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World COPD Day 2022: धूमपान व प्रदूषण से छलनी हो रहे फेफड़े, गोरखपुर में सीओपीडी के 80 हजार मरीज

World COPD Day 2022 गोरखपुर में लगभग 80 हजार लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। नवजात सिगरेट तो नहीं पीते लेकिन प्रदूषित वातावरण के चलते उनके फेफड़े प्रभावित हो रहे हैं। यदि प्रदूषण कम नहीं किया गया तो आगे आने वाली पीढ़ी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Wed, 16 Nov 2022 08:57 PM (IST)
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World COPD Day 2022: धूमपान व प्रदूषण से से फेफड़ा खराब हो रहा है। - प्रतीकात्मक तस्वीर

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) का स्थायी उपचार नहीं है। समय से इस रोग की पहचान हो जाने पर दवा व बचाव से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसका मुख्य कारण धूमपान व प्रदूषण है। दमा भी यदि अनियंत्रित है तो आगे चलकर सीओपीडी में बदल जाता है। इस बीमारी में फेफड़े छलनी हो जाते हैं। सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। विशेषज्ञों के अनुसार जिले में लगभग 80 हजार लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं।

नवजात सिगरेट तो नहीं पीते लेकिन प्रदूषित वातावरण के चलते उनके फेफड़े प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए आगे चलकर उनमें भी इस बीमारी के होने की आशंका है। इसकी पूरी तरह रोकथाम के लिए धूमपान व प्रदूषण पर पर रोक लगानी होगी। इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल नवंबर के तीसरे बुधवार को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है।

नवजातों के फेफड़ों को प्रभावित कर रहा प्रदूषण

विशेषज्ञों के मुताबिक जिले में सीओपीडी का मुख्य कारण सिगरेट के अलावा परंपरागत चूल्हे पर खाना बनाना व प्रदूषित वातावरण है। इसकी वजह से सीओपीडी या अन्य सांस संबंधी रोगों से लोग ग्रसित हो रहे हैं। यह फेफड़े के कैंसर का भी कारण बन रहा है। धूमपान तो केवल बड़ों को प्रभावित कर रहा है, लेकिन प्रदूषण नवजातों को भी नहीं छोड़ रहा है। इस बीमारी के बढ़ते जोखिम को रोकने के लिए राष्ट्रीय सीओपीडी रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम के रूप में एक ठोस राष्ट्रव्यापी प्रयास करने की जरूरत है। श्वांस सबंधी रोगों के उपचार के लिए गांव-गांव पहुंचना होगा।

कारण

परंपरागत चूल्हे पर खाना बनाना, खुले में कूड़ा जलाना, अनियंत्रित दमा, प्रदूषण, धूमपान।

लक्षण

लंबे समय तक खांसी, बलगम, सीने में जकड़न, सांस फूलना।

बचाव

स्पायरोमेट्री की जांच, इनहेलर का नियमित व सही इस्तेमाल, फ्लू व निमोकाकल का टीकाकरण, प्राणायाम, संतुलित आहार, धूमपान से बचाव।

यदि प्रदूषण कम नहीं किया गया तो आगे आने वाली पीढ़ी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। आज से 20 साल पहले जो महिलाएं परंपरागत चूल्हे पर खाना बनाती थीं, उनमें से ज्यादातर में सीओपीडी मिलती है। - डा. नदीम अर्शद, सीना रोग विशेषज्ञ।

आज जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, वे धूमपान नहीं कर सकते, लेकिन प्रदूषण के चलते प्रतिदिन पांच-छह सिगरेट पीने जितना उन्हें नुकसान हो रहा है। इसका असर उनके फेफड़ों पर होगा। आगे चलकर वे बीमार हो सकते हैं। - डा. रत्नेश तिवारी, सीना रोग विशेषज्ञ।

पराली जलने, दीपावली पर पटाखे जलाने व हवा में नमी के कारण इस समय प्रदूषण ज्यादा है। इसलिए सांस के रोगियों की संख्या बढ़ गई है। दमा के रोगी घर में रहें। दमा अनियंत्रित हो रहा हो तो डाक्टर से परामर्श लें। - डा. अजय कुमार श्रीवास्तव, सीना रोग विशेषज्ञ।

सीओपीडी का कोई स्थायी उपचार नहीं है। इसलिए सतर्कता व बचाव बहुत जरूरी है। दवा व बचाव के माध्यम से हम इस बीमारी को नियंत्रित कर सकते हैं। अस्थमा के रोगियों को विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है। - डा. सूरज जायसवाल, सीना रोग विशेषज्ञ।

अस्थमा से ज्यादा गंभीर रोग है सीओपीडी

बीआरडी मेडिकल कालेज के नर्सिंग कालेज में क्रानिक आब्सट्रक्टिव डिजीज (सीओपीडी) दिवस पर बुधवार को गोष्ठी आयोजित की गई। मेडिकल कालेज प्राचार्य डा. गणेश कुमार ने कहा कि सीओपीडी, अस्थमा से भी गंभीर रोग है। इससे बचाव ही सर्वोत्तम है। धुएं के संपर्क में रहने वाले लोगों को यह रोग हो सकता है। इस अवसर पर डा. डीके श्रीवास्तव, डा. राजकुमार, नर्सिंग कालेज की प्राचार्य डा. अलका सक्सेना व छात्र-छात्राएं उपस्थित थीं।