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हरा-भरा गांव, कोरोना के बांधे पांव

प्रकृति के पास रहने वाले थारू जनजाति बहुल गांवों से दूर रहा कोरोना

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 May 2021 09:30 PM (IST)Updated: Sun, 16 May 2021 09:30 PM (IST)
हरा-भरा गांव, कोरोना के बांधे पांव
हरा-भरा गांव, कोरोना के बांधे पांव

महराजगंज: प्रकृति के पास रहकर कोरोना के पांव बांधे जा सकते हैं। नेपाल सीमा से सटे थारू जनजाति बहुल गांव इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। जिले में साढ़े 11 हजार से अधिक व्यक्तियों को संक्रमित करने वाला कोरोना थारू जनजाति बहुल 32 गांवों में फटक भी न पाया। हां, 17 हजार से अधिक आबादी में से बाहर रहने वाले दो कामगार जरूर संक्रमित हुए, लेकिन गांव लौटकर आए तो बिल्कुल स्वस्थ हो गए।

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थारू जनजाति का पंरपरागत खानपान और प्राकृतिक वास कोरोना को हराने में बड़ा हथियार साबित हो रहा है। नेपाल सीमा से चार किलोमीटर पहले करीब आठ सौ की आबादी वाला विशुनपुरा गांव हो या फिर मनिकापुर, बेलहिया समेत अन्य गांव, सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग में आने वाले इन गांवों के अधिकांश घरों में तुलसी के पौधे हैं। नीम और आम के पेड़ पर गिलोय चढ़ी हैं। इनका प्रयोग रोज के खानपान में होता है। सबसे खास बात, गांव में पीपल, पाकड़, बरगद, आंवला, बेल और आम के पेड़ भरपूर संख्या में लगे हैं। पंचवटी के कारण यहां वातावरण शुद्ध रहता है।

विशुनपुरा गांव के अगस्त मुनि चौधरी बताते हैं कि जंगल में प्रचुरता में पाए जाने के कारण थारू जनजाति खानपान में हमेशा से गिलोय का प्रयोग करती रही है। मछली भी हमारे परंपरागत खानपान का हिस्सा है। चूंकि जंगल होने का कारण यहां पंचवटी बहुतायत में है, इसलिए वातावरण शुद्ध रहता है। गांव के तेज बहादुर चौधरी, अनिल कुमार, जगत चौधरी व मोहन चौधरी बताते हैं कि हम प्रकृति के अनुरूप रहते हैं। कोविड प्रोटोकाल का भी पालन करते हैं, इसलिए कोरोना गांव से दूर है। महराजगंज के थारू बाहुल्य गांव

विशुनपुरा, तरैनी, मनिकापुर, बेलहिया, शिवपुरी, सेखुआनी, हल्दीडाली, महुअवा, बेलहिया, कनरी-चकरार, नरैनापुर, देवघट्टी, भगवानपुर मदरी, सूर्यपूरा, अशोगवा, भगतपुरवा, रामनगर, शीशगढ़, मंगलापुर, दनवरिया, महुअवा, अरघा, पोखरभिडा उर्फ बनरहवा, शीशमहल, पिपरवास व पिपरहिया नेपाल में भी बसे हैं थारू

भारत व नेपाल में सीमा से सटे तराई क्षेत्र में थारुओं की संख्या अधिक है। नेपाल की कुल जनसंख्या का सात फीसद थारू जनजाति के लोग हैं। रूपनदेही, नवलपरासी, कपिलवस्तु थारू बहुल जिले हैं। यहां के भी थारू बहुल गांवों में संक्रमण न के बराबर है।


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