दुष्कर्म पीड़िता के साथ पुलिस भी करती है नाइंसाफी
क तरफ दुष्कर्म किए जाने के बाद दहशत में आई पीड़िता होती है तो दूसरी तरफ पुलिस की असंवेदनशीलता होती है। पुलिस की इसी कार्यशैली की बदौलत न जाने कितने ही परिवार दुष्कर्म के बाद चुप्पी साधे रहते हैं। ऐसा ही एक मामला इसी साल मई माह में सामने आया, जिसमें पुलिस की लचर कार्यशैली के कारण दुष्कर्म पीड़िता के साथ न्याय होता नजर नहीं आ रहा है।
जागरण संवाददाता, हापुड़
एक तरफ दुष्कर्म किए जाने के बाद दहशत में आई पीड़िता होती है तो दूसरी तरफ पुलिस की असंवेदनशीलता होती है। पुलिस की इसी कार्यशैली की बदौलत न जाने कितने ही परिवार दुष्कर्म के बाद चुप्पी साधे रहते हैं। ऐसा ही एक मामला इसी साल मई माह में सामने आया, जिसमें पुलिस की लचर कार्यशैली के कारण दुष्कर्म पीड़िता के साथ न्याय होता नजर नहीं आ रहा है।
जिले के एक गांव के मजदूर परिवार की कक्षा नौ में पढ़ने वाली 15 वर्षीय किशोरी के साथ एक गांव के युवक ने जबकि उसके दूसरे साथी, जोकि दूसरे गांव का था ने दुष्कर्म किया। घटना के अनुसार किशोरी अपने स्कूल जा रही थी कि बीच रास्ते में ही घर के सामने रहने वाले एक युवक ने अपने दूसरे साथी के साथ मिलकर किशोरी का अपहरण कर लिया। जिसके बाद किशोरी के साथ दूसरे गांव के व्यक्ति ने दुष्कर्म किया। मामला जब पुलिस के संज्ञान में आया तो पुलिस बढ़ते दबाव के बाद हरकत में आई और किशोरी को एक नर्सिंग होम में बरामद कर लिया गया।वही से एक दुष्कर्म के आरोपित को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। बस यही से पुलिस का असली चेहरा सामने आना शुरू होता है।दुष्कर्म पीड़िता के परिजन के कहने के बावजूद पुलिस ने उसी दिन मुकदमा दर्ज नहीं किया और न ही किशोरी का मेडिकल परीक्षण कराया। बरामदगी के अगले दिन मुकदमा दर्ज किया गया और मुकदमा दर्ज होने के भी 48 घंटे बाद पीड़िता का मेडिकल परीक्षण कराया गया। वही पुलिस ने खेल करते हुए पीड़िता की बरामदगी के समय पकड़े गए दुष्कर्म के एक आरोपित को दो दिन बाद सांठगांठ करके दूसरे स्थान से गिरफ्तार दिखाकर जेल भेज दिया। दुष्कर्म पीड़िता का न्यायालय में बयान भी 12 मई की घटना होने के बावजूद 21 मई को दर्ज कराए गए। ऐसा भी तब किया गया जब पीड़िता के परिजन पीड़िता को लेकर पुलिस अधीक्षक से मिले और सारे मामले की जानकारी दी। पीड़िता के बयान का अवलोकन विवेचना अधिकारी द्वारा बयान देने के तुरंत बाद ही न्यायालय की अनुमति से किया जाना चाहिए था । विवेचना अधिकारी द्वारा यहां पर भी पीड़िता के बयान का लगभग पांच दिन बाद अवलोकन किया गया। इसके उपरांत भी क्योंकि पीड़िता नाबालिग थी तथा उसके परिजन ने स्कूल में लिखी गई जन्मतिथि का साक्ष्य भी विवेचना अधिकारी को दिया था ¨कतु विवेचना अधिकारी ने उक्त साक्ष्य को विवेचना का हिस्सा नहीं बनाया। इस दौरान पीड़िता तथा उसके परिजन आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से परेशान रहे। पीड़िता के अधिवक्ता नरेंद्र मान ने बताया कि इस दौरान पीड़िता मानसिक रूप से बेहद डरी हुई और घबराई हुई थी। काफी समझाने और सांत्वना देने के बावजूद पीड़िता उस दहशत के पलों से बाहर नहीं निकल पा रही थी। जबकि पुलिस द्वारा नाबालिग के साथ दुष्कर्म के लिए बनाए गए पास्को एक्ट व दुष्कर्म की धारा भी नहीं बढ़ाई गई और इसी दौरान एक अभियुक्त की जमानत याचिका न्यायालय सुनवाई के लिए लंबित होने के बाद भी विवेचना अधिकारी द्वारा विरोध नहीं किया गया जिसके चलते आरोपित की जमानत हो गई।
आज भी पीड़िता और उसके परिजन न्याय की आस में पुलिस अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें न्याय मिलने की कोई आस नजर नहीं आ रही है।
मेडिकल परीक्षण में देरी पड़ी भारी
मेडिकल परीक्षण में देरी होने तथा स्नानादि के कारण दुष्कर्म के वे साक्ष्य नहीं मिल सके जो पीड़िता की तुरंत बरामदगी के बाद मेडिकल परीक्षण कराने के बाद प्राप्त हो सकते थे। यही वजह रही कि आरोपितों के खिलाफ कोई पुख्ता साक्ष्य एकत्रित नहीं हो सके।