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कलाकारों ने ऐसे बांधा समां...तस्‍वीरों में देखें गोरखपुर महोत्‍सव के रंग

गोरखपुर महोत्‍सव में कलाकारों ने शमां बांध दिया। महोत्‍सव के दूसरे दिन कलाकारों ने देर रात तक अपनी प्रस्‍तुतियों ने लोगों का मनोरंजन किया।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 13 Jan 2019 11:18 AM (IST)Updated: Mon, 14 Jan 2019 12:08 PM (IST)
कलाकारों ने ऐसे बांधा समां...तस्‍वीरों में देखें गोरखपुर महोत्‍सव के रंग
कलाकारों ने ऐसे बांधा समां...तस्‍वीरों में देखें गोरखपुर महोत्‍सव के रंग

गोरखपुर, जेएनएन। गोरखपुर महोत्सव का दूसरा दिन पूरी तौर पर माटी की बोली यानी भोजपुरी के नाम रहा। भोजपुरी नाइट के क्रम में दोपहर बाद लोकगीतों पर सुर छेडऩे का सिलसिला स्थानीय कलाकारों ने शुरू किया तो शाम ढलते-ढलते नामचीन कलाकारों से मंच सज गया।

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पहले सुरेश कुशवाहा से इस सिलसिले का आगाज हुआ तो पद्मभूषण लोकगायिका शारदा सिन्हा ने मंच पर लोकगीतों की ऐसी प्रस्तुति की कि माटी की सोंधी खुशबू से महोत्सव का आंगन महक उठा। संजोली पांडेय ने अपनी टीम के साथ कार्यक्रम को संपूर्णता प्रदान की। इस क्रम में दोपहर से शाम और शाम से रात कैसे हो गई, इसका पता ही नहीं चला।

लोकरंग कार्यक्रम की शुरुआत सुरेश कुशवाहा ने 'कौने रहिया आवे माई के रथिया...' देवी गीत से की। 'आंगनिया में बबूरा लगइबअ त कइसे के आम हो जाइ...' सुनाकर लोगों ने गहरा संदेश देने की कोशिश की।  'पांव में पयलिया सोहे हाथ में कंगनवा...' गाया तो लोग झूम उठे। 'गोरखपुर में घर बा त कौने बात के डर बा...' सुनाकर सुरेश ने गोरखपुरवासियों में जोश भर दिया।

गायिका जया ने उनका खूब साथ दिया। सुरेश के बाद जब शारदा सिन्हा मंच पर आईं तो समूचा पंडाल तालियों से गूंज उठा। श्रोताओं के स्वागत से शारदा भावुक हो उठीं और फिर शुरू किया गीतों की प्रस्तुति का सिलसिला।

शुरुआत देवी वंदना से की और फिर 'जगदंबा घर में दीयरा बार भइलीं हो' और 'का लेई के शिव के मनाइब हो' भजन गाकर माहौल में भक्तिरस घोल दिया।

माहौल बन गया तो शारदा ने शुरू की अपने मशहूर गीतों की प्रस्तुति। फिर तो श्रोता झूम उठे और साथ-साथ गुनगुनाने लगे। बारी-बारी से 'पटना से वैदा बोलाई द', 'पनिया के जहाज से पलटनिया लिहले आइया हो', 'अमवा महुअवा के झूमे डलिया', 'कहे तोसे सजनी तोहरी सजनिया', 'तार बिजली से पतले हमारे पिया' जैसे गीतों को सुनाकर शारदा ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अंत में मंच पर उतरी संजोली पांडेय।

'बाबा गोरखनाथ के दरस करा द...' सुनाकर गोरखनाथ की धरती को नमन किया और फिर 'पढिय़ा लिखिया कौनो भाषा बतियइहा भोजपुरी में...' गाकर भोजपुरी के संरक्षण की अलख जगाई। 'पिया मेहंदी लेया द मोती झील से...' कजरी सुनाकर संजोली ने लोगों को प्रेम रस से सराबोर कर दिया। धरोहर ग्रुप के कलाकारों ने नृत्य की प्रस्तुति से कार्यक्रम को संपूर्णता देने की सफल कोशिश की।

लोक संस्कृति की जमकर बही बयार

सुरेश कुशवाहा के मंच संभालने से पहले कई अन्य सिद्धहस्त कलाकारों ने महोत्सव के मंच से जमकर लोक संस्कृति की बयार बहाई। शाम छह बजे मंच पर उतरी संजू सिंह ने 'कीन द बाबा बनारसी सडिय़ा...' और 'सांझे बोले चिरई सबेरे बोले मोरवा...' सुनाकर खूब वाहवाही लूटी। 'पिया गईलें कलकतवा रे सजनी...' धोबिया गीत सुनाकर संजू ने विरहणी की पीड़ा बयां की। 'पीपरा के पतवा पुलइयां डोले रे ननदी...' झूमर से उन्होंने लोगों को झूमाया तो 'राते बलमुआ दिहले गारी हो तरकारी के बिना ना...' सुनाकर लोगों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया।

लोकरंग का कार्यक्रम तीन बजे शुरू हुआ। शुरुआत में स्थानीय लोगों की प्रस्तुतियां हुईं। इंदू गुप्ता ने पूरबी, सावनी आदि विधाओं का जादू चलाया। बृजकिशोर त्रिपाठी गुलाब ने 'खेलत रहलीं धूरी माटी माई बान्हें गांती...' सुनाकर भोजपुरी के प्रसिद्ध कवि त्रिलोकीनाथ पांडेय को याद किया। विजय पांडेय ने 'ओढऩी के रंग पीयर...' सुनाया। भोजपुरी की सुप्रसिद्ध गायिका मैनावती देवी की स्मृति में उनकी पोतियां ऐश्वर्या ने 'बहे बसंती बयार...' और अमृता ने 'कई सावन बरस गए...' गीत की प्रस्तुति कर श्रोताओं का दिल जीता।

वाह मजा आ गया
विश्वविद्यालय परिसर में चल रहे गोरखपुर महोत्सव में शनिवार को स्कूली छात्रों ने सभी को हैरान कर दिया। महोत्सव को देखकर यह छात्र उत्साह में झूम उठे और अपने ही एक साथी को हवा में उछालकर खुशी का इजहार करने लगे। इनके करतब देखने के लिए मेले में आए लोगों की भीड़ लग गई।

विवेकानंद की जयंती पर हुआ नाटक का मंचन
महोत्सव के दूसरे दिन स्वामी विवेकानंद की जयंती थी, सो यह दिन उन्हें तरह-तरह के सृजनात्मक प्रयासों से समर्पित किया गया। ऐसा ही एक प्रयास था विवेकानंद के जीवन पर आधारित नाटक 'विवेकानंद कॉलिंग : शिकागो लाइव का मंचन'। दो घंटे के इस नाटक ने लोगों के विवेकानंद के आदर्शों पर चलने की सीख दी। गोरखपुर विश्वविद्यालय के दीक्षा भवन में मंचित नाटक का निर्देशन, परिकल्पना और लेखन अभियान थिएटर ग्रुप के अध्यक्ष श्रीनारायण पांडेय का रहा। शानदार अभिनय से नाटक को जीवंत बनाने में प्राणेश कुमार, अंशिका मिश्रा, अफ्फान नवाब, कृष्णा राज, आशीष कुमार, रत्न हीरवानी, आंचल, सुमित यादव, विपिन यादव की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

छम्मा-छम्मा ने थिरकाया, गोलगप्पा प्रतियोगिता ने हंसाया
महोत्सव के अंतर्गत कला संकाय में बने मंच पर नृत्य और फूड विदाउट फायर (बिना आग भोजन पकाने की कला) प्रतियोगिता में महिलाओं ने समां बांध दिया। छम्मा-छम्मा, बाजे रे मेरी पैजनिया, ढाई आखर प्रेम के, ये मोह-मोह के धागे, डोला रे डोला रहे समेत कई गीतों पर शानदार नृत्य प्रस्तुत कर अपनी प्रतिभा दिखायी तो एक से बढ़कर एक डिश बनाकर लोगों की शाबाशी पायी। नृत्य प्रतियोगिता में शैलजा चतुर्वेदी पहले, आकांक्षा चतुर्वेदी दूसरे और अर्पिता पांडेय तीसरे स्थान पर रहीं। अनु जायसवाल, प्रतिमा भारती और प्रिया पांडेय को सांत्वना पुरस्कार मिला। निर्णायक मंडल में मीरा सिकदार व स्मृति दत्ता रहीं।

इस दौरान डॉ. सीमा शेखर, डॉ. विनीता पाठक, चारू चौधरी, निकिता कनोडिया, स्मिता अग्रवाल, निशा जिंदल, दीपा सिंह आदि मौजूद रहीं। फूड विदाउट फायर में शिखा अग्रवाल को पहला, ममता सिंह को दूसरा और जान्हवी चावला को तीसरा स्थान मिला। पूजा जायसवाल, सपना सिंघानिया और श्वेता अग्रवाल को सांत्वना पुरस्कार मिला। निर्णायक मंडल में हीरल अग्रवाल, आदित्य मलहोत्रा और सावंत सिंह रहे।

15 गोलगप्पे खाकर प्रतिमा बनीं चैम्पियन
एक मिनट में गोलगप्पा खाओ प्रतियोगिता सबसे आकर्षण का केंद्र रही। 54 प्रतिभागी महिलाओं में प्रतिमा ने एक मिनट में सर्वाधिक 15 गोलगप्पे खाए। 12 गोलगप्पे खाने वाली राधिका को द्वितीय और 11 गोलगप्पे खाने वाली अनन्या को तीसरा स्थान मिला।
(सभी फोटो - संगम दूबे)


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