थाईलैंड में रामकियेन के नाम से लोकप्रिय है रामकथा
थाईलैंड में करीब 910 वर्षो से रामकियेन नाम से रामकथा का आयोजन किया जाता है,इसका प्रभाव बौद्ध धर्म से हुआ
अजय कुमार शुक्ल, गोरखपुर : थाईलैंड को बौद्ध धर्म के बाद यदि किसी ने सर्वाधिक प्रभावित किया है तो वह है रामकथा। रामकथा थाईलैंड में रामकियेन के नाम से लोकप्रिय है। रामकियेन नाम भारतीय महाकाव्य रामायण से लिया गया है। जिसे वाल्मीकि ने हजारों वर्ष पूर्व संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध किया था। थाईलैंड में रामकथा 910 वर्ष पूर्व से प्रचलित है। थाई साहित्यकारों ने थाई संस्कृति एवं रीति-रिवाजों के अनुसार रामकथा में कुछ कहानियों को जोड़ा है। यह कथा थाईलैंड और भारत के लोगों के मध्य आपसी समझदारी तथा सौहार्दपूर्ण संबंधों को और मजबूती प्रदान करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
कुशीनगर थाई बुद्ध विहार के भिक्षु प्रभारी डा.पी खोमसान ने इस बावत जानकारी देते हुए बताया कि रामकियेन में पात्रों के नामों को थाई भाषा की विशिष्ट स्वर योजना के कारण परिवर्तित किया गया है। राम को फ्रा राम, सीता को सीदा, लक्ष्मण को फ्रा लाक, रावण को टोटसकान, श्रीलंका को लोंगका, जटायु को सदायु, मारीच को मारीस, सुग्रीव को सुग्रीप, विभीषण को पिपेक, किष्किंधा को खिटकिन, जम्बू राजा को थाओ महाजम्बु कहा जाता है। थाईलैंड में सिरी फोर्ट थिएटर में रामकियेन का प्रभावी मंचन किया जाता है। इस अवसर पर थाईलैंड की राजकुमारी भी उपस्थित रहतीं हैं। इससे कथा की लोकप्रियता और बढ़ जाती है।
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कथा का इतिहास
बताया जाता है कि एक स्वतंत्र राज्य के रूप में थाईलैंड के अस्तित्व में आने के पहले से ही इस क्षेत्र में रामायणीय संस्कृति विकसित हो गई थी। उसके बाद स्वतंत्र थाई राष्ट्र की स्थापना हुई। राजा बोरोमकोत के काल की रचनाओं में राम कथा के पात्रों तथा घटनाओं का उल्लेख है। परवर्ती काल में जब तासकिन थोनबुरी के सम्राट बने, तब उन्होंने थाई भाषा में रामायण को छंदोबद्ध कराया। पुन: सम्राट राम प्रथम ने अनेक कवियों के सहयोग से जिस रामायण की रचना करवाई, वही थाई भाषा की पूर्ण रामायण है। विशाल रचना नाटक के लिए उपयुक्त नहीं थी, इसलिए राजा राम द्वितीय ने एक संक्षिप्त रामायण की रचना की। वहीं राम चतुर्थ ने स्वयं पद्य में रामायण की रचना की।
रामकियेन का आरंभ राम और रावण के वंश विवरण के साथ अयोध्या और लंका की स्थापना से होता है। इसमें अनेक उपकथाएं भी सम्मिलित हैं। अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो थाईलैंड को छोड़ कर अन्यत्र नहीं मिलते हैं। इसमें विभीषण पुत्री वेंजकाया द्वारा सीता का स्वांग रचाना, ब्रह्मा द्वारा राम और रावण के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाना आदि शामिल हैं।