154 श्रमिकों को वन विभाग के अफसरों ने खदेड़ा
लॉकडाउन में विभिन्न प्रदेशों से लौटे प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराने के लिए प्रदेश सरकार कुछ भी दावे
संवाद सूत्र, बेलाताल (महोबा) : क्षेत्र के खरका तालाब की सफाई में जुट 154 मनरेगा श्रमिकों को वन विभाग के अफसरों ने खदेड़ दिया। इससे श्रमिकों के सामने फिर से स्वजनों का पेट पालने की समस्या खड़ी हो गई है। क्योंकि, तालाब खोदाई को दो विभागों में जंग छिड़ने के बाद श्रमिकों का मेहनताना भी फंस गया है। हाल यह तब है कि जब प्रदेश सरकार लॉकडाउन के दिनों में सभी प्रवासियों को रोजगार दिलाने की बात कह रही है।
जैतपुर के निर्माणाधीन डिग्री कॉलेज के पास खरका तालाब के सिल्ट की सफाई के लिए विकास विभाग की ओर से बीते दिनों करीब 154 प्रवासी श्रमिकों को काम पर लगाया गया। श्रमिकों का आरोप है कि शनिवार को वन विभाग के अफसर आए और उन्हें हड़काते हुए भगा दिया। साथ ही चेतावनी भी दी कि दोबारा दिखे तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। श्रमिकों ने मामले की जानकारी प्रधान प्रतिनिधि मौलाबख्स व खंड विकास अधिकारी को दी।
इस पर खंड विकास अधिकारी प्रशांत ने वन रेज अधिकारी बीवी सिंह से बात कही। इस पर वन विभाग के अधिकारी ने तालाब का रकबा वन विभाग के अंतर्गत आने का हवाला दिया। खंड विकास अधिकारी ने मजदूरों को रोजगार देने की मंशा बताई पर वनरेज अधिकारी नहीं माने। इस पर बीडीओ ने एसडीएम मो. आवेश को पूरी बात बताई। साथ ही खरका तालाब के क्षेत्रफल राजस्व या वन भूमि की नपाई कराने का सुझाव दिया। ऐसे में वन व विकास विभाग के अफसरों के बीच लड़ाई होने से श्रमिकों के सामने स्वजनों का पेट पालने की दिक्कत हो गई है। खरका तालाब वन विभाग की जमीन में है। वन क्षेत्र में कोई भी दूसरी कार्यदायी संस्था काम नहीं करा सकती है। मनरेगा के तहत यदि उन्हें रुपये मिले तो वन विभाग तालाब की खुदाई कराने को तैयार हैं।
बीवी सिंह, वन रेज अधिकारी पूर्व में मनरेगा का लाखों रुपये वन विभाग को सौंपा गया था, लेकिन विभाग ने मनरेगा का बजट खर्च नहीं किया। खरका तालाब का पानी व भूमि का कोई उपयोग कतई न करने का लिखित अनुरोध करने के बाद भी वन विभाग मजदूरों को काम नहीं करने दे रहा है।
प्रशांत कुमार, खंड विकास अधिकारी यह थी विकास विभाग की मंशा
खंड विकास अधिकारी प्रशांत कुमार ने बताया कि लॉकडाउन में प्रवासियों को काम देने के उद्देश्य से खरका तालाब की सफाई कराई जा रही है। ताकि गर्मी के दिनों में मवेशियों व पक्षियों को पेयजल के लिए परेशान न होना पड़े।