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बिगड़ रहा गैसों का संतुलन, जागे नहीं तो सभी हो जाएंगे सांस के मरीज

वायुमंडल में नाइट्रोजन आक्सीजन कार्बनडाई आक्साइड कार्बन मोनो आक्साइड जैसी गैसों का अनुपात लगातार बिगड़ता जा रहा है। यह खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 11:44 AM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 11:11 AM (IST)
बिगड़ रहा गैसों का संतुलन, जागे नहीं तो सभी हो जाएंगे सांस के मरीज
बिगड़ रहा गैसों का संतुलन, जागे नहीं तो सभी हो जाएंगे सांस के मरीज

गोरखपुर, डॉ. राकेश राय। बात डराने की नहीं बल्कि सावधान करने की है। शहर की आबोहवा दिन-प्रति-दिन जहरीली होती जा रही है। वायुमंडल में नाइट्रोजन, आक्सीजन, कार्बनडाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड जैसी गैसों का अनुपात लगातार बिगड़ता जा रहा है। बच्‍चों, बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों को ध्यान में रखकर अगर इसका मूल्यांकन करें तो यह खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है। शहर के अलग-अलग इलाकों से लिए गए वायु के नमूने इस चेतावनी पर मुहर लगा रहे हैं कि अगर वायु प्रदूषण नियंत्रण पर जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में हवा में मौजूद जहरीले तत्व हर किसी को सांस का रोगी बना देंगे।

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दिन भर में 20 हजार बार लेते हैं सांस

हवा के बगैर व्यक्ति 5-6 मिनट से अधिक जिन्दा नहीं रह सकता। एक मनुष्य दिन भर में औसतन 20 हजार बार सांस लेता है। अगर यह सांस पांच मिनट से अधिक समय तक के लिए रुक जाए तो वह हमेशा के लिए रुक जाएगी। बावजूद इसके सांस लेने के लिए जरूरी स्व'छ हवा की चिंता न किसी व्यक्ति को है और न ही इंतजामिया को। विकास की अंधी दौड़ में अपने निजी स्वार्थों के लिए इंसान रोजाना प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वायुमंडल में मौजूद नाइट्रोजन, आक्सीजन, कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड जैसी गैसों का अनुपात बिगाड़ रहा है। अनुपात का संतुलन बिगडऩे से हवा प्रदूषित हो रही, जो उसी के लिए हानिकारक साबित हो रही है, जो इसका दोषी है।

इससे वह खुद का ही नुकसान नहीं कर रहा बल्कि आने वाली पीढिय़ों के नुकसान की पृष्ठभूमि भी तैयार कर रहा है। शहर के प्रदूषण पर कार्य कर रहे जितेंद्र द्विवेदी बताते हैं कि विभिन्न माध्यमों से यहां प्रतिदिन 40 टन से ज्यादा धुआं उत्सर्जित हो रहा है। ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति हर महीने 645 ग्राम कार्बन मोनो ऑक्साइड, 54 ग्राम हाइड्रोकार्बन और 30 ग्राम नाइट्रोजन ऑक्साइड ग्रहण कर रहा है। इसके अतिरिक्त सल्फर डाई ऑक्साइड एवं सीसा जैसे अन्य हानिकारक पदार्थ भी मानव शरीर में पहुंच रहे हैं। इन रासायनिक तत्वों के बढऩे से फेफड़ों से संबंधित बीमारियों, चर्म रोग, आंखों में जलन एवं मानसिक तनाव आदि के मरीजों की तादाद में तेजी से इजाफा हो रहा है। यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब सभी सांस के मरीज हो जाएंगे।

पर्यावरणविदों की चिंता

बनाना होगा विकास और पर्यावरण का संतुलन

पर्यावरणविद प्रो. चंद्रप्रकाश मणि त्रिपाठी का कहना है कि विकास की अंधी दौड़ ने सर्वाधिक नुकसान किसी को पहुंचाया है तो वह है पर्यावरण। अब विकास तो रोका नहीं जा सकता, ऐसे में विकास और पर्यावरण सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना होगा। गोरखपुर में वायु प्रदूषण की मुख्य वजह वाहनों और जेनरेटर से निकल रहा कार्बन है। ऐसे में इसे संतुलित करने के लिए पहले तो आबादी वाले क्षेत्र में अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं। साथ ही वाहन और जेनरेटर का इस्तेमाल सामूहिक हो। पब्लिक ट्रांसपोर्ट और सामूहिकता में जेनरेटर का इस्तेमाल सर्वाधिक उचित उपाय हो।

तेज से बढ़ रहा ब्लैक कार्बन

दीदउ गोरखपुर विवि भौतिक विभाग के प्रो. शांतनु रस्तोगी के अनुसार गोरखपुर शहर और इसके आसपास के क्षेत्र के वातावरण में पिछले कुछ वर्षो में ब्लैक कार्बन की मात्रा तेजी से बढ़ी है। इसकी बड़ी वजह खुलेआम कूड़े का विभिन्न स्थानों पर जलाया जाना और पिछले कुछ वर्षो में वाहनों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी होना है। इस पर लगाम लगाने की लिए जरूरी है कि कूड़ा निस्तारण की समुचित व्यवस्था की जाए। वाहनों पर नियंत्रण का एक प्रभावी तरीका यह हो सकता है कि अधिक से अधिक लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें। इससे कम से कम ईधन के इस्तेमाल में 'यादा से 'यादा लोगों का आवागमन सुनिश्चित हो सकेगा।

कोयले वाले ईंधन पर लगानी होगी रोक

एमएमएमयूटी पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. गोविंद पांडेय का कहना है कि वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह वाहनों से निकले वाला धुंआ और बीते वर्षो में तेजी से बढ़ी निर्माण गतिविधियां और उद्योग हैं। इसके लिए पहले तो जन यातायात प्रणाली को सुदृढ़ किया जाना चाहिए। सिटी बस और मेट्रो रेल की व्यवस्था इसमें बेहद कारगर सिद्ध होगी। जो वाहन बाजार में चल रहे हैं, उनकी नियमित जांच होनी चाहिए। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्रों में स्थित इकाइयों से निकलने वाले धुएं का उत्सर्जन अपेक्षित स्तर के नियंत्रण के बाद ही अनुमन्य किया जाना चाहिए। कोयले वाले ईधन पर प्रभावी रोक लगाई जाए। इसके लिए सरकारी प्रयास के अलावा जन चेतना की भी जरूरत है।

प्रदूषण विभाग के पिछले चार महीने के आंकड़े

माह       स्थान        पीएम-10   एसओ2   एनओ2   एक्यूआइ

मार्च     एमएमयूटी    118.46     9.68      21.93       112

जलकल       211.75     34.16    52.39       175

गीडा          231.15     39.44    57.98       187

फरवरी   एमएमयूटी     91.73       7.34     20.7         92

जलकल      257.05      28.55   46.34       207

 गीडा        266.59      31.16   49.14       213

जनवरी   एमएमयूटी     77.51      7.07     19.72        78

जलकल      117.20     20.45    33.97      111

गीडा        135.04     22.26    40.89      123

दिसंबर   एमएमयूटी    68.19        5.51     14.03       68

जलकल     91.73       14.02     27.35        92

गीडा        119.79    17.90       30.39      113

यह है मानक

पीएम-10 : आरएसपीएम (रेस्परेबल सस्पेंडेड पर्टिकुलेट मैटर) को पीएम-10 कहा जाता है। हवा में मौजूद दिखाई न देने वाले ये कण 0-10 माइक्रॉन साइज के होते हैं। ये कण सांस रास्ते फेफड़े में पहुंचकर श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं।

एसओ2 : वायुमंडल में आक्सीजन के साथ सल्फर डाई आक्साइड की भी पर्याप्त मात्रा में मौजूदगी हो चुकी है। यह श्वसन तंत्र को प्रभावित करता ही है, साथ ही पानी के साथ मिलने पर सल्फ्यूरिक एसिड बनकर सांस नली में संचलन को प्रभावित करता है।

एनओ2 : नाइट्रोजन डाई आक्साइड हवा के साथ फेफड़े में जाकर उसमें एलर्जी पैदा करता है। वातावरण में इसकी मौजूदगी सांस व दिल के रोगियों की बीमारी बढ़ाती है।

एक्यूआइ : एयर क्वालिटी इन्डेक्स को वायु गुणवत्ता सूचकांक भी कहा जाता है। इससे हमें वातावरण में मौजूद हवा की गुणवत्ता की जानकारी मिलती है।

एक्यूआइ का मानक

0-50 : बहुत कम असर होता है, खतरा नहीं।

51-100 : बीमार लोगों को सांस लेने में मामूली दिक्कत।

101-200 : ब'चे, बुजुर्ग व दिल, फेफड़े रोगियों को सांस लेने में दिक्कत।

201-300 : सभी लोगों को सास लेने में कठिनाइयां शुरू होंगी।

301-400 : लोग सांस की बीमारियों के घेरे में आ जाएंगे।

400 से अधिक : हर स्वस्थ्य इंसान को सांस की बीमारी हो सकती है।

वायु प्रदूषण के कारण

औद्योगिक व आवासीय बस्तियों में इकट्ठा कचरा, गंदी नालियां

उद्योगों से निकलने वाला धुआं, कृषि में रसायनों का प्रयोग

ट्रेन, बस, कार आदि वाहनों से निकलने वाला धुआं

वनों की कटाई से लगातार हो रही आक्सीजन की कमी

प्रदूषण नियंत्रण के उपाय एक नजर में

कारखाने शहर से दूर हों, साथ ही वह ऐसी तकनीक से बनें, जिससे अधिकांश धुआं व अपशिष्ट अवशोषित हो।

शहरीकरण रोकने के लिए गांव व कस्बों में ही रोजगार व कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए।

वाहनों से निकलने वाले धुएं को ऐसे समायोजित करना होगा जिससे की अपेक्षाकृत कम धुआं बाहर निकले।

बिना धुएं वाले चूल्हे व सौर ऊर्जा की तकनीक को प्रोत्साहित किया जाए।

वनों की कटान बंद हो, पौधरोपण कार्यक्रम को सर्वो'च प्राथमिकता पर रखा जाए।

शहरों-नगरों में अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के लिए सीवरेज की व्यवस्था की जाए।


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