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मानवता की वाणी है संस्कृत : महंत सुरेश दास

दिगंबर अखाड़ा अयोध्या के महंत सुरेश दास ने कहा है कि संस्कृत पर रखे अपने विचार।

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 01:45 AM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 01:45 AM (IST)
मानवता की वाणी है संस्कृत : महंत सुरेश दास

जागरण संवाददाता, गोरखपुर :

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दिगंबर अखाड़ा अयोध्या के महंत सुरेश दास ने कहा है कि संस्कृत भाषा जीवित होगी, तभी भारतीय संस्कृति अक्षुण्य रहेगी। संस्कृत देववाणी है, भारत की वाणी है, मानवता की वाणी है, करुणा की वाणी है, दया की वाणी है, अ¨हसा की वाणी है। साथ ही ज्ञान और विज्ञान की वाणी भी है। महंत सुरेश ब्रह्मालीन महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ के पुण्यतिथि समारोह के तहत आयोजित साप्ताहिक संगोष्ठी के दूसरे दिन सोमवार को 'संस्कृत एवं संस्कृति' विषय पर बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने महंत दिग्विजय नाथ की उस वाणी की याद दिलाई, जिसमें उन्होंने संस्कृत भाषा को समस्त ज्ञान और विज्ञान का वृहद भंडार बताया था। साथ ही यह भी कहा था कि इस देश के वासी तबतक प्रथम श्रेणी के वैज्ञानिक नहीं बन सकते जबतक वह संस्कृत भाषा में उपलब्ध प्राचीन भारतीय विज्ञान ग्रंथों का अध्ययन नहीं कर लेते। महंत सुरेश ने कहा कि महंत दिग्विजय नाथ की पुण्यतिथि समारोह के अवसर पर संस्कृत की रक्षा का संकल्प लेकर हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं। विशिष्ट अतिथि जगद्गुरु अनंतानंद द्वाराचार्य स्वामी डॉ. रामकमल दास वेदांती ने कहा कि भारत की आत्मा संस्कृति में है और संस्कृति की आत्मा संस्कृत में बसती है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष अर्थात् पुरुषार्थ चतुष्टय, जो भारतीय जीवन पद्धति के प्राण हैं की मूल भावना संस्कृत भाषा में ही है। इसलिए राष्ट्र की रक्षा, जीवन की रक्षा, धर्म की रक्षा, संस्कृत की रक्षा हेतु संस्कृत की रक्षा आवश्यक है। विशिष्ट वक्ता दीदउगोविवि संस्कृति विभाग के प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने कहा कि भारत में ¨हदू संस्कृति के मूल संस्कृत को समाप्त करने का दुष्चक्र चल रहा है। भारत की राष्ट्रवादी जनता ही संस्कृत भाषा और संस्कृति की रक्षा कर सकती है। बड़ौदा से पधारे महंत गंगादास ने कहा कि भारत की दुनिया में दो कारणों से प्रतिष्ठा है। पहला संस्कृत और दूसरा संस्कृति। इससे पहले प्रो. यूपी सिंह ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में विषय के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संस्कृत भारतीय चेतना और सनातन स्त्रोत की अजस्त्र धारा है। सनातन संस्कृति का आधार स्तम्भ है। यदि किसी को भारत तथा भारतीयता को समझना है तो संस्कृत की शरण लेनी ही होगी। संचालन डॉ. श्रीभगवान सिंह ने किया। इस दौरान महंत शिवनाथ, महंत शांतिनाथ, महंत मिथिलेश नाथ, स्वामी जयबख्श दास, महंत पंचाननपुरी, महंत राममिलन दास, डॉ. अरविंद चतुर्वेदी, अरुण कुमार सिंह, मंजू सिंह आदि मौजूद रहे।

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संस्कृत से ही मिली 'वसुधैव कुटुंबकम' की अवधारणा

उत्तर प्रदेश ¨हदी संस्थान के अध्यक्ष और संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ. वाचस्पति मिश्र ने संस्कृत के सात सूत्रों की चर्चा करते हुए कहा कि संस्कृत भारत की आत्मा है। संपूर्ण ज्ञान का मूल है। संस्कृत ने ही 'वसुधैव कुटुंबकम' की अवधारणा दी है। उन्होंने कहा कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की भाषा संस्कृत बनने जा रही है। संस्कृत बढ़ने के साथ संस्कृति बढ़ेगी और तभी परम वैभव तक पहुंचने का हमारा लक्ष्य पूरा होगा। उन्होंने कहा कि हमारे पास दुनिया का प्राचीनतम और श्रेष्ठतम ज्ञान का भंडार ग्रंथ संस्कृत में ही है। हमने छह हजार साल से संस्कृति के ग्रंथों को संजोकर रखा है। सभी ग्रंथ संस्कृत भाषा में ही हैं। ऐसे में संस्कृत और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं। भारत का वासी अपने ज्ञान को जीता है। इस ज्ञान की अथवा जीवन की भाषा संस्कृत ही हैं। ऐसे में यदि संस्कृत नहीं रहेगी तो संस्कृति को भी हम नहीं बचा सकते। भारतीय संस्कृति की रक्षा की आवश्यक शर्त है संस्कृत भाषा की रक्षा।

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समारोह में आज का कार्यक्रम

सुबह 10 बजे : 'सामाजिक समरसता भारतीय संस्कृति का प्राण है' विषय पर संगोष्ठी

शाम 3 बजे : श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन


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