जागरण विमर्श : उच्च शिक्षण संस्थानों में फीस के लिए समान मानक आवश्यक Gorakhpur News
सरकार को चाहिए कि वह निजी व तकनीकी संस्थानों की तर्ज पर राज्य विश्वविद्यालयों व एडेड महाविद्यालयों में भी फीस तय करने के लिए नियामक संस्था बनाएं।
गोरखपुर, जेएनएन। उच्च शिक्षण संस्थानों में फीस के लिए एक समान मानक होना चाहिए, क्योंकि फीस का पैमाना तय न होने से शिक्षण संस्थानों के कार्य प्रभावित होते हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह निजी व तकनीकी संस्थानों की तर्ज पर राज्य विश्वविद्यालयों व एडेड महाविद्यालयों में भी फीस तय करने के लिए नियामक संस्था बनाएं।
यह बातें दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के गणित व सांख्यिकी विभाग के प्रो. सुधीर कुमार श्रीवास्तव ने कही। वे दैनिक जागरण कार्यालय में 'जागरण विमर्श कार्यक्रम में 'क्या हो उच्च शिक्षा संस्थानों में फीस का पैमाना विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने बताया कि अप्रैल, 2018 में शुल्क नियामक प्राधिकरण ने फीस के अलग-अलग मानदंड रखे, जिसके आधार पर संस्थान की लोकेशन क्या है, इंफ्रास्ट्रक्चर कैसा है, शिक्षा का स्तर क्या है? इसको ध्यान में रखकर संस्थाएं फीस का निर्धारण कर सकती हैं। स्किल, क्वालीफाइंग स्टॉफ की संख्या पर भी फीस का पैमाना तय किया गया।
निजी संस्थाओं में हर वर्ष तय होती है फीस
प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि निजी संस्थाओं में प्रति वर्ष फीस तय होती है, जबकि राज्य पोषित विश्वविद्यालयों में ऐसा नहीं है। राज्य विश्वविद्यालयों में फीस वृद्धि पर गौर करें तो पिछले 30 साल से ट्यूशन फीस में बढ़ोतरी नहीं हुई है। संसाधन बढ़ाने की बात होती है पर हकीकत में होता कुछ नहीं है। हालत यह है कि संसाधन व शिक्षकों की संख्या बढ़े नहीं, छात्रों की संख्या बढ़ती गई। अपने संसाधनों को बनाए रखने के लिए विश्वविद्यालय अतिरिक्त फीस कहां से तय करें, यह गंभीर प्रश्न है। इस पर विचार कर नीति बनाने की जरूरत है।
फीस न बढऩे से क्या होता है नुकसान
फीस से दो प्रमुख बातें किसी भी संस्थान को प्रभावित करतीं हैं। इनमें एक गुणात्मक व दूसरा गणनात्मक विकास है, यानी फीस न बढऩे से उच्च शिक्षण संस्थानों में गुणात्मक व गणनात्मक दोनों ही विकास प्रभावित होते हैं। इस पर ध्यान देते हुए फीस का पैमाना तय किए जाने की जरूरत है।