कुछ इतिहासकारों ने महिलाओं के योगदान को नकारते हुए भोग की वस्तु कहकर अपमानित किया
महिला इतिहासकार एक विमर्श विषय पर अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन सचिव ने रखे अपने विचार ।
गोरखपुर, जेएनएन । कुछ इतिहासकारों द्वारा भारतीय महिलाओं के योगदान को नकारते हुए उन्हें केवल भोग की वस्तु कह कर अपमानित किया गया। समय के साथ महिलांए प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी रही है , उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
यह कहना है अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के संगठन सचिव डाक्टर बालमुकुंद पांडे के। वह भारतीय इतिहास संकलन समिति गोरक्ष प्रांत एवं इतिहास विभाग दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर द्वारा आयोजित महिला इतिहासकार: एक विमर्श विषय पर व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।
उन्होंने वैदिक काल से लेकर वर्तमान समय तक महिलाओं की विभिन्न भूमिकाओं एवं योगदान का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए बताया कि कुछ इतिहासकारों द्वारा भारतीय महिलाओं के योगदान को नकारते हुए उन्हें केवल भोग की वस्तु कह कर अपमानित किया गया । जबाली, अपाला, घोषा, रानी द्दिदा, अहिल्याबाई होलकर आदि के योगदान पर विस्तार से चर्चा की।
साथ ही हैदराबाद में 17 अगस्त से आयोजित होने वाले दो दिवसीय महिला इतिहासकार संगोष्ठी में महिला इतिहास लेखन हेतु महिलाओं का उत्साहवर्धन किया। व्याख्यान की अध्यक्षता प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के प्रोफेसर विपुला दुबे ने व संचालन विभागाध्यक्ष प्रोफेसर निधि चतुर्वेदी ने की। प्रोफेसर विपुला दुबे ने प्राचीन भारतीय महिलाओं के साहित्यिक, सामाजिक, राजनैतिक, शासन एवं प्रशासनिक क्षमता पर प्रकाश डाला। प्रोफेसर दिग्विजय नाथ मौर्य ने आभार व्यक्त किया ।
इस मौके पर प्रोफेसर महेश शरण, प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी, प्रोफेसर मुकुंद शरण त्रिपाठी, डॉक्टर प्रदीप राव, डॉ ज्ञान प्रकाश मंगलम, डॉ सुधाकर लाल श्रीवास्तव, डॉ मनोज तिवारी, डॉक्टर सचिन राय, डॉक्टर सच्चिदानंद चौबे, डॉक्टर अजय सिंह, डॉक्टर कन्हैया सिंह, डॉक्टर प्रवीण त्रिपाठी, डॉ अमिता अग्रवाल, प्रियंवदा, कामिनी सिंह, बृजेश पांडे, सचिंद्र मोहन, प्रतिभा, नीलम, निधि मिश्रा, ममता सिंह आदि के साथ अनेक शोधार्थी उपस्थित रहे।
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