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मोरारी बापू ने उठाया सवाल-श्रीकृष्ण की आलोचना पर चुप क्‍यों हैं व्यास पीठें Gorakhpur News

आज व्यास पीठें भी हैं और वैष्णव भी हैं लेकिन श्रीकृष्ण की आलोचना हो रही है व्यास पीठें क्यों चुप हैं? कहां गई व्यास पीठों की निर्भयता?

By Satish ShuklaEdited By: Published: Thu, 10 Oct 2019 07:17 PM (IST)Updated: Thu, 10 Oct 2019 07:17 PM (IST)
मोरारी बापू ने उठाया सवाल-श्रीकृष्ण की आलोचना पर चुप क्‍यों हैं व्यास पीठें Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। प्रख्यात संत मोरारी बापू ने कहा कि जिसके जीवन में शील है, वही वैष्णव है। गांधीजी ने 1918 में कुछ संस्थाओं को कहा था कि वे वैष्णव नहीं है और 1930 में उन्हीं संस्थाओं ने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों का साथ दिया। आज व्यास पीठें भी हैं और वैष्णव भी हैं लेकिन श्रीकृष्ण की आलोचना हो रही है, व्यास पीठें क्यों चुप हैं? कहां गई व्यास पीठों की निर्भयता? माहौल गंभीर होते देख उन्होंने गुरुवाणी का गायन शुरू किया और माहौल में भक्ति की मंदाकिनी प्रवाहित होने लगी। इस दौरान 'बोले सो निहाल, सतश्री अकाल व 'वाहे गुरुजी खालसा, वाहे गुरुजी फतह का जयघोष गूंज उठा। मोरारी बापू गोरखनाथ मंदिर व श्रीराम कथा प्रेम यज्ञ समिति के तत्वावधान में ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की स्मृति में चंपा देवी पार्क में आयोजित श्रीराम कथा 'मानस जोगी में  व्यास पीठ से श्रद्धालुओं को कथा सुना रहे थे।

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शरणागति के लिए भटकने की जरूरत नहीं, मां-बाप की सेवा करो

उन्होंने श्रद्धालुओं को सदाचार की शिक्षा दी। व्यास पीठ से उन्होंने लोगों के दिल में बुजुर्गों के प्रति सम्मान भरने की कोशिश की और इसे परमात्मा की कृपा से जोड़ते हुए बुजुर्गों, पड़ोसियों की सेवा को परमात्मा की सच्ची शरणागति बताई और कहा कि इसी से जीवन में पंचशील आएगा। मां-बाप को वृद्धाश्रम में मत भेजो, उनके चरणों में है शील। मंदिरों में करोड़ों रुपये खर्च दिए और घर के नौकरों के लिए कुछ न किया तो शील नहीं आएगा। जीवन में शील नहीं उतरा तो न तो रामकथा उतरेगी और न ही राम। वंचित हो जाओगे महासुख से। इसलिए बुजुर्गों के चरण में जाओ, वहीं पर परमात्मा की शरणागति का द्वार मिलेगा। उन्होंने सुमति, सुशील, रसित, दासत्व व रघुनाथ से प्रेम को पंचशील का अंग बताया।

निकाल दो जरूरतमंदों के लिए दशांश

बापू ने एक कहानी के माध्यम से कहा कि जब तुम घर से चले तो तुम्हारे पास कुछ नहीं था, फिर बहुत कुछ आ गया, इसके पहले कि तुम्हारी जेब कट जाए, जरूरतमंदों के लिए दशांश निकाल दो। फिर कथा मुड़ती है महाभारत की ओर। गांधारी ने श्रीकृष्ण को दो श्राप दिया। एक यदुकुल के नष्ट होने और दूसरा कृष्ण से कहा कि 36 साल बाद तुम ऐसे मरोगे जिस अवस्था में कोई नहीं मरता है और तुम्हें 36 साल तक नींद नहीं आएगी। हालांकि श्राप देने के बाद गांधारी ने पश्चाताप भी किया, कहा कि क्या करूं, मैं मां हूं। महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका है। द्वारिका जाने की दो दिन बाद की तैयारी है। कृष्ण को एक चिंता सताती है कि उनकी नारायणी सेना उनके साथ आई थी, अब उनमें से एक भी नहीं बचा है, मैं द्वारिका जाकर क्या जवाब दूंगा। उद्धव कृष्ण के साथ कुरुक्षेत्र में जाते हैं, वहां कुछ शव पड़े हैं जिसमें भीम के बेटे घटोत्कच का भी है, उसका अंतिम संस्कार नहीं हुआ। उद्धव बताते हैं कि ऐसे बहुत से लोगों के शव पड़े हुए हैं, लकड़ी समाप्त हो चुकी है, अंतिम संस्कार अब संभव भी नहीं है। वहां से कृष्ण पांडवों के महल में आते हैं वहां युधिष्ठिर जुआ खेलने में व्यस्त है, भीम जालंधरी व अर्जुन सुभद्रा के पास बैठा है। द्रौपदी अकेले बैठी उदास है। वह कृष्ण से कहती है कि द्वारिकानाथ अब मुझे द्वारिका ले चलो, अब मुझमें किसी की रुचि नहीं है। कथा व्यास ने कहा कि भले ही श्रीकृष्ण परमात्मा हैं लेकिन किए हुए कर्म जवाब मांगते हैं। 

संत निंदा नहीं लेकिन निदान जरूर करता है

मोरारी बापू ने कहा कि लोग आजकल मंदिरों में जाते हैं सत्ता खोजने। हनुमान जी लंका के मंदिरों में गए थे भक्ति (सीता) को खोजने। यह बात थोड़ी कर्कश जरूर है, संत निंदा नहीं करता, लेकिन निदान तो जरूर करूंगा। हम मान लेते हैं कि मंदिरों में भक्ति होगी ही, लेकिन असुरों के मंदिरों में भक्ति नहीं, मद था, लोग सोये हुए मिले।

गोरख के मत्स्येंद्रनाथ से सवाल

गोरख ने मत्स्येंद्रनाथ से बहुत से सवाल किया है। उन्होंने योगी के लक्षणों के बारे में पूछा तो मत्स्येंद्रनाथ ने कहा कि जो दूसरों के बारे में कभी नहीं सोचता व भीड़ में नहीं एकांत में रहता है, वह योगी है। गोरख जिज्ञासा करते जाते हैं, मत्स्येंद्रनाथ उन्हें जवाब देते जाते हैं। गोरख ने संबंध के बारे में पूछा तो मत्येंद्रनाथ ने कहा कि संसार जब तक है, न चाहते हुए भी संबंध हो जाएगा, लेकिन हर संबंध में लक्ष्मण रेखा जरूरी है।

पूरा ब्रह्मांड संयुक्त है

मोरारी बापू ने ओशो का उल्लेख करते हुए कहा कि पूरा ब्रह्मांड संयुक्त है। सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सूर्य उगता है तो सब जगने लगते हैं, सूर्य डूबता है तो सब सोना शुरू कर देते हैं।

रामनाम लेते हो तो किसी का शोषण मत करना

दशरथ कुमारों के नामकरण के लिए वशिष्ठ जी आए। उन्होंने क्रमश: सभी भाइयों का नाम गुणों के आधार पर रखा- राम, भरत, शत्रुघ्न व लक्ष्मण। कथाव्यास ने कहा कि भरत भरण-पोषण करने वाले, शत्रुघ्न किसी से शत्रुता न करने वाले हैं। राम का नाम लेते हो तो इन दो बातों- भरण-पोषण व मैत्री पर जरूर ध्यान देना। इसके बिना राम नाम अधूरा है। 


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