी।
हंगामा-प्रदर्शन का दौर चला और कुछ दिन बाद वह भी दम तोड़ गया। केस की पैरवी करने के लिए गांव के नाम पर एक संघर्ष समिति बनी। मामला पुलिस के गले की फांस बना तो संदेह के आधार पर छह संदिग्धों के रक्त सैंपल लेकर जांच को भेजे गए थे, लेकिन यह जांच भी बीरबल की खिचड़ी साबित हुई थी। जांच रिपोर्ट के आधार पर संदिग्ध, दोषी साबित नहीं हो सके और इस कारण पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी।
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न्यायालय में प्रस्तुत की फाइनल रिपोर्ट -
मामले की गूंज लखनऊ तक पहुंची तो जनपद के अफसरों ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए जद्दोजहद शुरू कर दी। बच्ची के दोषियों की तलाश में पुलिस को मुंह की खानी पड़ी। नतीजा, आरोपितों की गिरफ्तारी न होने पर पुलिस ने 3 अक्टूबर 2019 को न्यायालय में फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी। मामले की जानकारी पर बच्ची के स्वजन व गांव संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने इसका विरोध किया, लेकिन आज भी नतीजा नहीं निकल सका है।
---- सीबीआइ जांच की मांग कर चुके हैं स्वजन -
बच्ची को इंसाफ दिलाने के लिए स्वजन आज भी लगातार प्रयासरत हैं। कुछ समय पहले स्वजन ने केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखकर मामले में सीबीआइ जांच कराने की मांग की थी, लेकिन कुछ नहीं हो सका। पीड़ित परिवार ने बताया कि वह हर रोज बिटिया को याद करके आंसू बहाते हैं। इसके बावजूद भी आज तक बिटिया को इंसाफ नहीं मिला है। उन्होंने बताया कि वह बच्ची को इंसाफ दिलाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं, लेकिन कोई उनके दर्द को समझने के लिए तैयार नहीं है।
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बदले कप्तान, बदले थानेदार मगर बच्ची को नहीं दिला सके इंसाफ -
वर्ष 2016 में हुई जघन्य वारदात को चार वर्ष बीत चुके हैं। तब से अब तक जनपद में चार एसपी व दो एएसपी बदल चुके हैं। मुकदमे की विवेचना वरिष्ठ उपनिरीक्षक अरमान अहमद ने शुरू की थी। इसके बाद थाना प्रभारी रूप किशोर, रविरत्न, प्रभारी निरीक्षक रविद्र राठी, डालचंद, प्रभारी निरीक्षक जयपाल सिंह रावत, प्रभारी निरीक्षक विशाल श्रीवास्तव, महिला उपनिरीक्षक मनू चौधरी व थाना प्रभारी रविरत्न सिंह ने विवेचना की, लेकिन कोई भी बच्ची को इंसाफ नहीं दिला सका।
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क्या बोले जिम्मेदार -
चार साल बाद भी बच्ची के हत्यारों को नहीं पकड़े जाने का मामला गंभीर है। वारदात का पर्दाफाश करने के संबंध में पुलिस ने भरसक प्रयास किए हैं। अपराधियों के न पकड़े जाने पर पुलिस ने भले ही न्यायालय में फाइल रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है, लेकिन मामले की जांच आज भी जारी है। संभवता पुलिस इस मामले का पर्दाफाश करने में कामयाब होगी। - संजीव सुमन, एसपी