कसौटी : 'आश्वासन की गोली खिला रहे साहब Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से उमेश पाठक का साप्ताहिक कालम कसौटी---
उमेश पाठक, गोरखपुर। शहर के सुनियोजित विकास की जिम्मेदारी संभालने वाला विभाग अनियोजित विकास पर डंडा चलाने को सदैव तत्पर रहता है, लेकिन जब बात अपनी कमियों की आती है, तो बचने को सौ बहाने ढूंढ लेता है। विभाग ने 11 साल पहले एक योजना उतारी। वर्षों से अपने मकान का सपना देख रहे लोगों को इस योजना के जरिए मनोकामना पूरी होती दिखी। खूब आवेदन आए, सैकड़ों लोगों के नाम भाग्यशाली की सूची में शामिल भी हो गए। जीवनभर की कमाई विभाग को दे दी, लेकिन आठ साल तक विभाग यह नहीं बता सका कि कौन सी जमीन किसकी है। आखिर में न्यायालय के हस्तक्षेप से उन्हें जमीन तो मिल गई, लेकिन अब सुविधाओं के लिए उनकी दौड़ जारी है। कई बार विभाग के अधिकारियों के पास जा रहे ये भाग्यशाली अपडेट पूछने पर बस इतना ही कहते हैं 'साहब हमेशा की तरह आश्वासन की गोली देकर घर जाने को बोले हैं।
दिल का हाल न जाने कोय
अर्थव्यवस्था में अपनी मजबूत भूमिका निभाने वाला वर्ग खासा परेशान है। कोरोना काल में समय बीतने के साथ इस वर्ग के लोग समस्याओं से घिरते चले गए। इधर कुछ हफ्तों से उनकी परेशानी और बढ़ गई है। उन्हें अपनी ही अर्थव्यवस्था डांवाडोल होती नजर आ रही है। कारण हाल के दिनों में आए प्रशासन के कुछ फैसले हैं, जिनसे वे खासा निराश हुए हैं। पहले से ही धनार्जन को उन्हें बहुत कम दिन मिले थे, नए फैसलों ने कुछ ज्यादा ही बंटाधार कर दिया। एक तरफ के प्रतिष्ठान बंद रहते हैं, तो सामने प्रतिद्वंद्वी के खुले। ऐसे में पुराने दोस्तों के साथ छोड़कर जाने का डर बढऩे लगा है। ये कोरोना काल है, सो खुलकर विरोध भी नहीं कर सकते। साहबों से अनुरोध करने पर सुरक्षा का हवाला सुनने को मिलता है। दुखी होकर अब वे कहते फिर रहे हैं कि उनके दिल का हाल कोई समझने वाला नहीं है।---
कागजों में डूबे मैदान के शेर
शारीरिक मजबूती से जुड़े विभाग में इन दिनों मैदान पर काम न के बराबर हो रहा है। कभी देश के कर्णधारों के साथ पसीना बहाने वाले मैदान के शेर अब कागजों में डूब रहे हैं। विभाग की बागडोर संभाल रहीं मुख्यालय में बैठी मैडम की कार्यशैली बिल्कुल जुदा है। आए दिन कुछ ऐसे पत्र मिल रहे हैं, जिनमें उल्लिखित सूचनाओं को जुटा पाना आसान नहीं। मैडम भी ठहरीं एकदम सख्त, सो लापरवाही की तो कोई सोच भी नहीं सकता। अब मैदान छोड़कर सभी सवालों का जवाब तलाशने में जुटे हैं। सवाल भी ऐसे-तैसे नहीं। उनका जवाब ढूंढने में मैदान पर पसीना बहाने से ज्यादा पसीना निकल रहा है। कई सवालों के बारे में विभाग के जिम्मेदारों को पता ही नहीं। जवाब तलाशने में सुबह से शाम होने का पता ही नहीं चल रहा। उनकी दशा देखकर लगता है कि कुछ दिन में वे मैदान का रास्ता ही न भूल जाएं।
महंगा पड़ेगा मैडम से पंगा
जिले के उत्तरी छोर पर स्थित एक विकास खंड में तैनात मैडम आजकल मातहतों के बीच चर्चा में हैं। चर्चा उनकी कार्यशैली को लेकर है। दरअसल प्रोटोकॉल का ख्याल मैडम खूब रखती हैं। तैनाती के समय मातहतों ने उनके लिए चंदे से वाहन की व्यवस्था कर दी थी, पर बदले में वे कुछ रियायत चाहते थे। मैडम कोई रियायत देने को बिल्कुल तैयार नहीं थीं। समय बीता तो मातहतों ने भी हाथ पीछे खींच लिए। अब मैडम ने वाहन की व्यवस्था करने की ठान ली, लेकिन उनसे पंगा लेने वालों के दिन खराब आ गए। विभागीय कार्यवाही भी शुरू हो गई। मैडम के एक करीबी कारखास ने सलाह दी और विरोधी खेमे के कार्य क्षेत्र की जांच के लिए एक सूची जारी हो गई। सूची में सिर्फ खास संवर्ग के लोगों के ही नाम हैं। अब विभाग में इस बात की चर्चा है कि मैडम से पंगा महंगा पड़ गया।