पांच दशक से जमीन पर सिर्फ सर्वे के पत्थर, जानें-क्यों नहीं बिछ पाई नई रेल लाइन
सहजनवा से बांसगांव तक रेल लाइन के लिए पचास साल से सिर्फ सर्वेक्षण किया जा रहा है। क्षेत्रीय जनता को उम्मीद है रेल लाइन जरूर बिछेगी।
By Edited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 07:30 AM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 10:14 AM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। सत्तर के दशक से गोरखपुर के दक्षिणांचल बांसगांव क्षेत्र की जनता से किए जा रहे वादे जमीन पर नहीं उतर पाए। सहजनवां से दोहरीघाट (70 किमी) नई रेल लाइन बिछाने के लिए सरकारों ने कभी सर्वे का झुनझुना पकड़ाया तो कभी बजट के रूप में लालीपाप थमाया।
यह महत्वपूर्ण परियोजना मुद्दा तो बनती रही लेकिन ठोस धरातल नहीं पा सकी। अभी तक जमीन पर उतर सके हैं तो सिर्फ सर्वे के पत्थर। लगातार पांच दशक से छले जा रहे लोगों को आज भी ट्रेन पकड़ने के लिए 50 किमी गोरखपुर मुख्यालय पहुंचना पड़ता है। इस साल आठ मार्च को गोला में इस नई रेल लाइन के शिलान्यास की तैयारी शुरू हुई तो क्षेत्र की जनता की उम्मीद बढ़ी। लेकिन आखिर में कार्यक्रम रद हो गया। टेंट उखड़ने लगे और कुर्सियां वापस होने लगीं तो एक बार फिर झटका लगा। रेलवे बोर्ड के टेबल पर पड़ा है डीपीआर नई रेल लाइन का फाइनल लोकेशन सर्वे पूरा करने के बाद पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने पिछले साल ही डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) रेलवे बोर्ड को भेजा। आज भी डीपीआर रेलवे बोर्ड के टेबल पर पड़ा है।
दरअसल, दोहरीघाट से इंदारा और मऊ होते हुए वाराणसी के लिए पहले से ही रेलमार्ग है। इस मार्ग का आमान परिवर्तन भी शुरू हो चुका है। ऐसे में सहजनवां-दोहरीघाट नई रेल लाइन बन जाने से गोरखपुर से वाराणसी की राह आसान हो जाती। साथ ही पिछड़े बांसगांव और कौड़ीराम क्षेत्र के लोगों को यातायात की बेहतर सुविधा मिल जाती। यहां बनेंगे स्टेशन - सहजनवां, पिपरौली, खजनी, उनवल, बांसगांव, उरुवा, गोला बाजार, बड़हलगंज और दोहरीघाट। प्रभु की बरसी कृपा, पास कर दिया 743.55 करोड़ का बजट वर्ष 2015-16 में आम जनता की परेशानियों को देखते हुए तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु ने इस परियोजना के लिए 743.55 करोड़ बजट स्वीकृत किया था।
हालांकि, यह धनराशि पर्याप्त नहीं है। एक किमी रेल लाइन बिछाने में रेलवे को लगभग 20 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में यहां लाइन बिछाने में 1400 करोड़ से अधिक की जरूरत होगी। छह बार हो चुका है सर्वे पिछले पांच दशक से इसकी मांग उठती रही है। नई रेल लाइन के लिए अब तक छह बार सर्वे हो चुका है। वर्ष 1988- 89 में तत्कालीन रेल राज्यमंत्री महावीर प्रसाद ने भी इस क्षेत्र को रेलमार्ग से जोड़ने की पहल की थी। तीसरी बार सहजनवां से कौड़ीराम होते हुए दोहरीघाट को जोड़ने के लिए सर्वे हुआ, पर यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया। सीसीईए में फंसी है महत्वपूर्ण परियोजना रेल मंत्रालय व बोर्ड के दिशा-निर्देश पर पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने परियोजना का डीपीआर तो भेज दिया है लेकिन वह कैबिनेट कमेटी आफ इकोनोमिक्स अफेयर्स (सीसीईए) से बाहर नहीं निकल पा रहा।
दरअसल, किसी भी परियोजना को बिना सीसीईए की सहमति के स्वीकृति नहीं मिलती। सीसीईए परियोजना को पास करने से पहले हानि-लाभ का आंकलन करता है। हानि दिखने पर सीसीईए परियोजना को हरी झंडी नहीं देता। सूत्रों के अनुसार रेट आफ रिटर्न्स (आरओआर) सर्वे में इस परियोजना को घाटे में दर्शाया गया है। रेलवे बोर्ड ने डीपीआर मिलने के बाद बांसगांव क्षेत्र की जनता के बीच आरओआर सर्वे कराया था। आरओआर रिपोर्ट शून्य फीसद से भी कम है। जबकि कोई भी रेल परियोजना शुरू करने से पहले आरओआर रिपोर्ट कम से कम 14 फीसद होना अनिवार्य होता है। इस परियोजना में रेलवे को अभी से घाटा दिख रहा है। शायद यही कारण है कि परियोजना अटक जा रही है।
हालांकि, इसको अस्तित्व में रखने के लिए पिंक बुक से नाम नहीं हटाया जा रहा है। मार्च 2017 में योगी ने दिखाई थी रुचि सहजनवां-दोहरीघाट नई रेल लाइन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मार्च 2017 में पूर्वोत्तर रेलवे के तत्कालीन महाप्रबंधक राजीव मिश्र को लखनऊ बुलाया था। इस दौरान उन्होंने इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की थी। कहा था कि प्रक्रिया जल्द शुरू कराइए। उन्होंने भूमि अधिग्रहण में भी मदद देने का भरोसा दिलाया था। इस संबंध में पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ संजय यादव का कहना है कि रेल मंत्रालय का जो दिशा-निर्देश प्राप्त होगा, उस आधार पर आगे की कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।
यह महत्वपूर्ण परियोजना मुद्दा तो बनती रही लेकिन ठोस धरातल नहीं पा सकी। अभी तक जमीन पर उतर सके हैं तो सिर्फ सर्वे के पत्थर। लगातार पांच दशक से छले जा रहे लोगों को आज भी ट्रेन पकड़ने के लिए 50 किमी गोरखपुर मुख्यालय पहुंचना पड़ता है। इस साल आठ मार्च को गोला में इस नई रेल लाइन के शिलान्यास की तैयारी शुरू हुई तो क्षेत्र की जनता की उम्मीद बढ़ी। लेकिन आखिर में कार्यक्रम रद हो गया। टेंट उखड़ने लगे और कुर्सियां वापस होने लगीं तो एक बार फिर झटका लगा। रेलवे बोर्ड के टेबल पर पड़ा है डीपीआर नई रेल लाइन का फाइनल लोकेशन सर्वे पूरा करने के बाद पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने पिछले साल ही डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) रेलवे बोर्ड को भेजा। आज भी डीपीआर रेलवे बोर्ड के टेबल पर पड़ा है।
दरअसल, दोहरीघाट से इंदारा और मऊ होते हुए वाराणसी के लिए पहले से ही रेलमार्ग है। इस मार्ग का आमान परिवर्तन भी शुरू हो चुका है। ऐसे में सहजनवां-दोहरीघाट नई रेल लाइन बन जाने से गोरखपुर से वाराणसी की राह आसान हो जाती। साथ ही पिछड़े बांसगांव और कौड़ीराम क्षेत्र के लोगों को यातायात की बेहतर सुविधा मिल जाती। यहां बनेंगे स्टेशन - सहजनवां, पिपरौली, खजनी, उनवल, बांसगांव, उरुवा, गोला बाजार, बड़हलगंज और दोहरीघाट। प्रभु की बरसी कृपा, पास कर दिया 743.55 करोड़ का बजट वर्ष 2015-16 में आम जनता की परेशानियों को देखते हुए तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु ने इस परियोजना के लिए 743.55 करोड़ बजट स्वीकृत किया था।
हालांकि, यह धनराशि पर्याप्त नहीं है। एक किमी रेल लाइन बिछाने में रेलवे को लगभग 20 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में यहां लाइन बिछाने में 1400 करोड़ से अधिक की जरूरत होगी। छह बार हो चुका है सर्वे पिछले पांच दशक से इसकी मांग उठती रही है। नई रेल लाइन के लिए अब तक छह बार सर्वे हो चुका है। वर्ष 1988- 89 में तत्कालीन रेल राज्यमंत्री महावीर प्रसाद ने भी इस क्षेत्र को रेलमार्ग से जोड़ने की पहल की थी। तीसरी बार सहजनवां से कौड़ीराम होते हुए दोहरीघाट को जोड़ने के लिए सर्वे हुआ, पर यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया। सीसीईए में फंसी है महत्वपूर्ण परियोजना रेल मंत्रालय व बोर्ड के दिशा-निर्देश पर पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने परियोजना का डीपीआर तो भेज दिया है लेकिन वह कैबिनेट कमेटी आफ इकोनोमिक्स अफेयर्स (सीसीईए) से बाहर नहीं निकल पा रहा।
दरअसल, किसी भी परियोजना को बिना सीसीईए की सहमति के स्वीकृति नहीं मिलती। सीसीईए परियोजना को पास करने से पहले हानि-लाभ का आंकलन करता है। हानि दिखने पर सीसीईए परियोजना को हरी झंडी नहीं देता। सूत्रों के अनुसार रेट आफ रिटर्न्स (आरओआर) सर्वे में इस परियोजना को घाटे में दर्शाया गया है। रेलवे बोर्ड ने डीपीआर मिलने के बाद बांसगांव क्षेत्र की जनता के बीच आरओआर सर्वे कराया था। आरओआर रिपोर्ट शून्य फीसद से भी कम है। जबकि कोई भी रेल परियोजना शुरू करने से पहले आरओआर रिपोर्ट कम से कम 14 फीसद होना अनिवार्य होता है। इस परियोजना में रेलवे को अभी से घाटा दिख रहा है। शायद यही कारण है कि परियोजना अटक जा रही है।
हालांकि, इसको अस्तित्व में रखने के लिए पिंक बुक से नाम नहीं हटाया जा रहा है। मार्च 2017 में योगी ने दिखाई थी रुचि सहजनवां-दोहरीघाट नई रेल लाइन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मार्च 2017 में पूर्वोत्तर रेलवे के तत्कालीन महाप्रबंधक राजीव मिश्र को लखनऊ बुलाया था। इस दौरान उन्होंने इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की थी। कहा था कि प्रक्रिया जल्द शुरू कराइए। उन्होंने भूमि अधिग्रहण में भी मदद देने का भरोसा दिलाया था। इस संबंध में पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ संजय यादव का कहना है कि रेल मंत्रालय का जो दिशा-निर्देश प्राप्त होगा, उस आधार पर आगे की कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।
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