यहां के जंगल में थी लकड़ी की भव्य इमारत, शौक से जाते थे अधिकारी, डकैतों ने भी बनाया था ठिकाना Gorakhpur News
महराजगंज जिला मुख्यालय से 65 किमी दूर सोहगीबरवा के जंगल में स्थित यह काठ बंगला अपने अतीत के शानों शौकत की याद दिला रहा है। इसकी दुर्दशा के पीछे दस्युओं का आतंक भी माना जाता रहा।
गोरखपुर, जेएनएन। महराजगंज जिले में सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग के शिवपुर रेंज में जंगल के मध्य स्थित जिले का एक मात्र काठ बंगला अपनी अनूठी बनावट व बेहतरीन कारीगरी के नमूने के कारण कभी जिले सहित पूर्वांचल की शान मानी जाती रही। वन विभाग के आला अधिकारियों व विशेष व्यक्तियों को आवासीय सेवा से प्रभावित करने वाला यह विश्राम गृह आज अपनी दुर्दशा की कहानी खुद ब खुद बयां कर रहा है। वन विभाग द्वारा इसके कायाकल्प के लिए कई प्रस्ताव बनाए गए, लेकिन किसी भी प्रस्ताव को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है।
1950 में बना था काठ बंगला
महराजगंज जिला मुख्यालय से 65 किमी दूर सोहगीबरवा के जंगल में स्थित यह काठ बंगला अपने अतीत के शानों शौकत की याद दिला रहा है।
आजादी के बाद 1950 में काठ के बने आकर्षक डिजाइन के इस आलीशान आशियाने में टाइल्स युक्त शौचालय, बाथरूम, किचेन, डाइनिंग हाल व चार कमरे, बेडरूम आदि की व्यवस्था सुनियोजित ढ़ंग से बेहतरीन गेस्टहाउस की तर्ज पर की गई थी।
इसलिए नाम पड़ा काठ बंगला
केवल लकड़ी से बने होने के कारण इस विश्राम गृह को काठ बंगला का नाम दिया गया। शुरूआती दौर में वन विभाग द्वारा इसके रखरखाव व मरम्मत के लिए शासन से धन मिलता रहा, लेकिन कुछ वर्षों के बाद जब इस मद में धन मिलना बंद हो गया तो इसके उपेक्षा की कहानी शुरू हो गयी। नब्बे के दशक में शुरू इस बंगले की दुर्दशा आज एक वीरान खंडहर के रूप में हैं।
दस्यु गिरोहों का सरगना अवधी बिंद ने बनाया था ठिकाना
हालांकि इसकी दुर्दशा के पीछे दस्युओं का आतंक भी माना जाता था । सूत्र बताते है कि सोहगीबरवा क्षेत्र व नारायणी के दियारा क्षेत्र में सक्रिय दस्यु गिरोहों का सरगना अवधी बिंद काफी दिनों तक इस बंगले को अपने ठिकाने के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। वर्ष 2001 में पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद इस क्षेत्र से धीरे-धीरे दस्यु आतंक की काली छाया समाप्त हुई।
विभाग ने भी की उपेक्षा
प्रदेश के पूर्व वन मंत्री फतेह बहादुर सिंह के प्रयास से जिले के विभिन्न डाक बंगलों के जीर्णोद्धार के लिए वर्ष 2008 में 22 लाख रुपये मिले थे, लेकिन दुर्भाग्य रहा कि उस सूची में इसे शामिल तक नहीं किया गया। विभागीय उपेक्षा का आलम यह है कि निर्माण काल के बाद अबतक विभाग द्वारा इसके जीर्णोद्धार के मद में एक ढेला भी खर्च नहीं किया गया , वर्तमान स्थिति यह है कि डाक बंगले में रखा गया बेड, सोफा, मेज, कुर्सियां तथा आवश्यक प्रसाधन के सामान पानी की टंकी सभी अपना मूल अस्तित्व खो चुके हैं।
शासन को भेजा गया प्रस्ताव
डीएफओ पुष्प कुमार का कहना है कि काठबंगला के जीर्णोंद्धार के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। शासन से धन की स्वीकृति मिलने के बाद इसका कायाकल्प किया जाएगा।