भगत सिंह सिर्फ क्रातिकारी ही नहीं अपितु एक महान युवा भी थे
क्रांतिकारी भगत सिंह 23 साल की उम्र में शहीद हो गए। उनकी शहादत दिवस की पूर्व संध्या पर कार्यक्रम किया गया। लोगों ने उनकी वीरता का बखान किया।
गोरखपुर, जेएनएन। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल शहीद मेला व खेल महोत्सव आयोजन समिति के संयोजक बृजेश राम त्रिपाठी ने कहा कि 1921 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले चौरीचौरा हत्याकाड के बाद गाधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा।
अखिल भारतीय क्रांतिकारी संघर्ष मोर्चा एवं गुरुकृपा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में बेतियाहाता स्थित भगत सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपदान कर 88वा बलिदान दिवस मनाया गया। उसके बाद आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संयोजक बृजेश राम त्रिपाठी ने कहा कि उसके बाद चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में गठित हुई गदर दल के वे सदस्य बन गए। भगत सिंह ने फासी के फंदे को चूमने से पूर्व देशवासियों के भेजें संदेश में कहा की इंकलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है, अदालत में अपील से नहीं। भगत सिंह बार-बार कहा करते थे कि अंग्रेजो से आजादी पाने के लिए हमने मागने की जगह रण करना होगा।
मुख्य अतिथि मारवाड़ इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य मेजर आरएन गुप्ता ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के तीन अमर क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की बहादुरी से घबराए अंग्रेजों ने फाँसी की नियत समय से 12 घटे पूर्व यानी 23 मार्च सन 1931 को सायंकाल 7.33 बजे पर लाहौर की जेल में फासी दे दी। लाहौर कास्पिरेसी केस में जेल के वार्डेन चरत सिंह और वकील प्राण नाथ मेहता के अनुसार कोठरी नंबर 14 में फासी के पूर्व भगत सिंह बंद पिंजरे में शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे। शाहदरा लाहौर निवासी जल्लाद मसीह को दिए संदेश में साम्राच्यवाद मुर्दाबाद-इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे थे।
तीनों मिलकर साथ गा रहे थे कभी वह दिन भी आएगा, कि जब आजाद हम होंगे। ये अपनी ही जमीं होगी, ये अपना आसमा होगा। अध्यक्षता करते हुए पतंजलि के जिलप्रभारी एडवोकेट हरिनारायण धर दुबे ने कहा कि भगत सिंह क्रांतिकारी देश भक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान पुरुष थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था।