बंजर हो रही राजनीति की नर्सरी ; खत्म हो रही राजनाथ, कल्पनाथ, वीर बहादुर की परंपरा
अब न छात्रसंघ है और न ही यहां से निकले नेता संसद या विधानमंडलों की दहलीज पर दिखाई देते हैं। नतीजा आज की मुख्य धारा की राजनीति में युवा महज औजार बन कर रह गए हैं।
गोरखपुर, क्षितिज पांडेय। विश्वविद्यालय परिसर का नाता सिर्फ शिक्षा और शोध से ही नहीं है बल्कि राजनीतिक चेतना से भी है। इसमें कला, साहित्य, संगीत, शिक्षा के विद्वानों की नींव तो तैयार होती ही रही है राजनीति की नई पौध को भी पनपने का मौका मिलता रहा है। छात्रसंघ इस पौध की नर्सरी रहा है। इतिहास के पन्ने छात्रसंघ और छात्र आंदोलनों के संघर्ष की कथाओं से समृद्ध हैं। सियासत की दुनिया में आज बहुत से ऐसे विशाल वृक्ष हैं, जिनका अंकुरण विश्वविद्यालय परिसरों में ही हुआ। यहीं राजनीति का ककहरा पढ़ा। अफसोस, कि राजनीति की यह नर्सरी, अब बंजर हो रही है। अब न छात्रसंघ है और न ही यहां से निकले नेता संसद या विधानमंडलों की दहलीज पर दिखाई देते हैं। नतीजा, आज की मुख्य धारा की राजनीति में युवा महज औजार बन कर रह गए हैं। विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव अब बीते दिनों की बात होती जा रही है, सो नेताओं की नई पौध भी तैयार नहीं हो पा रही। कभी बेहद समृद्ध रही गोरखपुर विश्वविद्यालय की नर्सरी में भी आज नई कोंपले नहीं फूट रहीं हैं।
महान यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने कहा था, 'मनुष्य अपने स्वभाव से एक राजनीतिक प्राणी है'। जाहिर है ऊर्जा से भरे युवाओं में तो राजनीतिक चेतना और भी ओजस्वी होगी। इस चेतना को जगाने में सबसे बड़ी भूमिका रही है विश्वविद्यालयों के छात्रसंघों की। गोरखपुर विश्वविद्यालय में 1960 से लेकर 1980 तक का दौर छात्र राजनीति का सबसे सुनहरा समय कहा जा सकता है। सुनहरा इसलिए क्योंकि इस कालखंड में छात्र राजनीति से ऐसे युवा निकले, जिन्होंने न केवल परिसर के भीतर युवाओं की आवाज बुलंद की, वरन् परिसर से निकल कर मुख्य धारा की राजनीति में भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।
समृद्ध रही है गोरखपुर विवि की विरासत
छात्र राजनीति से मुख्य धारा की राजनीति में पैर जमाने वालों का गोरखपुर विश्वविद्यालय में समृद्ध इतिहास रहा है। कल्पनाथ राय, नर्वदेश्वर पांडेय, वीर बहादुर सिंह, रवींद्र सिंह, राजनाथ सिंह, शिवप्रताप शुक्ला, राजमणि पांडेय, राजधारी सिंह, गणेश शंकर पांडेय जैसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जिनके ओज से विवि परिसर भी चमका तो सियासत की दुनिया भी इनकी चकाचौंध से भरी। कल्पनाथ राय 1962 में छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए। कल्पनाथ राय, घोसी लोकसभा से चार बार सांसद चुने गए और तीन बार राज्य सभा सदस्य भी रहे।
इसी तरह रवीन्द्र सिंह विवि छात्रसंघ के अध्यक्ष और महामंत्री, सेंट एंड्रयूज कॉलेज के अध्यक्ष और महामंत्री के साथ-साथ लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्यक्ष के रूप में छात्रों का नेतृत्व किया और कौड़ीराम क्षेत्र से विधायक चुने गए। विवि छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे राजमणि पांडेय, शीतल पांडेय, उपाध्यक्ष रहे राजधारी सिंह, महामंत्री रहे गनपत सिंह, राम छबीले मिश्र ने अलग-अलग समय पर सियासत में अपनी चमक बिखेरी। वर्तमान में केंद्रीय मंत्री शिवप्रताप शुक्ल 1978 में चुनाव भले ही हार गए लेकिन सियासत की दुनिया में उन्होंने विशिष्ट पहचान बनाई है। पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने राजनीति का ककहरा यहीं पढ़ा।
नेहरू-लोहिया-मधुलिमये ने किया था युवाओं से संवाद
पूर्व अध्यक्ष शीतल पांडेय बताते हैं कि 1961 में छात्रसंघ अध्यक्ष रहे नर्वदेश्वर पांडेय के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू विवि परिसर आए थे। तो 1967 रवींद्र सिंह के अध्यक्ष चुने जाने पर समाजवादी नेता मधुलिमये ने छात्रनेताओं का मार्गदर्शन किया। इसी तरह 1962 में राम मनोहर लोहिया ने भी परिसर में छात्रों से संवाद किया था। पं. नेहरू ने जहां युवाओं को लोकतंत्र को मजबूत की जिम्मेदारी सौंपी थी, तो लोहिया ने सामाजिक सुधार के लिए युवाओं का आह्वान किया था। अध्यक्ष रहे राधेश्याम सिंह बताते हैँ कि एक समय छात्रहितों के संरक्षण के लिए छात्रों ने परिसर आए मुख्यमंत्री बनारसी दास और राज्यपाल जीडी तपासे को भी भारी विरोध करने से परहेज नहीं किया था। हालांकि सरकार इस विरोध से नाराज हुई और छात्रनेताओं को जेल भी जाना पड़ा।
जेपी मूवमेंट में दिखाया छात्रों ने दम
1972-73 में विवि छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे राजमणि पांडेय पुराने दिनों की याद करते हुए बताते हैं कि जेपी मूवमेंट में यहां के छात्रों ने बड़ी दमदारी से हिस्सा लिया था। शीतल पांडेय, विश्वकर्मा द्विवेदी, राधेश्याम सिंह जैसे छात्रनेता इस मूवमेंट में खूब सक्रिय रहे। राजमणि बताते हैं कि इमरजेंसी खत्म होने तक करीब 19 महीने जेल में रहना पड़ा। बोलने, लिखने, घूमने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हमने गोरखपुर, बनारस, लखनऊ में जेपी के आंदोलन में बढ़चढ़ कर भाग लिया। उस समय यह कविता खूब प्रचलित थी, 'बिगुल बजा जाग उठी तरुणाई है, तिलक लगाने तुम्हें जवानों क्रांति द्वार पर आई है।Ó
रवींद्र सिंह की हत्या के बाद बदल गया माहौल
अध्यक्ष रहे रवींद्र सिंह की हत्या के बाद से गोविवि की समृद्ध चमकदार छात्र राजनीति में गिरावट आनी शुरू हुई । पुराने जानकार बताते हैं कि अगस्त, 1978 में रवींद्र सिंह की हत्या हुई, जिसके बाद से छात्र समूह जातीय राजनीति की चपेट में आ गई। इसका दुष्परिणाम यह देखने को मिला कि 1980 के बाद से अब तक गोविवि छात्रसंघ का निर्वाचित कोई भी पदाधिकारी संसद या विधानमंडल की दहलीज तक नहीं पहंच सका। छात्रसंघ चुनाव सतत होते रहे, लोग चुने जाते रहे, लेकिन उनकी सियासत विवि परिसर तक ही सिमट कर रह गई।
13 साल में एक बार हो सका छात्रसंघ चुनाव
2007 से लेकर अब तक 13 वर्ष के बीच गोरखपुर विश्वविद्यालय में केवल एक बार 2015-16 में ही छात्रसंघ चुनाव हो सका। पिछले दो वर्ष में चुनाव की तिथियां तो घोषित हुईं, लेकिन ऐन मौके पर चुनाव न हो सका। सभी राजनीतिक दल छात्रों और युवाओं की भागीदारी की बात तो जरूर करते हैं लेकिन उन्हें मौका देने की पहल कोई नहीं करता दिखता है।
छात्रसंघ से निकले बने सियासी चेहरे
कल्पनाथ राय - अध्यक्ष 1962-63 - केंद्रीय मंत्री
केसी पांडेय - उपाध्यक्ष 1966-67 - सांसद, खलीलाबाद
रवींद्र सिंह- अध्यक्ष/महामंत्री 67-68/65-66 - विधायक, कौड़ीराम
वंश बहादुर सिंह - अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष-1969-70/1965-66 - विधान परिषद सदस्य
राजधारी सिंह - उपाध्यक्ष 1971-72 - प्रदेश में मंत्री
गनपत सिंह- महामंत्री 1971-72- विधायक, पनियरा
राजमणि पांडेय- अध्यक्ष 1972-73 - विधायक
जगदीश श्रीवास्तव - अध्यक्ष 1973-74- विधायक, सिसवा महराजगंज
राम छबीले मिश्र- महामंत्री 1973-74 -विधायक, देवरिया
शीतल पांडेय - अध्यक्ष 1977-80 - विधायक, सहजनवां
छात्र नेताओं ने कहा
छात्र आंदोलनों ने दिखाई दिशा : शीतल
गोरखपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में विधायक शीतल पांडेय का कहना है कि छात्र आंदोलनों ने समय-समय पर देश-समाज को दिशा दिखाई है। जेपी मूवमेंट में यही छात्र सबसे अहम भूमिका में थे। इसी आंदोलन से नेताओं की विशाल श्रृंखला तैयार हुई। बदलते दौर में विश्वविद्यालय की भूमि नए नेताओं की पौध तैयार नहीं कर पा रही। इस बंजर भूमि को पुन: उर्वर बनाना होगा।
मुख्य राजनीति से अलग करना उचित नहीं : राधेश्याम
छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष राधेश्याम सिंह ने कहा कि अगर कोई यह सोचता है कि कॉलेज और विश्वविद्यालय में राजनीति करने से छात्र अपने मूल लक्ष्य से भटक जाएंगे तो शायद उसकी शिक्षा की परिभाषा में ही कोई समस्या है। विवि परिसर समग्र विकास का स्थल है, राजनीति से अलग करना, कतई उचित नहीं है।
प्रतिबंध लगाना अनुचित : योगेश
छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष योगेश सिंह का कहना है कि हुड़दंग, अराजकता का आरोप लगाकर छात्र राजनीति पर रोक लगाना वैसा ही है जैसे हाथ में चोट लग जाने के कारण हाथ को काट देना। जरूरत है हाथ के उपचार की। छात्र राजनीति में सुधार और परिवर्तन लाने के बजाए उस पर प्रतिबंध लगा देना कोई समाधान नहीं है।