योगी आदित्यनाथ ने शिष्यों को दिया आशीर्वाद, कहा-गुरु परंपरा की प्रतीक है गोरक्षपीठ Gorakhpur News
गुरु पूर्णिमा पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने गुरु की पूजा अर्चना की। उन्होंने उपस्थित अपने शिष्यों को गुरु महिमा के बारे में जानकारी दी।
By Edited By: Published: Tue, 16 Jul 2019 08:53 PM (IST)Updated: Wed, 17 Jul 2019 09:20 AM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि गोरक्षपीठ और गुरु पूर्णिमा का अटूट नाता है क्योंकि गुरु-शिष्य परंपरा पीठ के मूल में है। गुरु परंपरा से ही नाथ परंपरा आगे बढ़ी है। यही वजह है कि गोरक्षपीठ को गुरु परंपरा के प्रतीक के तौर पर पूरी दुनिया में मान्यता मिली है।
मुख्यमंत्री मंगलवार को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गोरखनाथ मंदिर के दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में अपने शिष्यों को आशीर्वचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि गुरु परंपरा को भारत की उद्दात परंपरा कहा जाता है। वैदिक काल से समय-समय पर इस परंपरा को अनेक ऋषियों ने ऊंचाई प्रदान की है। महर्षि वेदव्यास इस परंपरा के सबसे प्राचीन गुरु हैं। हर काल में इस परंपरा ने कल्याण का कार्य किया है। इस क्रम में उन्होंने मध्य काल के प्रतिष्ठित गुरु गुरुनानक देव व गुरु गोविंद सिंह और समर्थ गुरु रामदास को याद किया और लोक कल्याण से जुड़े उनके कायरें पर प्रकाश डाला। कहा कि जब देश विदेशी आक्रांताओं से जूझ रहा था तो गुरु नानक ओर गुरु गोविंद सिंह ने गुरु-शिष्य परंपरा की अद्भुत मिसाल पेश की। समर्थ गुरु रामदास ने जिस तरह से छत्रपति शिवाजी को विदेशी आक्रांताओं से मुकाबले की राह दिखाई उसका लोहा सभी ने माना। गोरक्ष पीठ भी गुरु परंपरा को आगे बढ़ाते हुए लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर रही है।
'मैं' और 'मेरा' के भाव से ऊपर उठना होगा अपने गुरु ब्रह्मालीन महंत अवेद्यनाथ को याद करते हुए योगी ने कहा कि उन्होंने पीठ के लोक कल्याणकारी अभियान को गति दी। शिक्षा, चिकित्सा, गो-सेवा सहित सेवा के सभी प्रकल्पों को स्थापित किया और उसमें किसी तरह का भेदभाव न होना सुनिश्चित किया। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति आदर्श गुरु या शिष्य बन सकता है लेकिन इसके लिए उसे अपने मन पर नियंत्रण करना होगा। 'मैं' और 'मेरा' के भाव से ऊपर उठना होगा क्योंकि यही दुख के कारण हैं, जो न तो बेहतर गुरु बनने देंगे और न ही बेहतर शिष्य। योगी ने अपने शिष्यों को सलाह दी कि वह लोक कल्याण के लिए पूरे मन से लगे क्योंकि अधूरे मन से न ही सफलता मिलेगी और न ही अंत:करण को खुशी।
गुरु को सूर्य के समतुल्य बताते हुए योगी ने कहा कि जिस तरह सूर्य अपनी ऊर्जा देने में भेदभाव नहीं करता, उसी तरह गुरु भी अपने सभी शिष्यों पर समान रूप से कृपा करता है। शिष्यों को आशीर्वचन देने से पहले मुख्यमंत्री ने गोरक्षनाथ, गंभीरनाथ, दिग्विजयनाथ और ब्रह्मालीन महंत अवेद्यनाथ की पूजा-अर्चना की और उनका आशीर्वाद लिया। चीन ने स्वीकारी योग की महत्ता, कुंभ को मिली वैश्रि्वक मान्यता संबोधन के दौरान मुख्यमंत्री ने योग को भारत की थाती बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को विश्व योग दिवस की घोषणा की तो शुरू में कम ही देश इससे जुड़े।
लेकिन जैसे-जैसे देशों ने इसके महत्व को समझा, स्वीकार करते गए। योग दिवस के पांचवें वर्ष में विश्व के 193 देशों ने इसे मनाया। चीन जैसा देश, जो धर्म को नहीं मानता, उसने भी योग की परंपरा से खुद को जोड़ लिया। इस वर्ष प्रयागराज में हुए कुंभ के आयोजन की चर्चा करते हुए योगी ने कहा कि सकारात्मक सोच और प्रतिबद्धता से ही उसे वैश्विक मान्यता मिल सकी।
मुख्यमंत्री मंगलवार को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गोरखनाथ मंदिर के दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में अपने शिष्यों को आशीर्वचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि गुरु परंपरा को भारत की उद्दात परंपरा कहा जाता है। वैदिक काल से समय-समय पर इस परंपरा को अनेक ऋषियों ने ऊंचाई प्रदान की है। महर्षि वेदव्यास इस परंपरा के सबसे प्राचीन गुरु हैं। हर काल में इस परंपरा ने कल्याण का कार्य किया है। इस क्रम में उन्होंने मध्य काल के प्रतिष्ठित गुरु गुरुनानक देव व गुरु गोविंद सिंह और समर्थ गुरु रामदास को याद किया और लोक कल्याण से जुड़े उनके कायरें पर प्रकाश डाला। कहा कि जब देश विदेशी आक्रांताओं से जूझ रहा था तो गुरु नानक ओर गुरु गोविंद सिंह ने गुरु-शिष्य परंपरा की अद्भुत मिसाल पेश की। समर्थ गुरु रामदास ने जिस तरह से छत्रपति शिवाजी को विदेशी आक्रांताओं से मुकाबले की राह दिखाई उसका लोहा सभी ने माना। गोरक्ष पीठ भी गुरु परंपरा को आगे बढ़ाते हुए लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर रही है।
'मैं' और 'मेरा' के भाव से ऊपर उठना होगा अपने गुरु ब्रह्मालीन महंत अवेद्यनाथ को याद करते हुए योगी ने कहा कि उन्होंने पीठ के लोक कल्याणकारी अभियान को गति दी। शिक्षा, चिकित्सा, गो-सेवा सहित सेवा के सभी प्रकल्पों को स्थापित किया और उसमें किसी तरह का भेदभाव न होना सुनिश्चित किया। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति आदर्श गुरु या शिष्य बन सकता है लेकिन इसके लिए उसे अपने मन पर नियंत्रण करना होगा। 'मैं' और 'मेरा' के भाव से ऊपर उठना होगा क्योंकि यही दुख के कारण हैं, जो न तो बेहतर गुरु बनने देंगे और न ही बेहतर शिष्य। योगी ने अपने शिष्यों को सलाह दी कि वह लोक कल्याण के लिए पूरे मन से लगे क्योंकि अधूरे मन से न ही सफलता मिलेगी और न ही अंत:करण को खुशी।
गुरु को सूर्य के समतुल्य बताते हुए योगी ने कहा कि जिस तरह सूर्य अपनी ऊर्जा देने में भेदभाव नहीं करता, उसी तरह गुरु भी अपने सभी शिष्यों पर समान रूप से कृपा करता है। शिष्यों को आशीर्वचन देने से पहले मुख्यमंत्री ने गोरक्षनाथ, गंभीरनाथ, दिग्विजयनाथ और ब्रह्मालीन महंत अवेद्यनाथ की पूजा-अर्चना की और उनका आशीर्वाद लिया। चीन ने स्वीकारी योग की महत्ता, कुंभ को मिली वैश्रि्वक मान्यता संबोधन के दौरान मुख्यमंत्री ने योग को भारत की थाती बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को विश्व योग दिवस की घोषणा की तो शुरू में कम ही देश इससे जुड़े।
लेकिन जैसे-जैसे देशों ने इसके महत्व को समझा, स्वीकार करते गए। योग दिवस के पांचवें वर्ष में विश्व के 193 देशों ने इसे मनाया। चीन जैसा देश, जो धर्म को नहीं मानता, उसने भी योग की परंपरा से खुद को जोड़ लिया। इस वर्ष प्रयागराज में हुए कुंभ के आयोजन की चर्चा करते हुए योगी ने कहा कि सकारात्मक सोच और प्रतिबद्धता से ही उसे वैश्विक मान्यता मिल सकी।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें