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नया शोध : सोलर पैनल से मिलेगी निजात, खिड़कियों के शीशे ही बन जाएंगे पैनल

MMMUT Students Research मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधार्थी डा. सदानंद मौर्य ने एक ऐसा पारदर्शी फोटो वोल्टेइक सेल तैयार किया है जिसे अगर किसी शीशे पर लगा दिया जाए तो वह सोलर पैनल में तब्दील हो जाएगा।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Thu, 23 Dec 2021 06:05 AM (IST)Updated: Thu, 23 Dec 2021 07:54 PM (IST)
नया शोध : सोलर पैनल से मिलेगी निजात, खिड़कियों के शीशे ही बन जाएंगे पैनल
एमएमएमयूटी के छात्रों द्वारा तैयार आटोमेट‍िक सोलर पैनल की प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।

गोरखपुर, डा. राकेश राय। वह दिन दूर नहीं जब सौर ऊर्जा का इस्तेमाल विद्युत ऊर्जा के रूप में करने के लिए बड़े-बड़े सोलर पैनल नहीं लगाने पड़ेंगे। घर की खिड़कियां, यहां तक वाहनों के शीशे ही सोलर पैनल का काम करेंगे। मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधार्थी डा. सदानंद मौर्य ने एक ऐसा पारदर्शी फोटो वोल्टेइक सेल तैयार किया है, जिसे अगर किसी शीशे पर लगा दिया जाए तो वह सोलर पैनल में तब्दील हो जाएगा। खास बात यह है कि इससे शीशे की पारदर्शिता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। भौतिक विज्ञान विभाग के आचार्य प्रो. डीके द्विवेदी के निर्देशन में हुए इस शोध से सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने की लागत में भी भारी कमी आएगी। प्रयोगशाला में इस प्रयोग को सफलता मिल चुकी है। अब व्यावसायिक स्वरूप देने की तैयारी है।

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मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधार्थी ने बनाया पारदर्शी फोटो वोल्टेइक सेल

डा. सदानंद ने बताया कि शीशे का इस्तेमाल सोलर पैनल के रूप में करने के लिए सबसे पहले 20 नैनो मीटर का एक सोलर सेल (पारदर्शी पतली झिल्ली) तैयार किया गया। इस सोलर सेल को लार्ज बैंड गैप मैटेरियल नाम दिया गया। यह सोलर सेल शीशे पर चिपकते ही कंडक्टर का काम करने लगेगा। सोलर सेल सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों को विद्युत ऊर्जा में बदल देगा। डा. सदानंद के मुताबिक सामान्य सोलर पैनल के मुकाबले इसकी उत्पादन क्षमता तो करीब आधी होगी लेकिन इसलिए ज्यादा उपयोगी होगी क्योंकि इसका इस्तेमाल हर उस जगह पर किया जा सकेगा, जहां शीशा लगा हो और उसे सूर्य की रोशनी सीधे मिले रही हो।

पारदर्शी फोटो वोल्टेइक सेल से ऐसे बनेगी विद्युत ऊर्जा

शीशे को सोलर पैनल बनाने के लिए जिस पारदर्शी झिल्ली को तैयार किया गया है, उसमें ऊपर के हिस्से में निकिल आक्साइड और नीचे के हिस्से में ज‍िंंक आक्साइड है। यह झिल्ली सूर्य की रोशनी से मिलने वाली अल्ट्रा वायलेट किरणों को अवशोषित करेगी। उन अवशोषित किरणों को दो इलेक्ट्रोड के जरिए विद्युत ऊर्जा में बदल देगी। इसके लिए शीशे के किसी हिस्से में इलेक्ट्रोड लगाना होगा।

शोध का अगर सीधे तौर पर समाज के लिए उपयोगी हो तो वह इससे बेहतर कुछ हो रही नहीं सकता। प्रो. डीके द्विवेदी के निर्देशन में डा. सदानंद मौर्य द्वारा किया गया शोध ऐसा ही है। शोध का फायदा जल्द से जल्द लोगों को मिलने के लिए इसके लिए मैं शोधार्थी को शुभकामना देता हूं। - प्रो. जेपी पांडेय, कुलपति, मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विवि।


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