जनता सब जानती है : राजधानी वाली जमीन पर कोठी बनवा दो Gorakhpur News
पढ़ें गोरखाुर से राजेश्वर शुक्ला का साप्ताहिक कालम जनता सब जानती है...
राजेश्वर शुक्ला, गोरखपुर। गांवों में साफ-सफाई व स्व'छता अभियान की जिम्मेदारी वाले एक विभाग के चर्चित जिलास्तरीय अफसर के लिए शौचालय निर्माण कराना किसी लाटरी से कम नहीं रहा। मीडिया मैनेजमेंट में माहिर 'साहब चेलों के जरिये अपना गुणगान कराते रहे। शौचालय निर्माण में धांधली होती रही और 'साहब ने छोटी राजधानी में करोड़ों रुपये की लागत वाला शानदार फ्लैट खरीद लिया। राजधानी के पॉश इलाके में एक बेशकीमती जमीन भी ले ली। पिछले सप्ताह 'साहब ने अपने एक खास राजदार को कक्ष में बुलाया। 'साहब ने कहा कि देखो यार, शौचालय निर्माण में अब कुछ रहा नहीं, कोई ऐसा जुगाड़ लगाओ कि किसी तरह से लखनऊ वाली जमीन पर शानदार कोठी बन जाए, यह तुम ही कर सकते हो। मुझे तुम पर पूरा भरोसा है, इस पर राजदार ने सहमति जताई और बुदबुदाते हुए बाहर निकल कर 'साहब की कोठी बनाने के लिए रकम का बंदोबस्त करने का खाका तैयार करने लगा।
खुराफात का मिला 'इनाम
इंजीनियङ्क्षरग कार्य वाले एक विभाग में आजकल एक खुराफाती स्टाफ की बड़ी चर्चा है। विभागीय लोगों की माने तो इस स्टाफ ने अपनी तिलिस्मी रणनीति से सबको परेशान कर रखा था। अपना मूल कार्य छोड़ इसके पास करने को बहुत कुछ रहता था। सेवानिष्ठ कर्मचारियों के प्रति वरिष्ठ अफसरों को भड़काना इसका मूल काम हो गया था। इस खुराफाती से बचने को अन्य कर्मचारियों ने एक योजना बनाई कि इसे कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिलवा दी जाए। तय पटकथा के अनुरूप सभी कर्मचारी वरिष्ठ अफसर से मिले और उन्हें समझाया कि अगर आप कार्यालय में शांति और अपनी नौकरी सुरक्षित चाहते हैं, तो खुराफाती स्टाफ को कोई महत्वपूर्ण कार्य सौंप दीजिए। अफसर को भी यह बात समझ में आ गई और उसने खुराफाती स्टाफ को एक महत्वपूर्ण पद पर तैनाती दे दी। अफसर और कर्मचारी ने खुराफाती को बधाई दी और कहा कि आखिरकार खुराफात का 'इनाम मिल ही गया जनाब।
'चरणवंदना का भी अपना मजा है
तहसील स्तरीय एक अफसर से कुछ दिनों पहले तक उनके उ'चाधिकारी खासे खफा रहते थे। साफ-सुथरी छवि वाले तहसील स्तरीय अफसर को इस बात का हमेशा मलाल रहता था कि काम करने के बाद भी कौन सी कमी रह जाती है, जिसके कारण सबके सामने फटकार सुननी पड़ती है। कई माह तक आत्मविश्लेषण करने के बाद भी नतीजा सिफर रहा, तो उन्होंने इसकी चर्चा अपने एक समकक्ष अफसर से की। समकक्ष अफसर हंसने लगे और बोले कि बस इतनी सी बात है यार, इसलिए परेशान हो रहे हो, इसका समाधान तो तुरंत बता देता हूं। देखो भाई, कामकाज से कुछ होता नहीं है, सबसे बड़ा हुनर चरणवंदना है, इसका अपना मजा है। अगर ऐसा कर लिए, तो नौकरी आसान हो जाएगी। काफी समझाने के बाद बात उनके समझ में आ गई। अफसर ने चरणवंंदना को प्राथमिकता पर रख कार्य का शुभारंभ किया तो साहब की आंखों के तारे हो गए।
चलिए, जन्नत की सैर कराते हैं
गांवों में विकास की जिम्मेदारी वाले एक विभाग के 'साहब हैं कि बिना फील गुड के चिडिय़ा ही नहीं बैठाते हैं। काम कितना भी जरूरी हो, उनकी पूजा नहीं हुई तो कोई न कोई बहाना बनाकर फाइल लौटा देते हैं। पूरा विभाग 'साहब के रवैये से परिचित है। पिछले दिनों एक जरूरी काम की फाइल 'साहब की टेबल पर पहुंची, तो उन्होंने उसेे किनारे रखवा दिया। कई दिन बीत जाने के बाद भी फाइल 'साहब के कमरे से बाहर नहीं निकली, तो विभाग में हड़कंप मच गया। मातहत ने फाइल के बारे में याद दिलायी, तो 'साहब गुस्से से लाल-पीले होने लगे। बोले, फाइल में कितनी गड़बड़ी है, यह देखा तुमने। बताओ, कैसे इस पर दस्तखत कर दूं। 'साहब की मंशा भांप मातहत अपनी कुर्सी से उठे और कहा, पहले आप फाइल पर दस्तखत करिए, फिर आपको जन्नत की सैर कराते हैं। 'साहब मुस्कुराए और फाइल पर चिडिय़ा बैठा दी।