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जंग-ए आजादी की कहानी, बेटों की जुबानी Gorakhpur News

भारत को आजाद कराने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गोरखपुर के क्रांतिकारी तो अब नहीं है लेकिन उनके बेटेे मौजूद हैं। आइए बेटों से सुना जाए उनके पिता की कहानी।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 11:01 AM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 11:01 AM (IST)
जंग-ए आजादी की कहानी, बेटों की जुबानी Gorakhpur News
जंग-ए आजादी की कहानी, बेटों की जुबानी Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। पाली ब्लाक के टिकरिया गांव निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भृगुमुनि मिश्र ने अपनी जवानी देश की आजादी के लिए कुर्बान कर दी। बरहज में आंदोलन करने के आरोप में अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें जिंदा या मुर्दा पकडऩे के लिए फरमान जारी कर ढाई सौ रुपये का इनाम भी घोषित किया था।

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भारत माता के सपूत ने अपनी चिंता किए बगैर 23 अगस्त 1942 को डोहरिया में हजारों की भीड़ लेकर पहुंच गए। नाराज अंग्रेज अफसरों ने गोली चला दी, जिसमें 11 लोग बलिदान हो गए। भृगुमुनि मिश्र गोली कांड में बच गए, लेकिन खार खाई अंग्रेजी हुकूमत ने उनका दो एकड़ खेत जब्त कर लिया और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

स्व.भृगुमुनि मिश्र के बड़े पुत्र अविनाश चंद्र मिश्र बताते हैं कि पिताजी के पीछे अंग्रेज हाथ धोकर पड़े थे, क्योंकि सहजनवां में आंदोलन की बागडोर उन्होंने खुद संभाल रखी थी। छह माह से अधिक सजा काटकर जेल से आने के बाद जनता ने उनका भव्य स्वागत किया था।

रामसूरत का जुनून देख घबरा गए थे अंग्रेज

पाली ब्लाक के रिठुआखोर निवासी रामसूरत सिंह का आजादी का जुनून देख अंग्रेज घबरा गए थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामसूरत सिंह के पुत्र हरि शंकर सिंह बताते हैं कि पहले उनके पिता अंग्रेजी सरकार में सिपाही थे। क्रांतिकारियों के दमन को देख वह खुद को रोक नहीं पाए तथा अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत कर दी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़चढ़ कर भागीदारी की। नाराज ब्रिटिश सरकार ने 1932 में पांच माह कैद की सजा सुना दी। छूटने के बाद वह हिम्मत नही हारे और भारत छोड़ो आंदोलन में बम बनाने का काम करने लगे। आंदोलन के दौरान गोरखपुर षडयंत्र केस में उन्हें एक वर्ष की कैद हो गई। इसके अलावा प्रतीकात्मक फांसी भी दी गई थी।

नेताजी के साथ कोहिमा तक आ गए थे पिताजी

बड़हलगंज क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित बभनौली गांव निवासी स्व.रामसिंगार पांडेय ने भी स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी निभायी थी। वह देश को आजाद कराने के लिए सिंगापुर में सरकारी नौकरी छोड़कर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.पांडेय के पुत्र प्रेमप्रकाश पांडेय कहते हैं, पिताजी बताते थे कि वे 1943 से पहले सिंगापुर के गांधी जेल में नौकरी करते थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस पहली बार सिंगापुर पहुंचे, तो उनके भाषण और देश भक्ति के जज्बे को देख वह काफी प्रभावित हुए और उनके दिल में देशभक्ति की ज्वाला भड़क उठी। उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और आजाद हिंद फौज में शामिल होकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए कोहिमा तक आए थे। आजादी के बाद भी वह सिंगापुर में नौकरी करते रहे। 1980 में वह गांव बभनौली आए, तबसे यहीं रहे। 95 वर्ष की उम्र में 24 जनवरी, 2019 को उनका देहावसान हो गया।


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