देह परदेस में, पर दिल में मातृभूमि की धड़कन
अभिषेक द्विवेदी महोबा सुना है खरीद लिया है शहर
अभिषेक द्विवेदी, महोबा : सुना है खरीद लिया है शहर में उसने करोड़ों का आंगन, मगर आंगन दिखाने आज भी वह अपने बच्चों को गांव लाता है..इंसान कहीं पर भी रहे उसे अपनी माटी की याद आती ही है। ओ मेरे देश मेरी जान मेरे प्यारे वतन, तुझपे कुर्बान है ये सारा चमन..यह पंक्तियां उन बेबस जुबां से निकल रहीं है जो अपनों को छोड़ कर परदेश में रोजी रोटी की तलाश में हैं और इस कोरोना के संकटकाल में लॉकडाउन के चलते स्वजनों से मिल नहीं सकते। प्रवासियों को को मातृभूमि और स्वजनों की चिता हुई तो वे तपती धूप, भूखे प्यासे और पैरों के छालों के साथ किसी तरह घरौंदों में पहुंच रहे है। बात बेबसी से इतर करें तो कुछ ऐसे प्रवासी है, जो रहने वाले जनपद के है और शिकागो, लंदन, दिल्ली, हैदराबाद आदि जगहों में रहकर नौकरी कर रहे है। शरीर परदेश में है पर उनके दिलों में मातृभूमि की धड़कन सुनाई दे रही है। वे अपनी ड्यूटी निभा रहे है और बेबस बुंदेलों की मदद को भी हर कदम पर तैयार है। यहां कोई शख्स नहीं है बल्कि एक समूह है और वह है अप्रवासी बुंदेलखंडी। ग्रुप में करीब 150 लोग है। संकट के समय में वह गंभीर है और बीते दिनों सैलरी से कटौती कर 1,23000 का चंदा करके 1,12000 रुपए सर्वधर्म भोजन सेवा चला रहे मनमोहन सिंह उर्फ बाबला तो 11000 रुपए मास्क बनाकर वितरित कर रही गीतांजलि को दिए थे। सराहनीय कार्य आज भी जारी है।
बांटी पीपीई-किट, ग्लब्स व मास्क
महोबा : प्रवासी बुंदेलखंडी समूह ने फिर चंदा एकत्र कर 30 पीपीई किट, एक हजार मास्क, 270 सैनिटाइजर, 1000 मास्क की व्यवस्था की। समूह के महोबा में रह रहे 6-7 लोगों ने इनमें से कुछ सामान जिलाधिकारी अवधेश कुमार तिवारी को सौंपा। पुलिस चौकी, थानों, बसों में जा रहे प्रवासी मजदूरों को भी मास्क और सैनिटाइजर का वितरण किया गया।