गोरखपुर विश्वविद्यालय में नियुक्ति का मामला, प्रोफेसर पद के लिए नहीं थे योग्य, फिर ऐसे हुई नियुक्ति Gorakhpur News
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में यदि सीधे नियुक्ति में कोई बाधा है तो उसे दूसरे तरीके नियुक्त कर दिया जा रहा है।
By Edited By: Published: Sat, 24 Aug 2019 10:22 PM (IST)Updated: Mon, 26 Aug 2019 09:51 AM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के ¨हदी विभाग के प्रेमचंद पीठ में प्रोफेसर पद पर नियुक्त अरविंद त्रिपाठी की नियुक्ति को लेकर सवाल उठ रहे हैं। जिस अभ्यर्थी को पद के लिए तय सामान्य अर्हताओं के अनुसार योग्य नहीं पाया गया, उसकी नियुक्ति दूसरे नियमों के आधार पर कर दी गई। प्रोफेसर पद के लिए सामान्य विधि से आवेदन करने वाले अरविंद त्रिपाठी का आवेदन पत्र पहले रद हो गया था।
साक्षात्कार के लिए जारी अर्ह अभ्यर्थियों की सूची में उनका नाम नहीं था। उनके आवेदन पत्र के विवरण के आधार पर उन्हें प्रोफेसर पद के लिए निर्धारित सामान्य अर्हता के अनुरूप नहीं पाया गया। हालांकि बाद में 'पर्सन ऑफ इमिनेंस' के रूप में उनके लिए अलग से साक्षात्कार पत्र जारी किया गया। राज्यपाल से भी की गई शिकायत राज्यपाल को हुई शिकायत में अरविंद त्रिपाठी का प्रकरण प्रमुखता से है।
आकाशवाणी में कार्यरत रहे अरविंद ने ¨हदी विभाग में प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था, लेकिन इस पद के लिए जरूरी शिक्षण अनुभव, शोध कार्य आदि पैमानों पर वह पूरे नहीं थे, ऐसे में उनका आवेदन रद कर दिया गया। प्रोफेसर पद के लिए जारी साक्षात्कार सूची में कुल छह नाम (डॉ. सत्यपाल तिवारी, हितेंद्र कुमार मिश्रा, मुन्ना तिवारी, प्रत्यूष दुबे, राजेश कुमार मल्ल और योगेंद्र प्रताप यादव) थे, जिसमें से एक अनुपस्थित रहे।
हालांकि बाद में संबंधित क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले विशेषज्ञ के रूप में उनके लिए अलग से साक्षात्कार पत्र जारी किया गया। शिकायतकर्ता ने अरविंद त्रिपाठी की उम्र, सेवानिवृत्ति के करीब होने की बात कहते हुए उनकी नियुक्ति करने पर चयन समिति को आड़े हाथों लिया है। कुलपति का यह है तर्क गोरखपुर विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. विजय कृष्ण सिंह का कहना है कि इनकी नियुक्ति 'पर्सन ऑफ इमिनेंस' के रूप में हुई है।
यह स्पेशल क्लॉज है। मैंने कहीं भी इनके लिए संस्तुति नहीं की। मुझे ¨हदी के विभागाध्यक्ष ने बताया कि यह आकाशवाणी में पदस्थ हैं, साहित्य के अच्छे अध्येता हैं। अगर यह दो-तीन साल भी विश्वविद्यालय में सेवा दे सकें तो छात्र-छात्राओं का भला ही होगा। अगर आवेदन इनका आवेदन खारिज हुआ होगा तो वह स्क्रूटनिंग कमेटी ने किया होगा। वहां तो सामान्य नियमों के आधार पर ही परख होगी। वहां हो सकता है कि आवेदन खारिज हो गया हो। मेरे सामने जो सूची आई उसमें अरविंद त्रिपाठी का नाम था।
क्या कहते हैं अरविंद त्रिपाठी
प्रेमचंद पीठ के प्रोफेसर अरविंद त्रिपाठी का कहना है कि मैंने प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था। मुझे विश्वविद्यालय कुलसचिव की ओर से साक्षात्कार पत्र भेजा गया था। एक घंटे तक मेरा साक्षात्कार चला तब जाकर चयन हुआ है। एक लेखक के लिए सर्वोत्तम सेवा शिक्षक की होती है, इसी वजह से देर से ही सही लेकिन इस सेवा में मैंने दस्तक दी है।
साक्षात्कार के लिए जारी अर्ह अभ्यर्थियों की सूची में उनका नाम नहीं था। उनके आवेदन पत्र के विवरण के आधार पर उन्हें प्रोफेसर पद के लिए निर्धारित सामान्य अर्हता के अनुरूप नहीं पाया गया। हालांकि बाद में 'पर्सन ऑफ इमिनेंस' के रूप में उनके लिए अलग से साक्षात्कार पत्र जारी किया गया। राज्यपाल से भी की गई शिकायत राज्यपाल को हुई शिकायत में अरविंद त्रिपाठी का प्रकरण प्रमुखता से है।
आकाशवाणी में कार्यरत रहे अरविंद ने ¨हदी विभाग में प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था, लेकिन इस पद के लिए जरूरी शिक्षण अनुभव, शोध कार्य आदि पैमानों पर वह पूरे नहीं थे, ऐसे में उनका आवेदन रद कर दिया गया। प्रोफेसर पद के लिए जारी साक्षात्कार सूची में कुल छह नाम (डॉ. सत्यपाल तिवारी, हितेंद्र कुमार मिश्रा, मुन्ना तिवारी, प्रत्यूष दुबे, राजेश कुमार मल्ल और योगेंद्र प्रताप यादव) थे, जिसमें से एक अनुपस्थित रहे।
हालांकि बाद में संबंधित क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले विशेषज्ञ के रूप में उनके लिए अलग से साक्षात्कार पत्र जारी किया गया। शिकायतकर्ता ने अरविंद त्रिपाठी की उम्र, सेवानिवृत्ति के करीब होने की बात कहते हुए उनकी नियुक्ति करने पर चयन समिति को आड़े हाथों लिया है। कुलपति का यह है तर्क गोरखपुर विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. विजय कृष्ण सिंह का कहना है कि इनकी नियुक्ति 'पर्सन ऑफ इमिनेंस' के रूप में हुई है।
यह स्पेशल क्लॉज है। मैंने कहीं भी इनके लिए संस्तुति नहीं की। मुझे ¨हदी के विभागाध्यक्ष ने बताया कि यह आकाशवाणी में पदस्थ हैं, साहित्य के अच्छे अध्येता हैं। अगर यह दो-तीन साल भी विश्वविद्यालय में सेवा दे सकें तो छात्र-छात्राओं का भला ही होगा। अगर आवेदन इनका आवेदन खारिज हुआ होगा तो वह स्क्रूटनिंग कमेटी ने किया होगा। वहां तो सामान्य नियमों के आधार पर ही परख होगी। वहां हो सकता है कि आवेदन खारिज हो गया हो। मेरे सामने जो सूची आई उसमें अरविंद त्रिपाठी का नाम था।
क्या कहते हैं अरविंद त्रिपाठी
प्रेमचंद पीठ के प्रोफेसर अरविंद त्रिपाठी का कहना है कि मैंने प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था। मुझे विश्वविद्यालय कुलसचिव की ओर से साक्षात्कार पत्र भेजा गया था। एक घंटे तक मेरा साक्षात्कार चला तब जाकर चयन हुआ है। एक लेखक के लिए सर्वोत्तम सेवा शिक्षक की होती है, इसी वजह से देर से ही सही लेकिन इस सेवा में मैंने दस्तक दी है।
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