खेल के साथ खेल : बजट घटा फिर कैसे होगा खेल का विकास
स्कूलों में खेल के साथ खेल किया जा रहा है। वित्तविहीन विद्यालयों में खेल शुल्क लेने से मनाही है। सहायता प्राप्त विद्यालयों से होता है आयोजन।
गोरखपुर : सरकार की योजना ओलंपिक में पदकों की संख्या बढ़ाने की है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त प्लेटफार्म स्कूल खेलों से लगातार दूर होते जा रहे हैं। शिक्षा निदेशालय हर साल खेलों के आयोजन के लिए कैलेंडर जारी करता है लेकिन इस आयोजन के लिए मिलने वाले बजट को काफी हद तक कम कर दिया गया है। बजट के अभाव में 22 खेलों की प्रतियोगिता करा पाना आसान नहीं होता। सिर्फ 138 विद्यालय देते हैं सहयोग
खेलों के आयोजन में लगने वाले बजट की व्यवस्था विद्यालयों को ही करनी होती है। सरकारी नियम के अनुसार हर विद्यालय में हर छात्र से प्रत्येक माह पांच रुपया क्रीड़ा शुल्क के रूप में लिया जाता है। यानी हर साल प्रति छात्र वसूले जाने वाले 60 रुपये में से 10 रुपया जनपदीय क्रीड़ा समिति के खाते में जमा किया जाता है। अनुसूचित जाति के छात्रों से न शुल्क लिया जाता है और न ही उनका शुल्क समिति को जाता है। यह समिति एथलेटिक्स के जनपद स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक तथा अन्य खेलों में मंडल एवं प्रदेश स्तर तक का खर्च इसी बजट से वहन करती है। यूं कम हुआ बजट
जनपद में सहायता प्राप्त, राजकीय व वित्त विहीन कुल 435 माध्यमिक विद्यालय हैं। पहले सभी विद्यालयों को 10 रुपया क्रीड़ा समिति के पास जमा करना होता था। एक अनुमान के मुताबिक यह राशि अच्छी-खासी हो जाती थी और आयोजन आसानी से हो जाते थे लेकिन विधान परिषद के दो सदस्यों ने एक पुराने नियम का हवाला देते हुए प्रश्न उठा दिया कि वित्त विहीन विद्यालयों से क्रीड़ा शुल्क की वसूली उचित नहीं है। इस प्रश्न के बाद शिक्षा निदेशक माध्यमिक ने स्पष्ट आदेश दिया है कि वित्त विहीन विद्यालयों से पैसे न लिए जाएं। यानी अब 297 विद्यालयों से अब कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा जबकि वे खेल शुल्क की वसूली करते रहेंगे। शिक्षा विभाग के सूत्रों की मानें तो वित्त विहीन विद्यालयों में मानक से अधिक शुल्क वसूल किया जाता है। एक छात्र पर प्रतिदिन खर्च होते हैं 175 रुपये
क्रीड़ा समिति द्वारा मंडल एवं राज्य स्तर पर जाने वाली प्रत्येक टीम के प्रत्येक खिलाड़ी पर प्रतिदिन 175 रुपया डीए के रूप में खर्च किया जाता है। एथलेटिक्स कराने वाले विद्यालय को जनपद स्तर पर दो लाख रुपये दिए जाते हैं। मंडल एवं राज्य स्तर पर हर खेल का खर्च समिति को ही वहन करना होता है। ऐसे में बजट कम हो जाने से सफल आयोजनों को लेकर समस्या खड़ी हो गई है। क्रीड़ा शुल्क न लेने के लिए निदेशालय ने दे रखा है निर्देश
जिला विद्यालय निरीक्षक ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह भदौरिया का कहना है कि निदेशालय के आदेश के पालन में वित्त विहीन विद्यालयों से क्रीड़ा शुल्क के रूप में पैसा नहीं लिया गया है। उपलब्ध बजट में बेहतर आयोजन कराए जाएंगे।