मुसाफिर हूं यारों : रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी Gorakhpur news
इस बार के साप्ताहिक कॉलम में पूर्वोत्तर रेलवे के कर्मचारियों और अधिकारियों की कार्य प्रणाली पर फोकस करते हुए दिलचस्प रिपोर्ट दी गई है। आप भी पढ़ें गोरखपुर से प्रेम नारायण द्विवेदी का साप्ताहिक कॉलम मुसाफिर हूं यारों---
प्रेम नारायण द्विवेदी, गोरखपुर। इस वैश्विक महामारी में न चाहते हुए भी रेलवे के केंद्रीय अस्पताल में एक वेंटिलेटर की व्यवस्था हो गई। 'जांबाज सोचने लगे, यह तो कोरोना से भी बड़ा संकट है। हालांकि वेंटिलेटर पड़ा रहा और मरीज रेफर होते रहे। एक 'जांबाज से रहा नहीं गया। उसने 'रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी की तर्ज पर वेंटिलेटर का ऐसा प्रयोग किया कि वह उपयोग लायक नहीं रहा। इसके बाद महामारी से दो-दो हाथ करने का दंभ भरने वाले 'योद्धाओं ने राहत की सांस ली, लेकिन उनका यह कृत्य कर्मचारियों के दिल में आज भी चुभ रहा है। बातचीत में कर्मचारी यूनियन के एक पदाधिकारी के मन की पीड़ा बाहर आयी। बोले, करीब 400 बेड वाले अस्पताल के 500 स्टाफ एक वेंटिलेटर तक की सुविधा नहीं दे पा रहे। दो डायलिसिस मशीनें हैं, वह भी हांफ रही हैं। शायद यही वजह है कि संसद में भी अस्पताल के गुण गाए जाने लगे हैं।
नंबर प्लेट के चक्कर में बोहनी को तरसे
पुराने वाहनों पर भी हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट की अनिवार्यता क्या हुई, बिचौलिए से लेकर बाबू और साहब तक पूरे दो दिन बोहनी के लिए भी तरस गए। मामला ऊपर तक पहुंचा तो मैनेज हुआ। खैर, सिस्टम में सेंधमारी के लिए शासन ने सेवादारों को सवा महीने का पर्याप्त समय दे दिया है। हुआ यह कि बीते 19 अक्टूबर को नए-पुराने सभी वाहनों पर हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट की अनिवार्यता लागू कर दी गई। व्यवस्था लागू होते ही आरटीओ दफ्तर में उदासी छा गई। न एक भी आनलाइन आवेदन हुआ और न नई नंबर प्लेट लगी। नई नंबर प्लेट के बिना किसी भी वाहन की फाइल तैयार नहीं हुई। साहबों की टेबल खाली होते ही हड़कंप मच गया। दो दिन में सुविधा शुल्क की बोहनी तक नहीं हुई। अब एक दिसंबर से हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट फिर से अनिवार्य होगी। नई नंबर प्लेट के बिना सभी कार्य ठप पड़ जाएंगे।
साहब को जरूरत है, इनाम ले लो
साहब को जरूरत पड़ती है, तो इनाम बांटने लगते हैं। वे अपने इस पुनीत कार्य से रेलवे की परंपरा को गर्व के साथ आगे बढ़ाते हैं। फंड नहीं रहने पर दूसरे बजट में सेंधमारी कर लेते हैं। खास बात यह है कि पुरस्कार चहेते को ही मिलता है। वजह, आवश्यकता पर वह पुरस्कार की धनराशि वापस कर दे। पिछले सप्ताह बोनस की अपडेट जानकारी लेने के लिए एक कर्मचारी संगठन के कार्यालय में पहुंचा। सब चुप थे। सन्नाटा पसरा था। पूछने पर पदाधिकारी बोले। एक तो बोनस की घोषणा नहीं हुई, ऊपर से अधिकारियों के विदाई समारोह में जेब ढीली करनी पड़ रही है। एक कर्मचारी से रहा नहीं गया। बोले, यहां तो कर्मचारियों को भी सहयोग करना पड़ रहा है। करीबियों को तो इनाम देकर वापस ले लिया जाता है। तीसरे ने पत्ता खोल दिया। इनाम मिलता किसे है। घूम फिर कर साहब की जेब में चला जाता है।
महंगाई ने बढ़ा दिया पैसेंजर का भाव
स्पेशल ट्रेनों ने पूर्वांचल के लोगों की राह आसान कर दी है, लेकिन कुछ ऐसे भी यात्री हैं, जो अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं। उन्हें दिल्ली, मुंबई की यात्रा तो नहीं करनी, लेकिन नौतनवां, बढऩी, आनंदनगर, बस्ती, खलीलाबाद, कप्तानगंज और देवरिया से प्रतिदिन गोरखपुर तक का सफर जरूर तय करना है। कुछ पढ़ते, तो कुछ पढ़ाते हैं। किसी को डाक्टर के पास जाना है, तो किसी को मंडी। कुछ व्यवसायी हैं, तो कुछ नौकरीपेशा। कचहरी से छूटने के बाद मोटरसाइकिल से देवरिया रवाना हो रहे नौकरीपेशा परिचित से मुलाकात हो गई। बातों-बातों में उनके मन की टीस बाहर निकली। बोले, दर्जनों एक्सप्रेस ट्रेनें चल रही हैं। इसके बाद भी स्थानीय लोग धक्के खा रहे हैं। न इंटरसिटी की सिटी बज रही और न पैसेंजर ट्रेनों को हरी झंडी मिल रही। अब तो पैसेंजर भी एक्सप्रेस बनने लगी हैं। इस महंगाई में उनका भी भाव बढऩे लगा है।