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    गोरखपुर में पांच दशक तक रहा द्वितीय विश्व युद्ध का यह हीरो, ऐसा था इनका जीवन

    By Pradeep SrivastavaEdited By:
    Updated: Mon, 27 Jul 2020 01:50 PM (IST)

    द्वितीय विश्वयुद्ध के हीरो सरदार दिलीप सिंह मजीठिया पे अपने जीवन के पांच दशक गोरखपुर के सरदार नगर में गुजारे।

    गोरखपुर में पांच दशक तक रहा द्वितीय विश्व युद्ध का यह हीरो, ऐसा था इनका जीवन

    डा. राकेश राय, गोरखपुर। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आज के म्यांमार और तब के बर्मा में भारतीय वायु सेना की कमान संभालने वाले सरदार दिलीप सिंह मजीठिया सोमवार को जीवन के 100 पूरे कर रहे हैं। कम ही लोगों को पता है कि ब्रिटिश भारत में वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर का पद सुशोभित कर चुके सरदार मजीठिया के जीवन के पांच दशक गोरखपुर के सरदार नगर में बीते हैं। यहां रहकर उन्होंने न केवल पूर्वांचल की धरती को औद्योगिक रूप से उर्वर बनाया बल्कि मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय जैसे तकनीकी शैक्षणिक संस्थान की नींव तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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    बर्मा के मोर्चे पर मिली थी तैनाती

    सरदार दिलीप सिंह वर्ष 1940 जब भारतीय वायुसेना में शामिल हुए तो उन दिनों दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था। ब्रिटिश गवर्नमेंट ने उन्हें बर्मा के मोर्चे पर तैनात किया तो वह न केवल बमवर्षक विमानों के साथ वहां डटे रहे बल्कि साहस और वीरता के प्रदर्शन के चलते हीरो भी कहलाए। हालांकि सेना के साथ उनका साथ लंबा नहीं रहा। पारिवारिक दायित्वों के चलते उन्हें जल्द ही स्वैच्छिक अवकाश लेना पड़ा। मगर हवाई उड़ान का शौक उनका फिर भी जारी रहा। जब अवसर मिला वह विमान उड़ाने का शौक पूरा करने से नहीं चूके।

    1947 में गोरखपुर आए

    सेना से अवकाश लेने के बाद 1947 के करीब में वह गोरखपुर आ गए और यहां सरदार नगर में पहले से स्थापित अपने परिवार की सरैया सुगर मिल का काम देखने लगे। लंबे समय तक वह इस चीनी मिल के चेयरमैन रहे। उनके चेयरमैन रहते वह चीनी मिल एशिया की ख्यातिप्राप्त मिल हो गई। उनके कार्यकाल में सरैया स्टील कंपनी और रोलिंग मिल सहित कई अन्य उद्योग भी खूब फले-फूले। 90 के दशक में अस्वस्थता के चलते वह अपनी आस्‍ट्रेलियन पत्नी जाॅन सैंडर्स के साथ दिल्ली में रहने लगे। हालांकि उनके सरदार नगर आने-जाने का सिलसिला बना रहा। बीते दो-तीन वर्ष में अधिक उम्र के चलते उनके यहां आने पर विराम लग गया। आज भी सरदार नगर में करीब पांच एकड़ में उनकी कोठी मौजूद है।

    एमएमएमयूटी के लिए दान में दे दी 317 एकड़ जमीन

    गोरखपुर में तकनीकी संस्थान खोलने को लेकर जमीन की अड़चन का मामला जब सरदार दिलीप सिंह तक पहुंचा तो उन्होंने इसमें खुद पहल की। 1970 में तकनीकी संस्थान खोलने के लिए अपनी 317 एकड़ जमीन दान में दे दी। वही तकनीकी संस्थान अब मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का रूप ले चुका है। कुशीनगर का बुद्ध पीजी कालेज, बुद्ध इंटर कालेज, गोरखपुर का लेडी प्रसन्न कौर इंटर कालेज सरदारनगर भी आज दिलीप सिंह मजीठिया के ही प्रबंधन में ही चलता है।

    चाटर्ड प्लेन खरीदकर बनाया निजी एयरपोर्ट

    गोरखपुर आने के बाद भी सरदार दिलीप सिंह का हवाई जहाज उड़ाने का शौक बना रहा। अपने शौक का पूरा करने के लिए उन्होंने न केवल एक चाटर्ड प्लेन खरीदा बल्कि चीनी मिल परिसर में ही अपना निजी एयरपोर्ट भी बनाया।

    नेपाल की धरती पर पहली बार उतारा जहाज

    कम ही लोग जानते होंगे कि नेपाल की धरती पर पहली बार हवाई जहाज उतारने का श्रेय दिलीप सिंह मजीठिया को ही है। उन्होंने 23 अप्रैल 1949 को काठमांडू के परेड ग्राउंड में यह ऐतिहासिक कार्य किया था। आज भी काठमांडू के त्रिभुवन हवाई अड्डे पर लगी उनकी तस्वीर इसकी पुष्टि है।