Jagran Vimarsh : सीएए में किसी की नागरिकता समाप्त करने का कोई प्रावधान नहीं Gorakhpur News
पूर्व प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में 1955 में नागरिकता अधिनियम पारित किया। इसी नियम में संशोधन कर वर्तमान सरकार ने नागरिकता हासिल करने की अवधि को छह साल किया है।
गोरखपुर, जेएनएन। नागरिकता कानून (सीएए) पूरी तरह से भय और भ्रम से मुक्त है। यह कानून 1955 में ही तत्कालीन सरकार द्वारा लाया गया था। वर्तमान सरकार ने इसमें संशोधन कर इसे और सरल बनाया है। यह बातें दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.कीर्ति पांडेय ने कही। वे सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में जागरण विमर्श कार्यक्रम में 'कैसे थमे सीएए पर भ्रम और भय की राजनीति विषय पर बोल रहीं थीं। उन्होंने कहा कि यह ऐसा कानून है जिसके तहत अफगानिस्तान, बांगलादेश और पाकिस्तान से आए वहां के अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाई धर्म के प्रवासियों के लिए भारत सरकार ने नागरिकता के नियम को और आसान बनाया है।
नेहरू के अधिनियम में सिर्फ संशोधन हुआ
पूर्व प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में 1955 में नागरिकता अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम में विदेशी शरणार्थी जो भारतवर्ष में लगातार 11 वर्षों तक रह चुके हैं उनको भारतीय नागरिकता का अवसर प्रदान करने का प्रावधान था। इसी नियम में संशोधन कर वर्तमान सरकार ने नागरिकता हासिल करने की अवधि को छह साल किया है।
विरोध करने वालों में चार के भय और भ्रम
प्रो.पांडेय ने कहा कि इस कानून का विरोध करने वालों में चार प्रकार के भय व भ्रम हैं। पहला भय व भ्रम है कि किसी भी समय भारतीय अल्पसंख्यकों की नागरिकता समाप्त की जा सकती है। जबकि इस अधिनियम में किसी की भी नागरिकता समाप्त करने का कोई प्रावधान नहीं है। दूसरा कि भारतीय अल्पसंख्यकों को भारतवर्ष से बाहर भेजा जा सकता है। जबकि किसी की भी वर्ग के विदेशी घुसपैठियों को ही देश से बाहर निकाला जा सकता है। तीसरा भ्रम कि हमारे देशों में नागरिकों को भारतीय नागरिकता का सबूत मांगा जाएगा। जबकि ऐसा नहीं है। न तो कोई सबूत मांगा जाएगा और न ही सबूत प्रस्तुत ही करना है। चौथा व अंतिम भय व भ्रम यह है कि भारतीय अल्पसंख्यक या किसी भी वर्ग के नागरिकों से वंशावली या माता-पिता के भारतीय होने का विवरण मांगा जा सकता है। जबकि ऐसा नहीं है।
पूर्ववर्ती सरकारों ने भी की चिंता
भय और भ्रम की इन बातों से हम समझ सकते हैं कि देश विभाजन के बाद धार्मिक आधार पर उत्पीडि़त परिवार जिन्होंने पाकिस्तान, अफगानिस्तान में अपनी संपत्ति व अपनी अस्मिता गंवाने के बाद भारत में शरण लिया था। इनकी दशा पर पूर्ववर्ती सरकारों ने चिंता व्यक्त की थी और उनकी दशा सुधारने के लिए प्रतिबद्धता भी प्रकट की थी। मगर दुर्भाग्य से किसी भी सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाया था। वर्तमान सरकार ने सीएए के रूप में उन शरणार्थियों को नागरिकता का अवसर प्रदान करने का साहस किया है। इस कानून को सभी को समझने और इसका समर्थन करने की आवश्कता है।
भारत के अल्पसंख्यकों पर नहीं पड़ेगा सीएए का प्रभाव
सीएए का भारत के अल्पसंख्यक समुदाय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार का बार-बार यही कहना है कि इस अधिनियम के द्वारा उन गैर मुस्लिम लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है, जो पाकिस्तान, बांगलादेश या आफगानिस्तान में धार्मिक प्रताडऩा के शिकार होकर भारत में शरण ले रखी है। कानून के अनुसार 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आ चुके तीन देशों के प्रताडि़त अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जाएगी।