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गोरखपुर में औषधीय फसल से किसान ने 18 माह में की आठ लाख रुपये की कमाई Gorakhpur News

एक एकड़ खेत में लगभग 12 हजार पौधे लगाए जिसकी लागत 70-80 हजार रुपये आई। दो हजार रुपये किलो की दर से बीज और 45-55 रुपये किलो में जड़ बेचकर इस साल उन्होंने आठ लाख रुपये की बचत की।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Sat, 14 Sep 2019 12:53 PM (IST)Updated: Sat, 14 Sep 2019 12:53 PM (IST)
गोरखपुर में औषधीय फसल से किसान ने 18 माह में की आठ लाख रुपये की कमाई Gorakhpur News
गोरखपुर में औषधीय फसल से किसान ने 18 माह में की आठ लाख रुपये की कमाई Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। उरुवा के दीप नारायन सिंह ने गेहूं-धान से इतर सतावरी को अपनाने का जोखिम उठाया तो उसके परिणाम बेहद शानदार रहे। एक एकड़ खेत में बोई गई इस औषधीय फसल से किसान ने 18 माह के भीतर आठ लाख रुपये की बचत कर ली। गोरखपुर के पिपरौली, घघसरा, उरुवा और खजनी के बाद अब महराजगंज, देवरिया के भी किसान सतावरी की खेती में जुट गए हैं। उत्पाद का बेहतर मूल्य पाने के लिए वह इसकी बिक्री महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश तक कर रहे हैं। यह किसान फेसबुक और वाट्सअप से जुड़कर खुद को अपडेट रखते हैं।

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परंपरागत खेती से ऐसे हटा मन

धान, गेहूं, अरहर जैसी परंपरागत फसलों में हर साल नए तरह के रोग, कीटों के प्रकोप तथा छुट मवेशियों से तंग आकर दुघरा के दीप नारायण ने औषधीय खेती की ओर रुख किया। चार वर्ष पूर्व उद्यान प्रभारी अमित कुमार से सतावरी का नुस्खा समझने के बाद दीप नारायन ने इसकी खेती की। एक एकड़ खेत में लगभग 12 हजार पौधे लगाए, जिसकी लागत 70-80 हजार रुपये आई। दो हजार रुपये प्रति किलो की दर से बीज और 45-55 रुपये किलो में जड़ बेचकर इस साल उन्होंने आठ लाख रुपये की बचत की।

बीमारी और रखवाली का झंझट नहीं

उद्यान प्रभारी अमित कुमार बताते हैं कि शतावरी किसी भी बीमारी, कीट से सुरक्षित है। कंटीले पत्तों की वजह से मवेशी भी इसे नहीं खाते हैं। ऐसे में किसानों को रखवाली का झंझट नहीं रहता है।

सेहत के लिए उपयोगी है शतावरी

क्षय रोग, कम होते वजन में सुधार और कामोत्तेजक दवाएं बनाने में सतावरी का इस्तेमाल होता है। इसकी जड़ और बीज दोनों ही दवा निर्माताओं के लिए उपयोगी होती है।


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