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जन्मदिन पर विशेष : जनवादी चेतना के मुखर स्वर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

बस्ती में जन्मे प्रख्यात साहित्यकार स्व.सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने हिंदी को बहुत कुछ दिया है। उनकी कविताओं में मानव जीवन की बहुरंगी यथार्थ है।

By Edited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 07:15 PM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 11:04 PM (IST)
जन्मदिन पर विशेष : जनवादी चेतना के मुखर स्वर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

गोरखपुर (जेएनएन)। हिंदी कविता की व्यापक जनवादी चेतना के संदर्भ में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना एक ऐसे कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं जिनकी रचनाएं पाठकों से जीवंत रिश्ता बनाए हुए हैं। वे दायरों से बाहर के कवि थे। उनकी कविताओं में हिंदी कविता की लोकोन्मुखता सहजता से परिलक्षित होती है। सर्वेश्वर दयाल हिंदी की गतिशील जनवादी काव्यधारा के प्रमुख कवि अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक संग्रह के महत्वपूर्ण कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। एक कवि के रूप में उन्होंने देश और समाज की जिंदगी के यथार्थ का बड़ा ही बेबाक चित्रण किया है। 

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कविताओं में मानव जीवन के बहुरंग

दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. केसी लाल बताते हैं कि सर्वेश्वर दयाल की कविताओं में मानव जीवन का बहुरंगी यथार्थ, राजनीतिक चहल-पहल, प्रकृति-प्रेम आदि का सहज भाषा में चित्रण हुआ है। उनकी कविताओं से गुजरना एक भरे-पूरे मनुष्य की दुनिया से गुजरना है। एक तरफ जनता की निष्क्रियता के प्रति उनमें क्षोभ है तो दूसरी ओर उनकी शक्ति में उन्हें गहरी आस्था है। ऐसी अनेकों कविताएं सर्वेश्वर ने लिखी हैं, जिनमें वे जनता की सामूहिक शक्ति को जगाने का प्रयास करते हैं। वे आलोचनात्मक विवेक संपन्न कवि थे। देशगान और कालाधन जैसी कविताएं और 'बकरी जैसा नाटक' उन्हीं के जैसा व्यक्ति लिख सकता था। वह दिनमान से जुड़े एक महत्वपूर्ण पत्रकार थे। उनका 'चरचे और चरखे' स्तंभ दिनमान की पहचान रहा। उनकी पत्रकारिता साहसपूर्ण पत्रकारिता का उदाहरण है। उनकी रचना देशगान इसी साहसिकता का परिचय देती है।

रचनाओं में यथार्थ का विश्वसनीय चित्रण

'काठ की घंटियां', 'बांस का पुल', 'एक सूनी नांव', 'गर्म हवाएं', 'कुआनो नदी', 'जंगल का दर्द', 'खूंटियों पर टंगे लोग' आदि उनके महत्वपूर्ण कविता संग्रह हैं। उन्होंने 'पागल कुत्तों का मसीहा', 'उड़े हुए रंग', 'सोया हुआ जल', 'कच्ची सड़क' और 'अंधेरे पर अंधेरा' जैसे लघु उपन्यास की रचना कर हिंदी उपन्यास साहित्य को नई जमीन दी। 'बकरी', 'लड़ाई', 'अब गरीबी हटाओ', 'कल भात आएगा' तथा 'हवालात' जैसे नाटकों को लिखकर आजादी के बाद सामाजिक एवं राजनीतिक यथार्थ का उन्होंने बड़ा ही विश्वसनीय चित्रण किया है। उनकी भाषा आम बोलचाल की भाषा है, यही कारण है कि लोग सहजता से उनके साहित्य से जुड़ जाते हैं। अपनी कविता 'कालाधन' में उन्होंने जिस लड़ाई को जारी रखने की बात कही थी, वह आज भी लोगों को प्रेरित करती है। 

परिचय

  • जन्म : 15 सितंबर 1927 बस्ती, उत्तर प्रदेश में।
  • मृत्यु : 1983, नई दिल्ली में।  
  • शिक्षा : वाराणसी व प्रयाग विश्वविद्यालय में।
  • कार्यक्षेत्र : अध्यापन, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर, दिनमान के उपसंपादक और पराग में संपादक। साहित्यिक जीवन का प्रारंभ कविता से। दिनमान के 'चरचे और चरखे' स्तंभ में वर्षों मर्मभेदी लेखन-कार्य। कला, साहित्य, संस्कृति और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारी। कविता के अतिरिक्त कहानी नाटक और बालोपयोगी साहित्य में महत्वपूर्ण लेखन। अनेक भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद।  

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