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गोरखपुर के पात्रों से समृद्ध् हुआ मुंशी प्रेमचंद का कथा संसार, गोरखपुर में तैनात था 'नमक का दारोगा'

Munshi Prem Chand Birth Anniversary 2021 अगर यह कहा जाए कि साल 1892 से चार वर्ष के पहले प्रवास के दौरान ही इस महान कथाकार के कथा साहित्य की नींव पड़ी तो गलत नहीं होगा। इसका पुख्ता प्रमाण मुंशी जी की पहली कहानी मेरी पहली रचना है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sat, 31 Jul 2021 01:10 PM (IST)Updated: Sat, 31 Jul 2021 10:26 PM (IST)
कथा सम्राट मुंशी प्रेम चंद। - फाइल फोटो, सौजन्‍य इंटरनेट मीडिया।

गोरखपुर, डा. राकेश राय। Munshi Prem Chand Birth Anniversary 2021: कथा सम्राट प्रेमचंद पर जितना अधिकार बनारस का है, उतना ही गोरखपुर का भी। ऐसा इसलिए कि दो चरणो में अपनी गोरखपुर रिहाइश के दौरान वह यहां पढ़े भी और पढ़ाए भी। अगर यह कहा जाए कि साल 1892 से चार वर्ष के पहले प्रवास के दौरान ही इस महान कथाकार के कथा साहित्य की नींव पड़ी तो गलत नहीं होगा। इसका पुख्ता प्रमाण मुंशी जी की पहली कहानी 'मेरी पहली रचना' है, जिसे उन्होंने अपने मामा के चरित्र को ध्यान में रखकर यहीं लिखी।

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शिक्षा विभाग में नौकरी के दौरान दूसरे चरण में गोरखपुर प्रवास के लिए जब 1916 में वह तबादला होकर गोरखपुर आए तो महज पांच साल की रिहाइश में उन्होंने गोरखपुर की धरती से दमदार पात्र तलाश कर ऐसी कृतियां गढ़ दीं, जो साहित्य जगत में आज भी मील का पत्थर हैं। कथा सम्राट को 'ईदगाह' का हामिद अगर गोरखपुर में ईदगाह के मेले से मिला तो नमक का दारोगा वंशीधर भी इसी धरती की खोज थे। 'बूढ़ी काकी' से लेकर 'दो बैलों की कथा' की पृष्ठभूमि और उसके पात्र भी गोरखपुर की ही देन हैं।

ईदगाह, नमक का दारोगा, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा पर है गोरखपुर की छाप

मशहूर उपन्यास 'सेवा सदन' जैसा उपन्यास भले ही बनारस की पृष्ठभूमि पर रचा गया है लेकिन उसकी पटकथा गोरखपुर से अनुप्रमाणित है, इसकी पुष्टि गोरखपुर विवि के हिंदी विभाग के आचार्य और प्रेमचंद साहित्य संस्थान के सचिव प्रो. राजेश मल्ल भी करते हैं। इस पुष्टि के पक्ष में प्रो. मल्ल का कहना है कि नार्मल स्कूल जहां प्रेमचंद का आवास था, वहां से कुछ ही दूरी पर उन दिनों बसंतपुर में नर्तकियों की बस्ती थी। ऐसे में इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि उपन्यास की पात्र सुमन को कथा सम्राट ने इसी बस्ती से तलाशा होगा, संदर्भ भले ही बनारस का हो।

गोरखपुर से म‍िली 'दो बैलों की कथा'

साहित्यकार रवींद्र श्रीवास्तव जुगानी का दावा है कि मुंशी जी ने 'नमक का दारोगा' में जिस ईमानदार दारोगा वंशीधर को अपनी कहानी का मुख्य पात्र बनाया है कि वह और कोई नहीं वहीं पांडेय जी है, जो उन दिनों राप्ती नदी पर बने पीपा के पुल पर बताैर नमक का दारोगा तैनात थे और उनकी ईमानदारी की चर्चा पूरे इलाके में थी। इसी तरह 'दो बैलों की कथा' के दो बैल कहीं और के नहीं, राउत पाठशाला के पीछे उन दिनों मौजूद कांजी हाउस के थे। राउत पाठशाला और प्रेमचंद के आवास के बीच महज एक सड़क का फर्क था।

'बूढ़ी काकी' की वृद्धा पात्र को भी जुगानी तुर्कमानपुर में रहने वाली एक बूढ़ी औरत से जोड़ते हैं। कहते हैं कि जिस सच्चे किस्से को उन्होंने बचपन में खूब सुना था, प्रेमचंद ने उनको आधार बनाकर कालजयी कहानी रच दी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आचार्य और प्रेमचंद साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो. सदानंद शाही इसी आधार पर इस दावा करते हैं कि प्रेमचंद के साहित्य में गोरखपुर छाप है।


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