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कसौटी : साहब का एकतरफा संवाद Gorakhpur News

पढ़ें गोरखपुर से उमेश पाठक का साप्‍ताहिक कॉलम-कसौटी...

By Satish ShuklaEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 05:39 PM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 05:39 PM (IST)
कसौटी : साहब का एकतरफा संवाद Gorakhpur News

उमेश पाठक, गोरखपुर। सरकारी कामकाज में 'ट्विटर की बढ़ती दखल अब किसी से छिपी नहीं है। अपने प्रदेश में भी आला अधिकारी इसका धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं। जनता भी घर बैठे दो लाइनें लिखकर अपनी बात सरकार तक पहुंचा देती है। लोगों के साथ संवाद बना रहे, यही सोच कर सरकार ने जिला स्तर के अधिकारियों को भी इस प्लेटफार्म पर सक्रिय रहने का निर्देश दिया। करीब तीन महीने पहले गोरखपुर के एक बड़े साहब का एकाउंट वीआइपी हो गया, यानी ऊपर नीला टिक लग गया। उम्मीद थी कि इस प्लेटफार्म से बड़े साहब जरूरी सूचनाएं देने के साथ जनता की बात भी सुनेंगे। पर, यह हो न सका। इनके ट्विटर हैंडल से सूचनाएं तो पड़ती हैं, लेकिन उसपर आने वाले सवालों का जवाब आज तक नहीं दिया गया। अपने पड़ोस के जिलों में अधिकतर सवालों के जवाब आ जाते हैं, लेकिन यहां के साहब एकतरफा संवाद में ही भरोसा रखते हैं।

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निशाना चूकते ही जेब ढीली 

जिले की सीमा पर बने चेकपोस्टों की भी अजब-गजब कहानियां हैं। इनमें एक चेकपोस्ट ऐसा भी है, जहां ड्यूटी पर तैनात बड़े साहब से लेकर निचले स्तर तक के कर्मचारी आपस में निशाना लगाने की प्रतियोगिता आयोजित करते हैं। जिसका निशाना चूक जाता है, उसे जेब ढीली करनी पड़ती है। दरअसल चेकपोस्ट के बगल में एक डस्टबिन है। यहां ड्यूटी देने वाले बड़े साहब से लेकर अन्य कर्मियों तक की सेवा में प्रतिदिन लस्सी व चाय-नाश्ता पेश किया जाता है। इसके बाद कुर्सी पर बैठे-बैठे खाली दोना व गिलास डस्टबिन में फेंकने की प्रतियोगिता होती है। जिसका कूड़ा डस्टबिन से बाहर गिरता है, उसे 100 रुपये का जुर्माना देना होता है। अब तक की प्रतियोगिता में बड़े साहब का निशाना सर्वाधिक बार चूका है। पान के शौकीन एक दीवानजी तो इस नियम से खासे परेशान हैं। जुर्माना भरने के डर से बेचारे बार-बार उठकर कूड़ेदान के पास तक जाते हैं।

इनका द्वंद्व न जाने कोय

लॉकडाउन में धीरे-धीरे बाजार खुलने लगे हैं, लेकिन कई ट्रेडों के व्यापारी आज भी परेशान हैं। उनकी दुकानें खोलने की अनुमति नहीं मिल रही है, कोशिश लगातार हो रही है, लेकिन नतीजा नहीं निकल रहा। ये व्यापारी अजीब से द्वंद्व से जूझ रहे हैं। आए दिन वे बड़े साहब के पास जाते हैं, लेकिन साहब हैं कि सुनते ही नहीं। हर बार टीम में कोई नया चेहरा शामिल होता है, फिर भी नतीजा सिफर रहता है। बाहर निकलते ही साहब को खूब कोसते भी हैं, लेकिन सार्वजनिक मंच पर कुछ भी बोलने से बचते हैं। डर इस बात का है कि साहब ने दिल पर ले लिया तो क्या होगा? उनके मन में जल में रहकर मगर से बैर न करने वाले ख्याल उपजते रहते हैं। मन के इस द्वंद्व  को वे आपस में साझा करते हैं। वे कहते हैं कि उनके द्वंद्व को कोई और समझ ही नहीं सकता।

कंफ्यूज करते हैं गुरुजन

आलीशान इमारतों में चलने वाले स्कूलों के गुरुजनों की शिक्षण शैली आजकल खूब चर्चा में है। चर्चा करने वाले भी गुरुजन ही हैं, अंतर बस इतना है कि ये छोटे भवनों में पढ़ाते हैं और उनपर सरकार की मुहर लगी है। शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल की महिला शिक्षक की ओर से दिए गए 'संज्ञाÓ के उदाहरण सार्वजनिक हुए तो उसके बहाने कई परतें उधडऩे लगीं। सरकारी गुरुजनों के अधिकतर ग्रुप ऐसी ही बहस से भरे पड़े हैं। अधिकतर के ब'चे आलीशान इमारतों वाले संस्थानों में पढ़ते हैं, इसलिए सबके पास उदाहरण भी खूब हैं। सबका यही निष्कर्ष है कि निजी संस्थानों में गुरुजन पढ़ाते कम, कंफ्यूज ज्यादा करते हैं।  गणित में सर्किल समझाने के लिए गोले का उदाहरण देते हैं। ग्रुप में शामिल हर गुरुजन गड़बडिय़ों के एक से बढ़कर एक उदाहरण देते रहे। कई ने ये उदाहरण भी दिए कि उनके सुझाव देने के बाद कंफ्यूजन दूर हुआ।


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