बिंब-प्रतिबिंब : चुराना चाहिए मुंह, मना रहे जश्न Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से डा. राकेश राय का साप्ताहिक कॉलम-बिंब-प्रतिबिंब...
डॉ. राकेश राय, गोरखपुर। कभी अपनी साख को लेकर देश भर के तकनीकी शिक्षण संस्थानों में रसूख रखने वाला पूर्वांचल का सबसे बड़ा तकनीकी शिक्षण संस्थान आज अपनी दुर्दशा पर भी जश्न मना रहा है। बीते दिनों जब देश भर के शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग जारी हुई, तो इस संस्थान का नाम रैंकिंग वाली सूची में 183वें नंबर पर दर्ज था। इस रैंङ्क्षकग को छिपाने की बजाय संस्थान के जिम्मेदारों ने बकायदा इसे प्रचारित किया, यह कहकर कि बीते वर्ष तो हम सूची में थे ही नहीं, इस वर्ष कम से कम पहचाने तो गए। यह बात जब उन लोगों तक पहुंची, जो संस्थान के स्वर्णिम काल के गवाह रहे हैं, तो उनसे रहा नहीं गया। उनके मुंह से व्यंग्य भरे बाण निकल ही पड़े। संस्थान के छात्र रह चुके एक इंजीनियर साहब पुराने दिनों को याद करते हुए बोले, अरे! यह तो मुंह चुराने का दिन है और लोग जश्न मना रहे हैं।
नसीहत ज्यादा दे रहे नेताजी
देश के सबसे मजबूत राजनीतिक दल के नेतृत्व ने हमेशा की तरह अपने कार्यकर्ताओं को इन दिनों एक नया टास्क दे रखा है। टास्क है, अपने-अपने बूथ क्षेत्र के सभी परिवारों से संपर्क कर सरकार की उपलब्धियां गिनाने का। ज्यादातर कार्यकर्ता हमेशा की तरह पूरी शिद्दत से लगे भी हुए हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी नेता हैं, जो काम कम नसीहत ज्यादा के फार्मूले पर चल रहे हैं। इसके लिए उन्होंने बाकायदा सोशल मीडिया को मंच बना रखा है। नसीहत देने के उत्साह में उन्हें यह भी याद नहीं रहता कि उनकी नसीहतें जूनियर ही नहीं, बल्कि वरिष्ठ नेताओं तक भी पहुंच रहीं, जिन्हें यह हरकत हरगिज नहीं भा रही। कुछ वरिष्ठ तो सोशल मीडिया पर ही इसे लेकर आपत्ति भी दर्ज करा रहे हैं। उनकी आपत्ति का कुछ पर तो असर पड़ा है, लेकिन एक नेता माफी मांगने के साथ नसीहत देने का सिलसिला बदस्तूर जारी रखे हुए हैं।
इस बदलाव में कहीं देर न हो जाए
शहर में जोरशोर से बन रहे जंगली जानवरों के आशियाने की जिम्मेदारी संभाल रहे बड़े अफसर का बीते दिनों तबादला हर उस व्यक्ति को खटक रहा है, जो इससे किसी न किसी रूप में जुड़ा है। अब जबकि निर्माण का काम अंतिम चरण की ओर बढ़ चला है, ऐसे में उस अफसर (जो इस व्यवस्था की नस-नस से वाकिफ था) को हटा दिए जाने से सबसे बड़ा सवाल तो यह उठ रहा है कि इसे लेकर अब जवाबदेही किसकी होगी। तबादला हो चुके अफसर यह कहकर पल्ला झाड़ लेंगे कि अब उन्हें इससे क्या मतलब और आने वाले अफसर के पास तो नए होने का बहाना रहेगा ही। कार्यदायी संस्था को नए अफसर से तालमेल बैठाकर काम में तेजी लाने में कितनी दिक्कत आएगी, यह दूसरा महत्वपूर्ण सवाल है। कहीं इन सवालों का जवाब तलाशने में आशियाना तैयार होने की अवधि और लंबी न हो जाए, ङ्क्षचता का विषय है।
यहां जेसीबी को रोजगार
लॉकडाउन के दौरान दूसरे प्रांतों से अपने घर लौटे कामगारों को गांव में ही रोजगार देने पर इन दिनों सरकार का जोर है। ऐसे में सभी विभागों की योजनाओं को मनरेगा से जोड़कर अधिक से अधिक कामगारों को रोजगार देने के लिए शासन से नियमित निर्देश मिल रहे हैं। लेकिन, राप्ती नदी के बांध किनारे बसे एक गांव में सड़क बनवाने वाले विभाग के अधिकारियों के लिए तो जैसे इस निर्देश का कोई मतलब ही नहीं। वहां कामगारों की जगह धड़ल्ले से जेसीबी को रोजगार दिया गया है। वह सभी काम, जिन्हें मजदूरों से कराकर उनकी दो वक्त की रोटी का इंतजाम किया जा सकता है, उसे जेसीबी से कराया जा रहा है। इसे लेकर उठने वाले हर सवाल पर उसी सरकार के काम का हवाला देकर लोगों का मुंह बंद कर दिया जा रहा, जिस सरकार ने अधिक से अधिक कामगारों को रोजगार देने का बीड़ा उठा रखा है।