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UP: घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद करेंगी आशा बहुएं, 800 को किया गया प्रशिक्षित

महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा के प्रति उनको जागरुक करने में आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका सुनिश्चित करने हेतु जनपद की 800 आशा बहुओं को प्रशिक्षित किया गया है। घरेलू हिंसा पर रोकथाम किए जाने के लिए अब आशाओं को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 05:48 PM (IST)Updated: Tue, 13 Oct 2020 05:48 PM (IST)
UP: घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद करेंगी आशा बहुएं, 800 को किया गया प्रशिक्षित
घरेलू हिंसा से निपटने के लिए बताए जाएंगे उपाय

हापुड़, जागरण संवाददाता। वर्तमान समाज में महिला हिंसा एक गंभीर समस्या है। इसकी जड़ें सामजिक ढांचों में है और समाज के सभी वर्गों में फैली हुई हैं। हर उम्र, वर्ग, धर्म, संस्कृति, जाति, इलाके व शैक्षिक स्तर की महिला इससे प्रभावित होती है। देखने में आता है कि महिलाओं के साथ भेदभाव का सिलसिला उनके जन्म से ही शुरू हो जाता है। जहां लड़कियों के मुकाबले लड़कों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप लिंग चयन आधारित भू्रण हत्या के मामले सामने आते हैं। यह भेदभाव और सामाजिक दर्जे में असमानता महिलाओं पर होने वाली हिंसा के मूल कारण हैं। घरेलू हिंसा पर रोकथाम किए जाने के लिए अब आशाओं को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है।

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महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा के प्रति उनको जागरुक करने में आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका सुनिश्चित करने हेतु जनपद की 800 आशा बहुओं को प्रशिक्षित किया गया है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अधीक्षक डॉ. दिनेश खत्री ने बताया कि महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के विभिन्न शारीरिक, मानसिक और सामाजिक दुष्परिणाम होते हैं। महिलाएं लगातार अपने अधिकारों और हितों से वंचित रह जाती हैं। सार्वजनिक एवं राजनीतिक मंचों पर उनका प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है और निर्णय लेने के पदों पर पहुंचने के अवसर घट जाते हैं।

स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाओं तथा रोजगार अवसरों तक उनकी पहुंच भी सीमित हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि आशाओं को दिए प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से आशाओं द्वारा धरातल स्तर पर किशोरियों एवं महिलाओं को उनके साथ होने वाली हिंसा के प्रति जागरुक करने का प्रयास किया जाएगा। आशाएं अपने समुदाय की महिलाओं के निकट होती हैं और उनके साथ पहले से ही उनका तालमेल बना रहता है। इसकी वजह से आशाएं ऐसी महिलाओं को आसानी से पहचान सकती हैं जिन्हें, हिंसा का कोई खतरा है या जो किसी प्रकार की हिंसा का सामना कर रही हैं।

उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण के बाद आशाएं अपने समुदाय में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के मुद्दों को पहचानने और उसमें हस्तक्षेप करने में मदद करेंगी। वर्तमान समाज में महिला हिंसा एक गंभीर समस्या है। इसकी जड़ें सामजिक ढांचों में है और समाज के सभी वर्गों में फैली हुई है। हर उम्र, वर्ग, धर्म, संस्कृति, जाति, इलाके व शैक्षिक स्तर की महिला इससे प्रभावित होती है। आमतौर पर माना जाता है कि पुरुष ही महिलाओं पर हिंसा करते हैं, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता। अक्सर औरत अपने परिवार की पितृसत्तात्मक (पुरुषों द्वारा नियंत्रित) सोच वाली महिला सदस्यों द्वारा भी हिंसा का शिकार होती रहती हैं।

उन्होंने बताया कि एक आशा को अकेले इस मुद्दे पर काम करना मुश्किल होगा, इसलिए ग्राम स्तर पर गठित महिला समूहों, ग्राम स्वास्थ्य समिति, कार्य क्षेत्र की आशाओं का समूह बनाकर हिंसा के खिलाफ काम करने के लिए समर्थन जुटा सकती हैं। इसके साथ सभी आशाओं को महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए कानूनी उपायों से भी अवगत कराया गया।

इसलिए इन्हें चुना

टीकाकरण, काउंसलिंग, जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य और अन्य मामलों में घर-घर जाने वाली आशा वर्कर महिलाओं को इस विषय में जागरूक कर सकती हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि लगातार घरों में आने-जाने से महिलाओं और आशा वर्कर के बीच दोस्ताना और सुविधाजनक माहौल बन जाता है। ऐसे में घरेलू हिंसा की शिकार महिला आशा वर्कर को सहजता से पूरी बात बता सकती है। उन्हें सरकारी की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं के बारे में भी बताया जाएगा।


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