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Watrer Day: तरीका बदलकर बचाने लगे 15 सौ करोड़ लीटर पानी Gorakhpur News

सिंचाई के पारंपरिक तरीके में तीन हजार हेक्टेयर खेत में फसल की सिंचाई के लिए करीब 320 लाख घनमीटर अर्थात 3200 करोड़ लीटर पानी की आवश्यकता होती है। सिंचाई के दौरान पानी की बूंद बर्बाद ना हो इसके लिए सरकार माइक्रो इरीगेशन योजना पर जोर दे रही है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 22 Mar 2021 11:31 AM (IST)Updated: Mon, 22 Mar 2021 11:31 AM (IST)
Watrer Day: तरीका बदलकर बचाने लगे 15 सौ करोड़ लीटर पानी Gorakhpur News
ड्रिप इरीगेशन से किसान करोड़ों लीटर पानी बचा रहे हैं। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जेएनएन। गोरखपुर मंडल के दो हजार से अधिक ऐसे किसान हैं, जो हमारे लिए अन्न व सब्जियां तो उगाते ही हैं, बड़े पैमाने पर पानी की बचत भी करते हैं। पिछले कुछ वर्षों से उन्होंने सिंचाई करने का तरीका बदला है। माइक्रो इरीगेशन, ड्रिप इरीगेशन के जरिये वह प्रति सीजन 1500 करोड़ लीटर पानी की बचत करने लगे।

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तीन हजार से अधिक किसान ड्रिप इरीगेशन के जरिये कर रहे पानी की भारी बचत

भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के निदेशक डाक्टर एसके दुबे कहते हैं कि सिंचाई के पारंपरिक तरीके में तीन हजार हेक्टेयर खेत में फसल की सिंचाई के लिए करीब 320 लाख घनमीटर अर्थात 3200 करोड़ लीटर पानी की आवश्यकता होती है। सिंचाई के दौरान पानी की बूंद बर्बाद ना हो, इसके लिए सरकार माइक्रो इरीगेशन योजना पर जोर दे रही है। वर्ष 2019 में गोरखपुर मंडल के करीब 3000 किसानों को स्प्रिंकलर, रेनगन, ड्रिप इरीगेशन सिस्टम, मिनी स्प्रिंकलर दिया गया था। इन यंत्रों से सिंचाई के जरिये करीब तीन हजार हेक्टेयर खेतों में सिंचाई की गई। इससे करीब 40 से 50 फीसद पानी की बचत हुई। इससे किसानों का डीजल का खर्च बचा। कृषि विभाग का कहना है कि किसान यदि प्रति सीजन 40 फीसद भी पानी की बचत करें तो प्रत्येक सीजन में करीब 1500 करोड़ लीटर पानी की बचत हो रही है।

क्या कहते हैं किसान

पीपीगंज विकास खंड के ग्राम डांढ़ाडीह निवासी किसान सत्येंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि वह बड़े पैमाने पर सब्जियों की खेती करते हैं। सब्जी की खेती के लिए पानी की अधिक जरूरत होती है। लेकिन अब वह स्प्रिंकलर, ड्रिप इरीगेशन के जरिये खेती करते हैं। इससे बड़े पैमाने पर पानी की बचत होती है। महराजगंज जिले के ग्राम काशीराम महदेवा के किसान उपेंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि पहले वह पारंपरिक तरीके सब्जी की सिंचाई करते थे। दो वर्ष पूर्व तरीका बदल कर सिंचाई शुरू की तो पानी की बचत होने लगी। अब तो धान, गेहूं की सिंचाई भी इसी तकनीक से करते हैं।

बड़े पैमाने पर किसान कर रहे माइक्रो इरीगेशन का उपयोग

संयुक्त कृषि निदेशक एचके उपाध्याय का कहना है कि अब धान-गेहूं की खेती करने वाले किसान भी माइक्रो, स्प्रिंकलर, ड्रिप इरीगेशन पद्धति का प्रयोग कर रहे हैं। इससे बड़े पैमाने पर पानी की बचत हो रही है। राजकीय उद्यान के अधीक्षक अरुण तिवारी का कहना है कि माइक्रो इरीगेशन से जुड़कर किसान पानी की बचत कर रहे हैं। इससे किसानों के डीजल का खर्च बच रहा है। पानी की बर्बादी नहीं हो रही है। यह हर किसी के लिए हितकर है।


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