खेती किसानी- साहब! एक पौधा तो दे दीजिए Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से जितेन्द्र पाण्डेय का कालम-खेती किसानी..
गोरखपुर, जेएनएन। सौ साल खड़ा, सौ साल पड़ा। फिर भी न सड़ा। बात साखू की हो रही है। वह तराई के जंगलों का राजा है। कौन नहीं चाहेगा ऐसे वृक्ष का मालिक बनना। पर समस्या यह है कि इसका पौधा कहां मिलेगा? पेड़-पौधों से संबंधित विभाग में न तो इसके पौधे तैयार होते हैं और न ही रोपण होता है। जंगल में जो साखू के पेड़ बचे हैं, उन पर तस्करों की निगाहें हैं। लगातार अवैध कटान से उनकी भी संख्या घट रही है। पिछले दिनों साहब ने 250 वर्ष पुराने साखू के एक पेड़ को संरक्षित कराया है। उसे नाम दिया गया है सुंदर। वह कब तक अस्तित्व में रहेगा, कह पाना मुश्किल है। जिस रफ्तार से कटान हो रही है, उससे तो यही लगता कि अब जंगल से भी साखू गायब हो जाएगा। ऐसे में साहब से यही निवेदन है कि साखू का एक पौधा दे दें, रोपने के लिए।
फार्चूनर में श्वान
सरकार गोमाता के लिए तमाम योजनाएं चला रही है। गोआश्रय स्थल स्थापित हैं। बावजूद इसके उनकी दशा दयनीय है। उन्हें न घर में जगह मिल पा रही है और न आश्रय स्थल में। दो दिन पूर्व शहर में श्वान प्रदर्शन हुआ। भाई, जलवा तो उन्हीं का है। मैदान में वह भारी सिक्युरिटी के साथ उतरे तो लोग सोचते रह गए, कौन किसे सुरक्षा दे रहा है। कोई श्वान फॉर्चूनर से उतरा तो कोई इनोवा गाड़ी से। सबसे साधारण स्थिति में जो रहा वह भी डिजायर के साथ आया हुआ था। तमाम महिलाएं तो श्वान को गोद में लेकर घूमती दिखीं। माई बेबी, माई सोनू के पुचकार व दुलार से श्वान फूले न समा रहे थे। ठंड में मैडमजी ने अपना ख्याल भले न रखा हो, पर उन्होंने श्वान पर पूरा ध्यान दिया। नजारा देख संबंधित विभाग को भी तसल्ली हुई। बाद में आभार जताया। ओ गॉड, सारी मेहनत सफल हुई।
नहीं बताएंगे, हाथी माननीय का
पिछले दिनों जिले में एक हाथी ने अपने ही महावत को पटक-पटक कर मार डाला। हाथी किसका था, सब जानते हैं। यहां तक कि पेड़-पौधों का ख्याल रखने वाला विभाग भी। वह यहां तक जानता है कि जिले में किस-किस ने बिना लाइसेंस के हाथी पाल रखा है। फिर भी वह लोगों को नाम नहीं बताता है। देखरेख के अभाव में हाथी भले ही लोगों की जान ले लें, पर विभाग नहीं बताएगा कि हाथी किसके हैं। यहां तक इस पर साहब से बात भी हो चुकी है। उन्होंने महावत की मौत पर अफसोस जताया है। यह भी कहा कि वह नहीं बताएंगे कि हाथी माननीय का है। माननीय शहर के नहीं हैं। इससे पहले भी एक पूर्व मंत्री के हाथी ने महावत की जान ले ली थी। फिर भी साहब ने कुछ नहीं किया। अब लोगों में चर्चा होती है कि हाथी लेता रहे जान, साहब न देंगे ध्यान।
ठेले पर करोड़पति की तलाश
साहब ने व्यापारियों से जुड़े विभाग की मीटिंग ली। सभी को चेताया कि अधिक से अधिक व्यापारियों का पंजीयन कराओ। अफसर रोए-गाए, गिड़गिड़ाए कि 40 लाख रुपये से कम के कारोबार पर वह मजबूर नहीं कर सकते। साहब ने समझाया कि ठेले पर भी लोग करोड़ों का कारोबार कर जाते हैं। यदि किसी की दुकान से रोजाना करीब दो सौ टिकिया बिक रही है तो रोजाना चार हजार और एक वर्ष में 14.4 लाख का कारोबार हो गया। साथ में अन्य कारोबार को भी जोड़ें तो 50 लाख रुपये पूरे हो ही जाएंगे। ऐसे में ठेलेवालों को भी पंजीयन कराना होगा। विभाग ने तलाश शुरू कर दी है कि शहर में कौन-कौन से ठेले वाले 40 लाख से अधिक का कारोबार करते हैं। छोटे कारोबारी परेशान हैं कि पिछले माह प्याज बेचकर भी घर में दाल-रोटी तैयार न हो सकी। ऐसे में पंजीयन का फंदा पड़ा तो भूखों मर जाएंगे।