नैपियर व लोबिया से भरेगा बुंदेलखंड के मवेशियों का पेट
जागरण संवाददाता हमीरपुर जिला प्रभारी मंत्री रविद्र जायसवाल के सुझाव पर जिला प्रशासन जिले म
जागरण संवाददाता, हमीरपुर : जिला प्रभारी मंत्री रविद्र जायसवाल के सुझाव पर जिला प्रशासन जिले में चारा विकास की संभावनाएं तलाशने में जुटा है। इसके लिए जहां जिले के तीन अधिकारियों ने झांसी स्थित चारागाह में चारा की किस्मों का अध्ययन किया। वहीं जल्द ही जिले से दस सदस्यीय टीम प्रशिक्षण प्राप्त करने को वहां भेजने पर विचार चल रहा है। ऐसे में जिले के 464 हेक्टेयर में फैले चारागाहों में हरियाली आने की संभावना तेज है। कम पानी में पैदा होने वाला नैपियर व लोबिया से मवेशियों का पेट भरने की योजना है। वहीं ऊसर पड़ी 8087 हेक्टेयर भूमि को भी उपयोग में लाया जा सकता है।
कृषि कार्य में बढ़ते मशीनरी के प्रयोग से जहां भूसे की कमी हो रही है। ऐसे में मवेशियों के लिए जिले में भरपूर चारा उपलब्ध कराने को जिला प्रभारी राज्य मंत्री स्टांप न्यायालय एवं पंजीयन विभाग रविद्र जायसवाल ने जिला प्रशासन को झांसी स्थित चारागाह से तकनीकि प्राप्त करने की सलाह दी थी। जिस पर जिले से तीन सदस्यीय दल में शामिल जिला विकास अधिकारी विकास मिश्रा, भूमि संरक्षण अधिकारी राठ अशोक यादव व कृषि विज्ञान केंद्र कुरारा के कृषि वैज्ञानिक डा. एसपीएस सोमवंशी ने झांसी स्थित चारागाह का भ्रमण कर चारा की किस्मों का अध्ययन किया। साथ ही इसके उत्पादन की जिले में अपार संभावनाएं बताई। उत्पादन के लिए चारे के प्रकार
भूमि संरक्षण अधिकारी के अनुसार तीन प्रकार का चारा उपलब्ध है। जिसे एक बार लगाने पर कई वर्षों तक इसका उत्पादन लिया जा सकता है। इसमें कम पानी में पैदा होने वाला नैपियर व लोबिया है। इसके अलावा बिना पानी के पैदा होने वाला और मवेशियों में पानी की कमी को पूरा करने वाले चारे की दस किस्में चारागाह में मौजूद है। इसके अलावा चारा पेड़ जिससे मवेशियों को छाया भी मिलती है। वहीं उसी की डाल से उसे भोजन भी मिलता है। इनका उत्पादन बेकार पड़ी भूमि पर किया जा सकता है। बताया कि जल्द ही इसके लिए दस सदस्यीय टीम प्रशिक्षण को भेजने की तैयारी की जा रही है। इसकी फाइल स्वीकृति के लिए जिलाधिकारी को भेजी जाएगी। जिले की भूमि पर नजर
जिले का कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल 390865 हेक्टेयर है। जिसमें कृषि योग्य भूमि के अलावा वन क्षेत्र भी शामिल है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार जिले में 464 हेक्टेयर चारागाह है। जो मौजूदा में अपना अस्तित्व खो चुके है। चारा विकास की संभावनाएं बनने पर जहां यह क्षेत्र हराभरा होगा और इससे मवेशियों को चारा उपलब्ध होगा। वहीं जिले की ऊसर व बेकार पड़ी 8087 हेक्टेयर भूमि का भी उपयोग चारा उत्पादन में पशु पालकों द्वारा किया जा सकेगा।