हम तूफान से किश्ती लाए, अब पतवार तुम्हारे हाथों में
आंदोलनकारियों को छिपाने के अपराध में दो वर्ष साथ जेल काटी श्रीराम पांडेय और प्रभावती देवी ने - अंग्रेज जज ने नई शादी का हवाला देकर कहा माफी मांग लो तो छोड़ देंगे सेनानी बोले हरगिज नहीं
देवरिया, जेएनएन। हम तो तूफान में घिरे थे, फिर भी किश्ती निकाल लाए। अब पतवार तुम्हारे हाथों में है। देश को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी नई पीढ़ी की है। वह हर व्यक्ति देशभक्त है, जो अपना काम ईमानदारी से कर रहा है। युवा चाह लें तो देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। यह कहना है, अपने गौने के महज एकसाल बाद ही जेल जाने वाले सलेमपुर तहसील के मधवापुर गाव निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दंपती श्रीराम पांडेय और प्रभावती पांडेय का। भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ सीना ताने खड़े रहने वाले दंपती 97 वर्ष की उम्र में धुंधली होती यादें पकड़ने की कोशिश करते हैं। श्रीराम बताते हैं, पिता जी कलकत्ता (अब कोलकाता) में जूट मिल में नौकरी करते थे। उनके साथ मैं भी सभाओं में जाता था। नेता जी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित होकर आजादी के आंदोलन में कूद पड़ा। पिता जी सभी को लेकर गांव आ गए। पास के गांव पुरैना की प्रभावती से शादी हो गई। वह भी आजादी की दीवानी थीं। गौना हुए करीब एक साल हुआ था, जब 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया। तब पुलिस से बचने के लिए आंदोलनकारी मेरे घर में ही छिपते थे। प्रभावती मदद करती थीं। उन्होंने कई बार झूठ बोलकर सभी को बचाया। आंदोलन के दौरान सेनानी रामदरश राय, वसुधा पांडेय, सुमन दूबे आदि मेरे घर में छिपे थे। किसी की मुखबिरी पर अंग्रेज अफसर घर आए। पत्नी ने झूठ बोलकर उन्हें टरकाने की कोशिश की, लेकिन अंग्रेज अफसर घर में घुस गए। सारे आंदोलनकारी पकड़े गए। झूठ बोलने पर प्रभावती भी गिरफ्तार हुईं। गांव में हल्ला मच गया। अगले दिन अंग्रेज जज के सामने पेश किए गए। नई नवेली दुल्हन को कटघरे में देखकर जज ने अपने साथियों के नाम बताने और गलती मानकर माफी मांगने पर छोड़ देने का लालच दिया। मैं कुछ कहता, उससे पहले ही प्रभावती ने न कह दिया। माफी न मांगने पर दो-दो साल के सश्रम कारावास की सजा मिली। गोरखपुर जेल में अलग-अलग बैरक में रखे गए थे। हर मुश्किल में साथ रहने का वादा प्रभावती देवी कहती हैं, 'हर मुश्किल में साथ देहले का वादा रहल, त अंग्रेज अफसरे से माफी कइसे मंगती। गांधी बाबा क अशीरवाद रहल, त काहे डेरइतीं। फिरंगिया खूब सतावत रहें, लेकिन केहू टस से मस न भइल। 1944 में रिहा, 46 में फिर गिरफ्तार सजा पूरी होने के बाद श्रीराम व प्रभावती पांडेय 1944 में रिहा कर दिए गए। आजादी का जुनून था, इसलिए फिर आंदोलन में कूद गए। आंदोलन के सिलसिले में श्रीराम बिहार के पूर्णिया गए लेकिन वहां गिरफ्तार कर लिए गए। दो साल की सजा मिली। हालांकि दो साल पूरा होने के पहले देश आजाद हो गया और 13 अगस्त को रिहाई मिल गई। गांव आकर घर पर झंडा फहराया, फिर कहीं गए। आज भी खादी से नाता श्रीराम पांडेय आज भी खादी पहनते हैं। कहते हैं, खादी वस्त्र नहीं विचार है। गांधी जी खादी से देश को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना चाहते थे। नई पीढ़ी देश को आर्थिक रूप से मजबूत करे, हम श्रेष्ठ होंगे। अंग्रेजों ने पहले आर्थिक गुलाम ही तो बनाया था। घर पर लहराता है तिरंगा श्रीराम व प्रभावती पांडेय आज भी हर राष्ट्रीय पर्व पर घर पर राष्ट्रध्वज फहराते हैं। घर के लोग राष्ट्रगान गाकर झंडे को सलामी देते हैं। गांव के लोग भी आते हैं। मां- पिता के संस्कार, भाइयों में प्यार श्रीराम और प्रभावती के दो पुत्र अनिल पांडेय व धनंजय पांडेय और दो पुत्रियां अनिता व रंजना हैं। सभी विवाहित हैं। नाती-पोते हैं। परिवार संयुक्त है और कोई भी बंटवारे की नहीं सोचता है। सब मिलकर खेती किसानी करते हैं।