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गोरखपुर का यह आलीशान चर्च पहले झोपड़ी में था, 1500 एकड़ थी जमीन Gorakhpur News

इस चर्च की नींव 1823 में गोरखपुर के तत्कालीन कलेक्टर मार्टिन बर्ड ने उस दौरान छिटपुट बसे मसीही लोगों के प्रार्थना के लिए रखी। पहली बार इसे मिट्टी की दीवारों पर झोपड़ी डालकर तैयार क

By Satish ShuklaEdited By: Published: Sat, 26 Oct 2019 01:42 PM (IST)Updated: Sat, 26 Oct 2019 03:00 PM (IST)
गोरखपुर का यह आलीशान चर्च पहले झोपड़ी में था, 1500 एकड़ थी जमीन Gorakhpur News

 गोरखपुर, जेएनएन। कम ही लोगों को पता है कि आज आलीशान दिखने वाले बशारतपुर सेंट जांस चर्च की शुरुआत झोपड़ी से हुई थी। चर्च को यह भव्यता मसीही लोगों के लंबे संघर्ष और प्रतिबद्धता के परिणाम स्वरूप मिली।

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1823 में पड़ी थी इसकी नींव

इस चर्च की नींव 1823 में गोरखपुर के तत्कालीन कलेक्टर मार्टिन बर्ड ने उस दौरान बशारतपुर क्षेत्र में छिटपुट बसे मसीही लोगों के प्रार्थना के लिए रखी। पहली बार इसे मिट्टी की दीवारों पर झोपड़ी डालकर तैयार किया गया। मिशनरी के विस्तार के क्रम में बर्ड के बुलावे पर जब पादरी विल्किंस बिहार के बेतिया से बड़ी संख्या में मसीही विश्वासियों को लेकर गोरखपुर पहुंचे तो सेंट जांस चर्च में प्रार्थना करने वालों की तादाद बढ़ गई।

चर्च को 1500 एकड़ मिली थी जमीन

1831 में लार्ड विलियम बैंटिक ने सामाजिक कार्यों में मसीही समाज की रुचि देखते हुए चर्च को 1500 एकड़ जमीन दे दी। जमीन मिली तो मसीही लोगों का उत्साह बढ़ गया और उन्होंने इलाके की करीब 600 एकड़ उस जमीन को साफ करके खेती शुरू की, जो उन दिनों जंगल था। देखते ही देखते वहां एक गांव बस गया। चर्च के विकास पर कुछ वर्षों के लिए विराम तब लग गया जब 1857 में आजादी की पहली लड़ाई के दौरान इसे ध्वस्त कर दिया गया।

1872 में हुआ जीर्णोद्धार

15 वर्ष बाद यानी 1872 में टीन की छत डालकर इसका जीर्णोद्धार कराया गया और फिर शुरू हो गया इसकी भव्यता को बढ़ाने का सिलसिला। वर्तमान में दिखने वाले चर्च का स्वरूप सन् 2000 में आया। आज यह चर्च भव्यता को लेकर शहर की शान है। भव्यता के क्रम में चार वर्ष पहले इसके मुख्य द्वार पर पांच क्विंटल का घंटा लगाया गया। मसीही सेवक बीपी एलेक्जेंडर के मुताबिक घंटे की उपयोगिता चर्च में प्रार्थना और अन्य सूचना देने के लिए आमंत्रित करने को लेकर है। घंटे से निकलने वाली आवाज करीब तीन किलोमीटर तक सुनाई देती है। 


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